सेना ने कैप्टन अंकित की खोज का नए सिरे से शुरू किया अभियान

0
  • हेलिकॉप्टर से बुलाए गए विशेषज्ञ

 

भारतीय सेना में इस वर्ष की बेस्ट यूनिट चुनी गई 10 पैरा स्पेशल फोर्स के कमांडो कैप्टन अंकित गुप्ता की खोजबीन के लिए शुक्रवार सुबह दिन निकलने के साथ सेना ने अभियान शुरू किया है। बेहद कठिन ट्रेनिंग के बाद तैयार होने वाले देश के चुनीन्दा कमांडो में से एक कैप्टन अंकित कल एक अभ्यास के दौरान हेलिकॉप्टर से तखतसागर में कूदे थे। उनके साथ कूदे तीन अन्य कमांडो तो बाहर निकल आए, लेकिन कैप्टन अंकित बाहर नहीं निकल पाए। उनका अभी तक पता नहीं चल पाया है।

 

 

कल दोपहर को हुए हादसे के बाद से सेना ने तखतसागर पर खोज अभियान शुरू किया, लेकिन शाम को अंधेरा हो जाने के बाद अभियान को रोक दिया गया। आज दिन निकलने से पहले सेना की टीम पूरे लवाजमे के साथ मौके पर पहुंच गई। नए सिरे से कैप्टन अंकित का पता लगाने का प्रयास किया जा रहा है। सेना के साथ ही निजी गोताखोरों की मदद ली जा रही है। सेना ने तखतसागर में उनकी खोज करने के लिए अन्य स्थान से अपने विशेषज्ञों के हेलिकॉप्टर से यहां बुला लिया है। सभी मिलकर खोज में जुटे है।

 

तखतसागर में डूबे कमांडो की खोज में जुटे सेना के जवान।

 

ऐसे हुआ हादसा

पैरा कमांडो स्पेशल फोर्सेज का पूरे साल अभ्यास चलता रहता है। डेजर्ट वारफेयर में महारत रखने वाली 10 पैरा के कमांडो को एक हेलिकॉप्टर से पहले अपनी बोट को पानी में फेंक स्वयं भी कूदना था। इसके बाद उन्हें बोट पर सवार होकर दुश्मन पर हमला बोलना था। इस अभियान के तहत कैप्ट अंकित के नेतृत्व में चार कमांडो ने तखतसागर में पहले अपनी नाव को फेंका और उसके बाद खुद भी पानी में कूद पड़े। तीन कमांडो तो नाव पर पहुंच गए, लेकिन कैप्टन अंकित नहीं पहुंच पाए।

 

 

उनके साथ कमांडो ने थोड़ा इंतज़ार करने के बाद किसी अनहोनी की आशंका से स्वयं पानी में उतर खोज शुरू की। साथ ही अपने अन्य साथियों के माध्यम से जोधपुर स्थित मुख्यालय पर सूचना दी। इसके बाद 10 पैरा के अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे और खोज अभियान शुरू किया।

 

कल ही चुनी गई बेस्ट यूनिट

रेगिस्तानी क्षेत्र में युद्ध की महारत रखने वाली 10 पैरा को कल ही सेनाध्यक्ष की तरफ से इस वर्ष सेना की सबसे बेहतरीन यूनिट के रूप में चयनित किया गया। सेना डे पर 15 जनवरी को सेनाध्यक्ष की तरफ से इस यूनिट को सम्मानित किया जाएगा। इसकी सूचना मिलते ही 10 पैरा के सभी जवानों व अधिकारियों में उत्साह का माहौल था, लेकिन इस हादसे की सूचना मिलते ही खुशियों पर ग्रहण लग गया।

 

एकमात्र यूनिट जिसके पास है खुद की जमीन

10 पैरा स्पेशल फोर्स भारतीय सेना की एकमात्र ऐसी यूनिट है जिसके पास स्वयं की जमीन है। वर्ष 1971 में युद्ध के दौरान जयपुर के पूर्व महाराजा भवानीसिंह के नेतृत्व में 10 पैरा के कमांडो ने पाकिस्तान के काफी अंदर तक घुस छाछरो पर कब्जा जमा सभी को हतप्रभ कर दिया था। 10 पैरा के कमांडेंट रहे भवानी सिंह का ननिहाल जोधपुर राजघराने में है। उन्हें अपने ननिहाल से उम्मेद भवन की तलहटी में एक भूभाग गिफ्ट किया गया। उन्होंने यह जमीन 10 पैरा मुख्यालय के लिए गिफ्ट कर दी। इसकी रजिस्ट्री भी 10 पैरा के नाम से ही हो रखी है। जबकि सेना की अन्य सभी जमीन रक्षा मंत्रालय के अधीन आती है।

 

बेहद कठिन है स्पेशल फोर्स का कमांडो बनना

भारतीय सेना में स्पेशल फोर्स के पैरा कमांडो का चयन भी बहुत मुश्किल से होता है। यह दुनिया की सबसे कठिन चयन प्रतियोगिताओं में से एक है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सेना में करीब तीन हजार स्पेशल पैरा कमांडो ही है। स्पेशल कमांडों के लिए पैरा जंपिंग कोर्स अनिवार्य होता है। यह तीन माह का होता है। इसके बाद स्पेशल कमांडो के चयन की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें छह माह तक विशेष ट्रेनिंग चलती है। इस दौरान कई जवानों की हिम्मत जवाब देती जाती है और वे स्वेच्छा से बाहर निकलते जाते है। छह माह पूरे होने तक दस फीसदी से कम जवान ही अंतिम चरण में बच पाते है। इसमें चयनित जवानों को बाद में अलग-अलग यूनिट में भेजा जाता है। 1 पैरा स्पेशल फोर्स(एसएफ) माउंटेन वारफेयर, 9 पैरा एसएफ को जंगल वारफेयर व 10 पैरा एसएफ को डेजर्ट वारफेयर की विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। इन्हें कई चरण में ट्रेनिंग दी जाती है। आगे बढ़ने के सात ट्रेनिंग की कठिन परीक्षा बढ़ती जाती है। यह चरण पूरा होने पर पैरा विंग व मैरुन ब्रेट प्रदान किया जाता है। इसे धारण करना किसी भी सैनिक या अधिकारी के लिए गर्व भरा पल होता है। क्योकि सेना में मैरुन ब्रेट केवल चुनीन्दा लोगों के पास ही है।

 

ऐसे होती है ट्रेनिंग

इसमें न केवल शारीरिक दमखम बल्कि दिमाग का भी पूरा टेस्ट लिया जाता है। सबसे पहले 23 किलोग्राम भार लाद करीब 73 किलोमीटर लंबी दौड़ होती है। इसके तहत प्रतिभागी को दुनिया की सबसे कठिन माने जाने वाली बाधाओं को पार करना पड़ता है। तीन माह के शुरुआती प्रशिक्षण में 80 फीसदी जवान हिम्मत हार स्वयं ही बाहर हो जाते है। इसके बाद शुरू होता है पांच सप्ताह का हैल्स वीक। इसमें सबसे कठिन शारीरिक क्षमताओं वाला ही अगले चरण में पहुंच पाता है। जैसे पच्चीस मीटर दूर खड़े दुश्मन को मारना, लेकिन उसके बगल में आपका सबसे खास रिश्तेदार खड़ा हो। वहीं जंगल या रेगिस्तान में ऐसे स्थान पर उतार दिया जाता है जहां खाने-पीने को कुछ न हो। इनके बीच प्रकृति की तरफ से उपलब्ध संसाधन का प्रयोग कर अपना जीवन बचाना होता है। स्पेशल फोर्सेज की ट्रेनिंग करीब साढ़े तीन वर्ष तक चलती है। यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। यही कारण है कि ये कमांडो सिर्फ 0.27 सैकंड के रिएक्शन टाइम में जवाबी हमला बोलने में सक्षम होते है। ये किसी भी परिस्थिति में फायर कर सकते है। इस तरह के कमांडो का उपयोग सर्जिकल स्ट्राइक जैसे हमले बोलने में किया जाता है।

आकाश भगत

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed