नाम : “पंडित जी वैष्णो ढाबे”, मालिक : “मुस्लिम”, यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दिए सबूत
उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार के दुकानों पर नाम लिखने के फैसले के बाद बवाल मचा हुआ है। अब योगी सरकार ने अपने फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखा है। राज्य सरकार ने कोर्ट में कहा कि उसने यह कदम सांप्रदायिक सौहार्द के लिए उठाया।
अनुच्छेद 71 के तहत सौहार्द कायम रखने के लिए यह फैसला लिया गया है। सरकार ने अपना तर्क जाहिर करते हुए बताया कि कावंड़ रूट पर खाने पीने को लेकर गलतफहमी पहले भी झगड़े और तनाव की वजह बनती रही है। ऐसे में वहां कोई अप्रिय स्थिति न बने इसलिए यह फैसला लिया गया।
योगी सरकार ने दिए सबूत: यूपी की योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक तरह से सबूत देते हुए उन सारे होटल्स और रेस्टोरेंट के नाम गिनाए हैं, जो हिंदू नामों से संचालित हो रहे हैं, जबकि उनके मालिक मुसलमान हैं। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ ऐसे नाम गिनाए हैं, जिसमें दुकान का नाम तो ‘पंडित जी का ढाबा’ या पंडित जी की होटल है, लेकिन असल में उनका मालिक मुसलमान है।
कोर्ट को सौंपे फोटो : यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में अपनी दलीलों के समर्थन में कावंड़ मार्ग रूट के कुछ खाने पीने की दुकानों के फोटोग्राफ भी संलग्न किए हैं। मसलन ‘राजा राम भोज फैमिली टूरिस्ट ढाबा’ के नाम से ढाबा चलाने वाले दुकानदार का नाम वसीम है। ‘राजस्थानी खालसा ढाबे’ के मालिक का नाम फुरकान है। ‘पंडित जी वैष्णो ढाबे’ के मालिक सनव्वर हैं।
ताकी गलतफहमी न हो : यूपी सरकार का कहना है कि कावंड़ रूट पर खाने पीने को लेकर गलतफहमी पहले भी झगड़े और तनाव की वजह बनती रहे हैं। ऐसी कोई अप्रिय स्थिति न बने, नंगे पैर पवित्र जल ले जा रहे करोड़ों कावंड़ियों की धार्मिक भावना गलती से भी आहत न हो इसलिए दुकान के बाहर नाम लिखने के निर्देश जारी किए गए थे। कोर्ट में दाखिल अपने जवाब में योगी सरकार ने कहा कि कानून व्यवस्था के लिए एहतियाती कदम उठाया। अनुच्छेद 71 के तहत सौहार्द कायम रखने के लिए यह फैसला लिया गया।
फिर क्यों हुआ फैसले का विरोध : बता दें कि यूपी सरकार ने नेम प्लेट आदेश के खिलाफ दायर याचिका का विरोध किया और अदालत से याचिकाओं को खारिज करने की अपील की। दरअसल, पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी, जिसमें कहा गया था कि कांवड़ रूट की दुकानों पर दुकानदारों को उसका नाम और पहचान बताना अनिवार्य होगा। कोर्ट ने अंतरिम आदेश में इस पर रोक लगा दी थी और यूपी, उत्तराखंड और एमपी सरकार को नोटिस जारी किया था।
दरअसल, सबसे पहले यह मामला मुजफ्फरनगर से शुरू हुआ था, योगी सरकार के आदेश के बाद यहां का नियम पूरे प्रदेश में लागू कर दिया गया। इस आदेश के खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नामक एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिस पर 22 जुलाई को सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों से शुक्रवार (26 जुलाई) तक जवाब मांगा था और राज्यों के जवाब देने तक इस आदेश पर रोक लगा दी थी।