पढ़े PM मोदी ने आखिरी ब्रिटिश कमांडर का क्यों किया जिक्र

0
  • विश्व के लिए आज हम आशा की किरण बनकर खड़े हुए

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव का जवाब देते हुए रात 12-12 बजे तक सदन की कार्यवाही चलाने के लिए सदस्यों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति जी का भाषण भारत के 130 करोड़ भारतीयों की संकल्प शक्ति को प्रदर्शित करता है। विकट और विपरीत काल में भी ये देश किस प्रकार से अपना रास्ता चुनता है, रास्ता तय करता है और रास्ते पर चलते हुए सफलता प्राप्त करता है, ये सब राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में कही।

 

 

उन्होंने कहा कि देश जब आजाद हुआ और जो आखिरी ब्रिटिश कमांडर थे जब वो यहां से गए तब वह यही कहा करते थे कि भारत कई देशों का महाद्वीप है और कोई भी इसे एक राष्ट्र कभी नहीं बना सकता है। लेकिन भारतवासियों ने इस आशंका को तोड़ा। विश्व के लिए आज हम आशा की किरण बनकर खड़े हुए हैं। आज विश्व के सामने एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं।

 

 

 

प्रधानमंत्री ने कहा कि कुछ लोग ये कहते थे कि भारत एक चमत्कारिक लोकतंत्र था (India was a miracle democracy)। ये भ्रम भी हमने तोड़ा है। लोकतंत्र हमारी रगों और सांस में बुना हुआ है, हमारी हर सोच, हर पहल, हर प्रयास लोकतंत्र की भावना से भरा हुआ रहता है।

उन्होंने कहा कि आज जब हम भारत की बात करते हैं तो मैं स्वामी विवेकानंद जी की बात का स्मरण करना चाहूंगा। “हर राष्ट्र के पास एक संदेश होता है, जो उसे पहुंचाना होता है, हर राष्ट्र का एक मिशन होता है, जो उसे हासिल करना होता है, हर राष्ट्र की एक नियति होती है, जिसे वो प्राप्त करता है।”

 

 

 

प्रधानमंत्री ने कहा कि सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया… कोरोना काल में भारत ने इसको करके दिखाया है और भारत ने एक आत्मनिर्भर भारत के रूप में जिस प्रकार से एक के बाद एक कदम उठाए हैं। लेकिन हम उन दिनों को याद करें, जब दूसरा विश्व युद्ध समाप्त हुआ था, दो विश्व युद्ध ने दुनिया को झगझोर दिया था। मानवजात, मानवमूल्य संकट के घेरे में थे। निराशा छाई हुई थी।

 

 

उन्होंने कहा कि शांति के मार्ग पर चलने के शपथ लिए गए। सैन्य नहीं सहयोग, इस मंत्र को लेकर के दुनिया के अंदर विचार प्रबल होते गए। यूएन का निर्माण हुआ, इंस्टीट्यूशन्स बने, भांति-भांति के मैकेनिजम तैयार हुए। ताकि दुनिया को विश्वयुद्ध के बाद एक सुचारू ढंग से शांति की दिशा की तरफ ले जाएं। लेकिन अनुभव कुछ और हुआ। दुनिया में शांति की बात हर कोई करने लगा। अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाने लगा।

आकाश भगत

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed