जानें कहां और कैसे बनता है भारत का तिरंगा, केवल इस कंपनी के पास है काॅन्ट्रैक्ट

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भारत के लिए झंडा बनाने की कोशिशें हालांकि पहले भी हो चुकी थी। लेकिन तिरंगे की परिकल्पना आंध्र प्रदेश के पिंगली वेंकैया ने की थी। उनकी चर्चा महात्मा गांधी ने 1931 में अपने अखबार यंग इंडिया में की थी। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करने वाले वेंकैया की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। उन्हें झंडों में बहुत रूचि थी। गांधी ने उनसे भारत के लिए एक झंडा बनाने को कहा।
वेंकैया ने 1916 से 1921 कई देशों के झंडों पर रिसर्च करने के बाद एक झंडा डिजाइन किया। 1921 में विजयवाड़ा में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन में गांधी से मिलकर लाल औऱ हरे रंग से बनाया हुआ झंडा दिखाया। इसके बाद से देश में कांग्रेस के सारे अधिवेशनों में इस दो रंगों वाले झंडे का इस्तेमाल होने लगा। इस बीच जालंधर के लाला हंसराज ने झंडे में एक चक्र चिन्ह बनाने का सुझाव दिया। बाद में गांधी के सुझाव पर वेकैंया ने शांति के प्रतीक सफेद रंग को राष्ट्रीय ध्वज में शामिल किया। 1931 में कांग्रेस ने केसरिया, सफेद औऱ हरे रंग से बने झंडे को स्वीकार किया। हालांकि तब झंडे के बीच में अशोक चक्र नहीं बल्कि चरखा था।

 

  • कैसे बना देश का झंडा
देश के बीच चरखे की जगह अशोक चक्र ने ले ली। इस झंडे को भारत की आजादीकी घोषणा के 24 दिन पहले 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के रुप में अपनाया। देश की स्वतंत्रता के बाद पहले उप राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने चक्र के महत्व को समझाते हुए कहा था कि झंडे के बीच में लगा अशोक चक्र धर्म का प्रतीक है। इस ध्वज की सरपरस्ती में रहने वाले सत्य और धर्म के सिद्धांतों पर चलेंगे। चक्र गति का भी प्रतीक है। भारत को आगे बढ़ना है। ध्वज के बीच में लगा चक्र अहिंसक बदलाव की गतिशीलता का प्रतीक है।
  • आधिकारिक झंडा निर्माता
कर्नाटक के हुबली में स्थिक कर्नाटक खादी ग्राम उद्योग संमुक्त संघ (केकेजीएसएस) ही भारतीय तिरंगे का आधिकारिक निर्माता है। वैसे तो केकेजीएसएस में खादी के कपड़े बनाए जाते हैं लेकिन सबसे ज्यादा खास चीज जो यहां बनाई जाती है वो है हमारे देश का तिरंगा। कर्नाटक खादी ग्राम उद्योग संमुक्त संघ की शुरुआत 1 नवंबर 1957 को खादी के कपड़ों को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। पिछले पंद्रह वर्षों में केकेजीएसएस ने 5 करोड़ से भी ज्यादा भारत के तिरंगे मैन्युफैक्चर किए हैं। देश में कहीं भी आधिकारिक तौर पर राष्ट्रीय ध्वज का इस्तेमाल होता है तो यहीं के बने झंडे की सप्लाई की जाती है।

 

  • 18 बार होता है क्वालिटी चेक
केकेजीएसएस में बनने वाले तिरंगे की क्वालिटी बीआईएस द्वारा चेक की जाती है। जरा सी भी कुछ खामी रहने पर इसे रिजेक्ट कर दिया जाता है। हर अनुभाग पर 18 बार तिरंगे की गुणवत्ता की जांच की जाती है। खादी और ग्रामोद्योग आयोग और भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा तय रंग के शेड से तिरंगे का शेड अलग नहीं होना चाहिए। केसरिया, सफेद और हरे कपड़े की लंबाई-चौड़ाई में जरा सा भी अंतर नहीं होना चाहिए। अशोक चक्र की छपाई अगले-पिछले भाग पर समान सी होनी चाहिए।

फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 के प्रावधानों के अनुसार झंडे की मैन्युफैक्चरिंग में रंग, आकार या धागे को लेकर किसी भी तरह की खामी एक गंभीर अपराध है और इसमें जेल/जेल और जुर्माना दोनों का प्रावधान है।

आकाश भगत

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