संविधान को जानें : कैसे विधेयक बन जाता है कानून? पढ़ें संविधान संशोधन की पूरी प्रक्रिया
विश्व के अन्य देशों के संविधान की ही तरह भारत के संविधान में भी संशोधन करने का प्रावधान किया गया है। यह संशोधन बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार किया जा सकता है। संविधान के भाग 20 का अनुच्छेद 368 संसद को संविधान तथा इसकी प्रक्रिया में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है। हालांकि यह बात भी सत्य है कि संसद संविधान के मूल ढांचे से जुड़े किसी भी प्रावधानों में संशोधन नहीं कर सकता है। 1950 में संविधान लागू होने के बाद से अब तक सवा सौ से ज्यादा संशोधन किए जा चुके हैं। आपको यह बताना जरूरी है कि भारत में संविधान संशोधन के लिए संसद के अलावा किसी अन्य संवैधानिक निकाय या जनमत संग्रह की व्यवस्था नहीं है। भारत में संविधान संशोधन का कार्य संसद ही करती है। सरकार की प्रणाली में सुधार करने के लिए भी संशोधन किये जाते हैं।
भारत में फिलहाल संविधान संशोधन की तीन पद्धतियां है:-
- साधारण बहुमत
- विशेष बहुमत
- विशेष बहुमत तथा राज्यों का अनु समर्थन
साधारण बहुमत
यह संशोधन के ऐसे प्रावधान है जिसके जरिए संसद कानून निर्माण की सामान्य प्रक्रिया बदल सकता है। हालांकि संविधान के कुछ उपबंधों का परिवर्तन संविधान का संशोधन नहीं माना जाता। साधारण बहुमत संशोधन में नए राज्यों का निर्माण, राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन, राज्यों के नाम में बदलाव आदि जैसे विषय शामिल है जिसे साधारण बहुमत से परिवर्तित किया जा सकता है। संसद से साधारण बहुमत द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद कानून बन जाता है।
विशेष बहुमत द्वारा संशोधन
यह संशोधन की वह प्रक्रिया है जिसमें संसद के दोनों सदनों द्वारा किसी बिल को दो तिहाई की स्वीकृति मिलती है। इस संशोधन में किसी भी बिल को दो तिहाई समर्थन हासिल होना चाहिए। पहले यह एक सदन में पेश किया जाता है। एक सदन में मंजूरी मिलने के बाद फिर इसे दूसरे सदन में पेश किया जाता है। दोनों सदनों से स्वीकृति मिलने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही यह कानून बन जाता है।
यहां आपको यह जानना भी बेहद ही जरूरी है कि अनुच्छेद 368 के संविधान संशोधन प्रक्रिया के तहत किसी भी बिल को लेकर संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है। ऐसे में अगर किसी बिल को लेकर दोनों सदनों में गतिरोध हैं तो संयुक्त बैठक नहीं की जा सकती है। आपको यह भी जानना जरूरी है कि राष्ट्रपति संसद द्वारा संशोधित विधेयक को अनुमति देने के लिए बाध्य हैं। इसके अलावा संविधान संशोधन विधेयक के मामलों में राष्ट्रपति के पास किसी भी प्रकार की वीटो शक्ति नहीं है। संविधान संशोधन विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता।
विशेष बहुमत और राज्यों का अनु समर्थन
यह संशोधन की प्रक्रिया ऐसी है जहां संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत के अलावा कम से कम आधे राज्यों के विधान मंडलों की स्वीकृति आवश्यक है। इसमें अनुच्छेद 54 के तहत राष्ट्रपति का निर्वाचन, अनुच्छेद 55 के तहत राष्ट्रपति निर्वाचन की कार्य पद्धति, संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, केंद्र शासित प्रदेशों के लिए उच्च न्यायालय, संघीय न्यायपालिका जैसी चीजें शामिल हैं।
संविधान का प्रथम संशोधन 1951 में हुआ था। इसके तहत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के उन्नति के लिए विशेष उपबंध बनाने हेतु राज्यों को शक्तियां दी गई थी। भूमि सुधार तथा न्यायिक समीक्षा से जुड़े अन्य कानूनों को नौवीं अनुसूची में शामिल किया गया था।