जब भारत का हो रहा था बंटवारा, देश में दंगे-फसाद हो रहे थे, जिन्ना अपने सिगार के डब्बे तलाशने में जुटे थे
15 अगस्त की आधी रात को जब दुनिया के आधे लोग नींद के आगोश में थे। उस वक्त भारत के भाग्य का नया अध्याय लिखा जा रहा था। संसद भवन में संविधान सभा की बैठक चल रही थी। संसद के इसी सेंट्रल हॉल से पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ट्रस्ट विद डेस्टनी नाम से मशहूर आजादी की उद्घोषणा का भाषण दिया।
एक नया नवेला मुल्क हजारों संभावनाओं और करोड़ों उम्मीदों के साथ आजादी की पहली अंगड़ाई ले रहा था। लेकिन ये खुशी दर्द के साए में सिमट कर आई थी। इस देश की छाती पर कभी न मिटने वाली राजनीति की लकीर खींच दी गई। आजादी अपने साथ बंटवारे के गहरे जख्म भी लेकर आई थी। भारत और पाकिस्तान अब दो अलग-अलग मुल्क थे। इसकी कीमत सरहदों के दोनों तरफ के लोग अपनी जान देकर चुका रहे थे।
जब भारत में आजादी की लड़ाई लड़ रहे नेता जेलों में मुश्किल जीवन बिताते थे और सादगी का पालन कर रहे थे। जिन्ना तब भी लग्जरी जिंदगी ही जी रहे थे। जिन्ना को दुनिया में उन नेताओं में गिना जाता है, जो आखिरी समय तक लग्जरी वाली जिंदगी बिताते रहे। उन्हें अच्छा पहनने, खाने और नफासत का खास खयाल रहा। जब देश में दंगे फसाद हो रहे थे उस वक्त भी जिन्ना को अपने सिगार की फिक्र थी।
इसी बीच देश के हालात बिगड़ने लगे, कहीं हड़तालें होनी लगीं तो कहीं दंगे फ़साद की नौबत आ गई। हरियाणा के रेवाड़ी से 70 हिंदुओं का अपहरण कर लिया गया। भारत के नेता इन स्थितियों को लेकर चिंता में थे। लेकिन उस समय पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना को सिर्फ़ अपने सिगार की फ़िक्र थी।
मोहम्मद अली जिन्ना ने देहरादून के किसी यूनुस को चिट्ठी लिखी और पूछा कि उनके सिगार के डिब्बे कहां हैं? मतलब साफ है कि जब भारत बंटवारे की आग से जल रहा था तो उस वक्त जिन्ना को अपने लग्जरी लाइफ और शौक की पड़ी चिंता थी। वो अपने खोए सिगार को लेकर चितिंत थे।