हरियाली तीज त्यौहार से जुड़ी परम्पराएँ और इसका महत्व जानिये
महिलाएं चाहे किसी भी उम्र की हों सभी को श्रावणी तीज यानि हरियाली तीज का बेसब्री से इंतजार रहता है क्योंकि यह उमंगों को खुल कर व्यक्त करने का त्यौहार है। इस साल हरियाली तीज 11 अगस्त को है। वैसे तो इस पर्व के दौरान सामूहिक उत्सव होते हैं लेकिन कोरोना काल में पिछले वर्ष की भाँति इस साल भी कोई बड़े तीज मेले नहीं आयोजित किये जा रहे हैं। लेकिन छोटे स्तर पर या पारिवारिक स्तर पर, खासकर जिन परिवारों में हाल ही में शादी हुई है वहां पर जरूर कोई ना कोई आयोजन किया जा रहा है।
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हरियाली तीज की रौनक
हरियाली तीज के दौरान महिलाओं का जीवन एक बार फिर उमंगों से भर जाता है क्योंकि इस दौरान महिलाओं को समूहों में झूलों पर झूलते, तरह-तरह के पकवान बनाते-खिलाते या सामूहिक गीत गाते देखा जा सकता है। उत्तर भारत में इस पर्व की विशेष छटा देखने को मिलती है। राजस्थान और पंजाब में तो यह त्योहार बड़े ही धूमधाम और पारम्परिक अंदाज में मनाया जाता है। दिल्ली तथा एनसीआर में भी इस त्योहार की काफी रौनक देखने को मिलती है।
पर्व से जुड़ी परम्पराएं
इस पर्व को बुन्देलखंड में हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परम्परा है। इस पर्व के आने से पहले ही घर−घर में झूले पड़ जाते हैं। इस दिन बेटियों को बढ़िया पकवान, गुजिया, घेवर, फैनी आदि सिंधारा के रूप में भेजा जाता है। इस दिन सुहागिनें बायना छूकर सास को देती हैं। इस तीज पर मेंहदी लगाने का विशेष महत्व है। स्त्रियां हाथों पर मेंहदी से भिन्न−भिन्न प्रकार के बेल बूटे बनाती हैं। स्त्रियां पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिह्न माना जाता है।
राजस्थान के लिए विशेष है इस त्यौहार का महत्व
यह भारतीय परम्परा में पति पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धा और विश्वास पैदा करने का त्योहार है। इस दिन कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं। विवाहित महिलाएं इस दिन अपने सुहाग को भगवान शिव तथा माता पार्वती से अक्षुण्ण बनाए रखने की कामना करती हैं। मान्यता है कि इस दिन गौरी विरहाग्नि में तपकर शिव से मिली थीं। हरियाली तीज के दिन राजस्थान में राजपूत लाल रंग के कपड़े पहनते हैं। इस दिन राजस्थान में माता पार्वती की सवारी भी निकाली जाती है। बताया जाता है कि जयपुर में राजाओं के समय में पार्वती जी की प्रतिमा, जिसे ‘तीज माता’ कहते हैं, को एक जुलूस उत्सव में दो दिन तक ले जाया जाता था। उत्सव से पहले प्रतिमा का पुनः रंगरोगन किया जाता है और नए परिधान तथा आभूषण पहनाए जाते हैं इसके बाद प्रतिमा को जुलूस में शामिल होने के लिए लाया जाता है। हजारों लोग इस दौरान माता के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ते हैं। शुभ मुहूर्त में जुलूस निकाला जाता है। सुसज्जित हाथी और बैलगाड़ियां इस जुलूस की शोभा को बढ़ा देते हैं।
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राजस्थान के लोगों के लिए त्यौहार जीवन का सार है खासकर राजधानी जयपुर में इसकी अलग ही छटा देखने को मिलती है। यदि इस दिन वर्षा हो, तो इस पर्व का आनंद और बढ़ जाता है। राजस्थान सहित उत्तर भारत में नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है। सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। सायंकाल सज संवरकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और कजली गीत गाते हुए झूला झूलती हैं।
-शुभा दुबे