झारखण्ड में जलवायु परिवर्तन के आसार, जानें क्या है कारण

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  • वज्रपात के साथ हो रही है बारिश

झारखण्ड में ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु परिवर्तन का असर मई माह में दिख रहा है। राज्य में साइक्लोनिक सरकुलेशन के अलावा पश्चिमी विक्षोभ के असर से मौसम में बदलाव हुआ है। यही वजह है कि मई माह के ज्यादातर दिन राज्य में कहीं न कहीं मेघ गर्जन, वज्रपात के साथ हल्के एवं मध्यम दर्जे के साथ भारी बारिश भी हो रही है। इसमें अप्रैल और मई माह में प्री मानसून में सक्रिय नार्वेस्टर काल वैशाखी भी काफी सहायता कर रही है। यही वजह है कि मई माह में बारिश का रिकॉर्ड लगातार टूट रहा है।

 

 

  • छह साल में मई में सामान्य से ज्यादा हुई बारिश

राज्य में छह साल के अंदर मई माह में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई है। झारखण्ड में मई माह में सामान्य बारिश का प्रतिशत 48.9 मिमी है। वर्ष 2016 में इस माह में सामान्य से 49 प्रतिशत, 2017 में 15 प्रतिशत, 2018 में छह प्रतिशत, 2020 में 47 प्रतिशत एवं 2021 में 21 मई तक 50 प्रतिशत ज्यादा बारिश हुई है। केवल 2019 में सामान्य से तीन प्रतिशत बारिश कम हुई थी।

 

 

 

  • 20 साल से लगातार हो रहा है मौसम में बदलाव

पश्चिमी विक्षोभ एवं साइक्लोनिक सरकुलेशन की वजह से 20 साल से झारखंड में लगातार मौसम में बदलाव हो रहा है। मई माह में बंगाल की खाड़ी में साइक्लोन और पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से इंड्यूस्ड राजस्थान में सरकुलेशन बनने की संख्या भी बढ़ी है, जो पूरब दिशा की ओर मूव करता है। इसका असर भी मई माह में झारखंड में दिख रहा है।

 

 

  • जलस्तर बढ़ाता है, लेकिन नुकसान भी है

मई माह में बारिश जलस्तर बढ़ाता है। इसके अलावा गरमा सीजन में लत्तेदार सब्जी एवं फल के तैयार होने में काफी सहायक है। मौसम केंद्र के वैज्ञानिकों के मुताबिक इस माह में अगर ओलावृष्टि होती है या फिर एक स्थान पर भारी बारिश होती है तो यह खेती समेत आमजन के लिए कहीं न कहीं से नुकसानकारी है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ खेती के लिए प्री मानसून गतिविधि में हो रही बारिश लाभकारी है। यह आम-लीची के फल पकने में सहायक होगा। वहीं खरीफ फसल की तैयारी में किसानों को सहयोग मिलेगा। हल्की बारिश से जमीन में नमी आने से जुताई के लायक खेत तैयार हो रहे हैं।

 

 

 

  • आम-लीची की फसल को हुआ है नुकसान

रांची में हल्के से मध्यम दर्जे की बारिश से आम-लीची के फसल को नुकसान हुआ है। रांची में चार हजार हेक्टेयर में आम और लीची के पेड़ और बागान लगे हुए हैं। तेज हवा के बहाव एवं वज्रपात के साथ ओला गिरने से पेड़ों में लगे फल गिर गए हैं। इससे किसानों को आर्थिक नुकसान हुआ है। इससे पूर्व मई माह के पहले सप्ताह में बुढमू समेत कई अन्य इलाके में ओलावृष्टि से खेतों में तैयार तरबूज और खरबूज के फसल को नुकसान ह़ुआ है। ओलावृष्टि से तरबूज के नाजुक लत्तर वाले पौधे या तो गल गए या फिर उसके डंठल टूट गए। इसके अलावा तरबूज में भी दाग आ गए थे। इससे किसानों को उनकी फसल की बाजार में कम कीमत मिल रही है।

 

 

 

  • खड़ी फसल और सब्जियों को फायदा

दिव्यायन कृषि विज्ञान केंद्र के डॉ अजीत कुमार सिंह ने बताया कि गरमा सीजन में खेत मे लगी खड़ी फसल मकई, धान और उद्यान फसल में सब्जियों में भिंडी, कद्दू समेत लत्तर वाली सब्जी के पौधों नेनुआ, झिंगी, फ्रेंचबीन के पौधों को हल्की बारिश से फायदा हुआ है। रांची में करीब 40 हजार हेक्टेयर जमीन पर किसानों ने सब्जी की खेती की है। गरमा सीजन के लत्तर वाले अन्य पौधों खीरा, ककड़ी के विकास में हल्की बारिश से फायदा हुआ है।

 

 

 

  • खेत में बिचड़े के लिए बीज गिराने का काम शुरू

खेत में धान की पैदावार लेन के लिए बिचड़े गिराने का काम शुरू हो गया है। किसान खेत तैयार करने के बाद पिछले 15 मई से ही बिचड़े तैयार करने में जुट गए हैं। इस माह के अंत तक इस काम में और तेजी आएगी। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक मानसून के आरंभ में 15 जून तक बिचड़े के लिए बीज खेत में गिराने का काम पूरा हो जाएगा। इसके बाद 21 से 25 दिन के बीच बिचड़े रोपनी के लायक हो जाएंगे। इसके अलावा किसान सीजन की दलहन और लत्तर वाली सब्जी की खेती की भी तैयारी में जुट गए हैं।

 

 

 

  • 1.60 लाख हेक्टेयर भूमि पर होगी धान की खेती

रांची के 18 प्रखंड में इस बार 1.60 लाख हेक्टेयर भूमि पर धान की खेती किसानों करेंगे। सरकार की ओर से उचित समर्थन मूल्य मिलने को लेकर किसान धान की खेती के लिए उत्साहित हैं। पिछले साल की तुलना में इस बार करीब 35 हजार हेक्टेयर अधिक जमीन पर धान की खेती होगी। रांची में कुल खेती योग्य भूमि करीब 2.25 लाख हेक्टेयर है। किसानों को उम्मीद है कि मानसून अनुकूल रहा तो इस बार दोन एक और तीन से धान की अच्छी पैदावार मिलेगी। किसानों को ऐसी उम्मीद टांड़ और दोन दो श्रेणी वाले खेत से किसानों को मिल रही उपज के आधार पर है।

 

 

 

ग्लोबल वार्मिंग से जलवायु में हो रहे बदलाव का असर झारखण्ड में मई माह में दिख रहा है। इस माह में बारिश मौसम में बदलाव का भी संकेत है। इसमें सबसे बड़ा कारण पश्चिमी विक्षोभ बन रहा है। इसी के प्रभाव से पूर्वी भारत में साइक्लोनिक सरकुलेशन का व्यापक असर है।

अभिषेक आनंद, वैज्ञानिक, मौसम केंद्र, राँची

 

 

प्री मानसून गतिविधि शुरू होने के बाद से झारखण्ड में कहीं-कहीं हल्के से मध्यम दर्जे की बारिश हो रही है। इससे खरीफ फसल की तैयारी में किसानों को सहयोग मिलेगा। हल्की बारिश से जमीन में नमी आने से जुताई के लायक खेत तैयार हो रहे हैं।

आकाश भगत

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