संविधान को जानें: संविधान के किस प्रावधान के तहत होती है राज्यपाल की नियुक्ति?
भारत एक संघीय ढांचे वाला लोकतांत्रिक देश है जहां राज्यों की खास भूमिका होती है। राज्यों के विकास और तरक्की के लिए वहां एक अपनी सरकार होती है। इसके साथ-साथ जैसे केंद्र में देश का प्रमुख राष्ट्रपति होता है वैसे ही राज्यों का प्रमुख राज्यपाल होता है। राज्यपालों की नियुक्ति मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।
आमतौर पर यह देखा जाता है कि राज्यपाल राज्य के मुख्यमंत्री के सलाह पर ही काम करता है। हालांकि राज्यपालों की भूमिका पर समय-समय पर सवाल उठते रहे है। राज्यपालों की भूमिका तब अहम हो जाती है जब किसी राज्य में अल्पमत की सरकार चल रही हो या सरकार बनाने के लिए दांव पेंच का सवाल हो। लेकिन क्या आपको पता है कि राज्यपाल की नियुक्ति संविधान के किस प्रावधान के तहत की जाती है? आखिर राज्यपाल के पास राज्य में कैसी शक्तियां होती हैं?
भारतीय संविधान का भाग VI राज्यों से संबंधित है जिसे संघीय ढांचे के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। संविधान के अनुच्छेद 152 से 237 तक में राज्यों से संबंधित विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 153 के तहत प्रत्येक राज्य में राज्यपाल की व्यवस्था की गई है। अनुच्छेद 155 के तहत ही राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति की जाती है। राज्यपाल राज्यों में संवैधानिक प्रमुख होता है और केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। राज्यपाल देश के संघीय प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है जो केंद्र और राज्यों के बीच एक पुल का काम करता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 153 से लेकर 162 तक में राज्यपाल की भूमिका वर्णित की गई है। राज्यों के राज्यपाल कमोबेश राष्ट्रपति की ही तरह होता है। सामान्यत: राज्यपाल राज्यों में राष्ट्रपति जैसे ही भूमिका का निर्वहन करता है। राज्यों में राज्यपाल की भूमिका को चार भागों में बांटा गया है।
- कार्यकारी
- विधायी
- वित्तीय
- न्यायिक
कार्यकारी
कार्यकारी के तहत राज्यपाल के पास बहुमत वाले नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने तथा मंत्रिमंडल को गठित करने में मुख्यमंत्री की सहायता करने का अधिकार होता है।
विधायी
राज्यपाल के पास विधान सभा की बैठक को किसी भी आपात काल में बुलाने का और स्थगित करने का अधिकार होता है। राज्यपाल चाहे तो वह दोनों सदन की संयुक्त बैठक भी बुला सकता है। राज्यपाल के पास राज्य की विधान सभा द्वारा किसी भी विधेयक को रद्द करने और राष्ट्रपति के पास समीक्षा के लिए भेजने का भी अधिकार होता है। गौर करने वाली बात यह भी है कि राज्य का विधानसभा राज्यपाल की अनुमति के बिना कोई भी विधेयक पारित नहीं कर सकता है।
वित्तीय
राज्यपाल इस बात को भी सुनिश्चित करता है कि राज्य का वार्षिक वित्तीय बजट विधानमंडल के समक्ष रखा जाए। इसके अलावा कोई भी धन विधेयक उसकी अनुमति के बाद ही विधानसभा में प्रस्तुत किया जाए।
न्यायिक
न्यायिक मामलों में भी राज्यपाल के पास खास अधिकार होता है। राज्यपाल उच्च न्यायालय से विचार करने के बाद जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है। उनके स्थानांतरण पर और पदोन्नति पर भी फैसला लेता है। वह न्यायिक आयोग से भी जुड़े लोगों के नियुक्ति करता है।
आपको यह जानना भी बहुत जरूरी है कि संविधान के अनुच्छेद 163 के तहत राज्यपाल को विशेष शक्ति मिली हुई है और यह सकती है विवेकाधिकार का। राज्यपाल स्वविवेक संबंधी कार्यों में मंत्री परिषद का सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है। इसके अलावा यदि किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं है तो ऐसे में नए सरकार के लिए निमंत्रण देना राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करता है। सरकार को बहुमत सिद्ध करने के लिए कितना समय दिया जाना चाहिए, यह भी राज्यपाल अपने विवेक के आधार पर तय कर सकता है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राज्यपालों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। लोकतंत्र को सुचारू रूप से चलाने में राज्यपाल अहम भूमिका निभाते हैं। राज्यपालों की भूमिका पर वर्तमान के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही थी। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के अनुसार राज्यपाल राज्य का संरक्षक और मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है और देश के संघात्मक ढांचे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।