अक्षय नवमी पर दान से होती है अक्षय पुण्य फल प्राप्ति
आज अक्षय नवमी है, इसे आंवला नवमी भी कहा जाता है। इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु और आंवले के वृक्ष की पूजा का विशेष महत्व होता है तो आइए हम आपको अक्षय नवमी व्रत एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं।
जाने अक्षय नवमी के बारे में
कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाया जाता है। इस साल 2 नवंबर को अक्षय नवमी मनाई जा रही है। हिन्दू धर्म में अक्षय नवमी का खास महत्व है। अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ की पूजा कर उसके नीचे भोजन करने का खास महत्व होता है। पंडितों का मानना है कि महिलाएं आंवला के पेड़ की पूजा करती है और उसके नीचे बैठकर संतान की प्राप्ति तथा उसकी रक्षा हेतु प्रार्थना करती हैं। साथ ही अक्षय नवमी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का खास महत्व होता है।
अक्षय नवमी का महत्व
पुराणों में वर्णन किया गया है कि अक्षय नवमी के दिन ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक नामक दैत्य को मारा था। साथ ही अक्षय नवमी के दिन ही श्रीकृष्ण ने कंस का वध करने से पहले तीन वनों की परिक्रमा की थी। आंवला नवमी के दिन लोग मथुरा-वृंदावन की परिक्रमा करते हैं तथा रात में जगराता भी कराते हैं। शास्त्रों की मान्यता है कि अक्षय नवमी से द्वापर युग का आरम्भ हुआ था। इसी दिन कृष्ण ने कंस का वध भी किया था और धर्म की स्थापना की थी। आंवले को अमरता का फल भी कहा जाता है।
अक्षय नवमी पर ऐसे करें पूजा
सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर नदी या पास के तालाब में स्नान कर साफ कपड़े पहनें। उसके बाद आवंले के पेड़ के चारो तरफ सफाई करनी चाहिए। इसके बाद आंवले के पेड़ पर जल अर्पित करें। फिर हल्दी, चावल, फूल और कुमकुम या सिंदूर से आंवला की पूजा करना चाहिए। शाम को आंवले के पेड़ के नीचे घी का दीपक जलाएं तथा हवन भी करें। विधिपूर्वक पूजा करने आंवले के पेड़ की 7 बार परिक्रमा करनी चाहिए। जब परिक्रमा पूरी हो जाए तो लोगों को प्रसाद बांटना चाहिए। उसके बाद आवंले के पेड़ के नीचे भोजन करना चाहिए।
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बीमारियों से लड़ने में मददगार है आंवला
आंवला में भरपूर मात्रा में विटामिन सी होता है जो विभिन्न प्रकार के रोगों से लड़ने में मददगार होता है इसलिए अक्षय नवमी के दिन आंवला जरूर खाएं।
अक्षय नवमी से जुड़ी पौराणिक कथा
प्राचीन काल में काशी नाम के नगर में एक वैश्य दम्पत्ति रहता था जो निःसंतान था। उसके धन-सम्पत्ति खूब थी लेकिन संतान नहीं होने के कारण दम्पत्ति बहुत दुखी रहते थे। एक दिन वैश्य की पत्नी को उसकी एक पड़ोसन ने कहा अगर किसी बच्चे की बलि दे तो उसको संतान प्राप्त होगी। इस पर उसके एक कन्या वह कुएं धकेल दिया। इसके बाद कन्या की मृत्यु हो गयी और वह उसकी आत्मी दम्पत्ति को सताने लगीं। वैश्य की पत्नी को कोढ़ भी हो गया। वैश्य को जब पता चला तो वह बहुत खुश हुआ और उसने अपनी पत्नी को कहा कि तुमने बहुत बड़ा अपराध किया है। तुम गंगा किनारे जाकर अपने पापों का पश्चाताप करो। वैश्य की पत्नी ने ऐसा ही किया। तब मां गंगा ने प्रसन्न होकर उससे कहा कि अक्षय नवमी पर आंवले की पूजा कर आंवला खाओ तब तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। इस तरह आंवले की पूजा तथा अक्षय नवमी के व्रत से वैश्य दम्पत्ति के सभी कष्ट दूर हो गए और उन्हें संतान की भी प्राप्ति हुई।
आंवले के पेड़ से जुड़ी रोचक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मां लक्ष्मी भ्रमण करने के लिए पृथ्वी लोक पर आईं। रास्ते में उन्हें भगवान विष्णु और शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। माता लक्ष्मी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की पूजा कैसे हो सकती है। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय होती है और बेलपत्र भगवान शिव को। मां लक्ष्मी को ख्याल आया कि तुलसी और बेल का गुण एक साथ आंवले के पेड़ में ही पाया जाता है। ऐसे में आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिन्ह मानकर मां लक्ष्मी ने आंवले की वृक्ष की पूजा की। कहा जाता है कि पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया, जिस दिन मां लक्ष्मी ने शिव और विष्णु की पूजा की थी, उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। तभी से कार्तिक शुक्ल की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाने लगा।
अक्षय नवमी पर दान का है खास महत्व
अक्षय नवमी के दिन नदियों में स्नान करने के पश्चात दान का विशेष महत्व है। इस दिन लोग मंदिर में जाकर विविध प्रकार के दान देते हैं। इस दिन पूजा-अर्चन ,स्नान तर्पण ,अन्न आदि का दान तथा परोपकार करने से अक्षय पुण्य फल की प्राप्ति होती है |
अक्षय नवमी पर इन उपायों से होता है लाभ
इस नवमी को पति-पत्नी को साथ में उपासना करने से परम शांति , सौभाग्य ,सुख एवं उत्तम संतान की प्राप्ति होती है और पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति भी मिलती है। अक्षय नवमी के दिन पति-पत्नी को उत्तम फल की प्राप्ति हेतु संयुक्त रूप से पांच आंवले के वृक्ष के साथ-साथ पांच अन्य फलदार वृक्ष भी लगाना चाहिए। पूजा-अर्चना के बाद बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ खीर, पूड़ी, सब्जी और मिष्ठान आदि का भोग लगाने से लाभ मिलता है। इस दिन आंवला के वृक्ष की पूजा कर 108 बार परिक्रमा करने से समस्त मनोकामनाएं पूरी होतीं हैं। आंवला पूजन के बाद वृक्ष की छांव में ब्राह्मण भोज भी कराते है तथा स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करते है।
– प्रज्ञा पाण्डेय