करवा चौथ व्रत की पूजन विधि, शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय

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कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ अथवा करक चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए गणेशजी की पूजा करने का विधान है। भगवान शिव-पार्वती ने भी अपने विवाह काल में सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा की थी। इसका उल्लेख कवि कुल सम्राट गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य में किया है। इस व्रत की पूजा को आवश्यक कहा गया है। करवा चौथ के दिन व्रती को नित्य कर्म से निवृत्त होकर गणेशजी की पूजा के लिए मन में दृढ़ संकल्प करना चाहिए कि मैं आज दिन भर निराहार रहकर गणेशजी के ध्यान में तत्पर रहूंगी और रात्रि में जब तक चंद्रोदय नहीं हो जायेगा तब तक निर्जल व्रत करूंगी।

इस साल करवा चौथ पर 70 साल बाद एक महत्वपूर्ण संयोग बनेगा। दरअसल इस बार सर्वार्थ सिद्धि योग तो बन ही रहा है साथ ही शिवयोग, बुधादित्य योग, सप्तकीर्ति, महादीर्घायु और सौख्य योग का भी निर्माण हो रहा है। ये सभी योग मिलकर इस दिन की महत्ता को इतना बढ़ा देते हैं कि इस बार का करवा चौथ अखण्ड सौभाग्य देने वाला होगा। इस साल करवा चौथ कथा और पूजन का शुभ मुहूर्त 5:34 बजे से शाम 6:52 बजे तक है। देखा जाये तो इस बार चतुर्थी तिथि चार नवंबर सुबह 3:24 बजे से 5 नवंबर सुबह 5:14 बजे तक है। इस साल चंद्रोदय रात 8 बजकर 16 मिनट पर होगा। विभिन्न शहरों में हालांकि चंद्र दर्शन मौसम के हिसाब से कुछेक मिनट आगे-पीछे हो सकते हैं।

  • पूजन विधि

व्रत में करवा चौथ माता की प्रतिमा के नीचे दो करवों में जल भरकर रखना चाहिए। उस करवे के गले में धागा लपेट कर सिंदूर से रंगना चाहिए। करवे के ऊपर चावल से भरा हुआ कटोरा रखकर सुपारी भी रखनी चाहिए। नैवेद्य के रूप में उस पर चावल का बना हुआ लड्डू रखें। इसके अतिरिक्त प्रतिमा के पास खीर, पूड़ी, चावल के आटे में उड़द की पीठी भरकर पकाया हुआ पकवान भी नैवेद्य के रूप में अर्पित करें। इसके अतिरिक्त ऋतु फल के अनुसार सिंघाड़ा, केला, नारंगी, गन्ना आदि जो कुछ भी पदार्थ उपलब्ध हो, उसे अर्पित कर भक्तिपूर्वक कथा श्रवण करें। कथा के अंत में पूर्व में स्थापित उन करवों को दाहिनी ओर से बायीं ओर और बायीं ओर रखे हुए करवे को दाहिनी ओर घुमाकर स्थापित कर दें। इस प्रक्रिया को लोकभाषा में करवा फेरना भी कहते हैं। इस प्रकार विधि विधानपूर्वक पूजन करने से व्रती के ऊपर गणेश जी की प्रसन्नता होती है और इसके फलस्वरूप उसे मनोवांछित फल की प्राप्ति एवं अखण्ड सौभाग्यता मिलती है।

ध्यान रखें

-करवा चौथ व्रत में शिवजी, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेशजी तथा चंद्रमा का पूजन करना चाहिए।
-चन्द्रोदय के बाद चंद्रमा के दर्शन कर अर्घ्यदान देकर ही सुहागिन स्त्रियां जल व भोजन ग्रहण करती हैं।
-पूजा के बाद तांबे या मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री तथा कंघी, शीशा, सिंदूर, चूड़ियां, रिबन तथा रुपये रखकर दान करना चाहिए।
-सुहागिन महिलाएँ जिस चुन्नी को ओढ़कर कथा सुनें उसी चुन्नी को ओढ़कर चंद्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद छलनी में दीया रखकर चंद्रमा को उसमें से देखें और फिर उसके बाद उसी छलनी से अपने पति को देखें। इसके बाद पति के पैर छूकर आशीर्वाद लें और उनके हाथ से मीठा खाकर और जल पीकर व्रत खोलें। फिर घर के बड़ों से आशीर्वाद लें और दान-दक्षिणा के लिए यथाशक्ति सामान अलग से रख दें।
  • कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी के सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने उत्तर दिया कि भाई अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्य देकर भोजन करूंगी। बहन की बात सुनकर भाइयों ने नगर से बाहर जाकर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें प्रकाश दिखाते हुए बहन से कहा कि चांद निकल आया है अब अर्घ्य देकर भोजन कर लो।
यह सुनकर उसने अपनी भाभियों से कहा कि आओ तुम चंद्रमा का अर्घ्य दे लो परन्तु वे इस कांड को जानती थीं। उन्होंने कहा कि अभी चांद नहीं निकला है तुम्हारे भाई अग्नि जलाकर तुमसे धोखा कर रहे हैं। भाभियों की बात पर बहन ने ध्यान नहीं दिया और भाइयों द्वारा दिखाए प्रकाश को चंद्रमा समझकर अर्घ्य दे दिया और भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गये। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ भी घर में था वह सब उसकी बीमारी को दूर भगाने में खर्च हो गया। जब उसे अपने दोष का पता चला तो उसे पश्चाताप हुआ और उसने गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना शुरू कर दिया और श्रद्धापूर्वक सबका आदर कर आशीर्वाद प्राप्त करने में लग गई।
इस प्रकार उसकी श्रद्धा भक्ति से प्रभावित होकर भगवान गणेश जी उस पर प्रसन्न हो गये और उसके पति को जीवनदान देते हुए उसे कष्टों से मुक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई भी बिना छल कपट के और श्रद्धा भक्ति के साथ चतुर्थी के इस व्रत को करेगा वह सब प्रकार से सुखी होते हुए सभी क्लेशों और कष्टों से मुक्त हो जाएगा।
आकाश भगत

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