पंजाब में दलित मतदाताओं के महत्व को दर्शाता है मतदान की तारीख में किया गया बदलाव

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चंडीगढ़| पंजाब में गुरू रविदास जयंती के मद्देनजर मतदान की तारीख को छह दिन आगे बढ़ाने के निर्वाचन आयोग के फैसले से पता चलता है कि राज्य में विभिन्न राजनीतिक दलों के लिए दलित वोट कितने महत्वपूर्ण हैं।

पंजाब में 14 फरवरी को मतदान होना तय हुआ था लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रतिवेदन के मद्देनजर निर्वाचन आयोग ने मतदान की तारीख को आगे बढ़ाकर 20 फरवरी कर दिया ताकि गुरू रविदास के जयंती उत्सव के दौरान व्यस्तताओं के चलते दलित समुदाय के लोग मतदान से वंचित न रह जाएं। गुरू रविदास जयंती 16 फरवरी को है।
पंजाब में अनुसूचित जाति की आबादी 31.94 प्रतिशत है, जो देश के सभी राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है।

सभी राजनीतिक दल 20 फरवरी को होने वाले पंजाब विधानसभा चुनावों के लिए उन्हें लुभाने की कोशिश कर रहे हैं।

भारत के निर्वाचन आयोग ने पंजाब में एक चरण में होने वाले चुनाव के लिये मूल रूप से गुरू रविदास की जयंती से दो दिन पहले यानी 14 फरवरी मतदान की तारीख तय की थी, जिसके बाद सभी राजनीतिक दल हरकत में आए और निर्वाचन आयोग से कहा कि दलित मतदाता पंजाब और वाराणसी के बीच यात्रा के चलते मतदान से वंचित रह सकते हैं।

शुरुआत में बसपा, उसके बाद मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, फिर भाजपा, पंजाब लोक कांग्रेस, शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) और आम आदमी पार्टी ने आयोग से 16 फरवरी को गुरू रविदास की जयंती के बाद मतदान कराने का आग्रह किया।
दलित वोटों के महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि पिछले साल कांग्रेस पार्टी ने चरणजीत सिंह चन्नी को राज्य का मुख्यमंत्री नियुक्त किया था, जो इस पद पर पहुंचने वाले अनुसूचित जाति के पहले व्यक्ति हैं।
साल 2020 में कृषि कानूनों को लेकर भाजपा से नाता तोड़ने वाले शिरोमणि अकाली दल ने राज्य विधानसभा चुनावों के लिए पिछले साल बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया था।

आम आदमी पार्टी ने भी एससी समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का वादा किया है, साथ ही व्यावसायिक पाठ्यक्रमों या प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए उनकी कोचिंग फीस वहन करने का भी वादा किया है।

पंजाब के दोआबा क्षेत्र के जालंधर, होशियारपुर, कपूरथला और नवांशहर जिलों में अनुसूचित जाति समुदाय की एक बड़ी आबादी है।
पंजाब की कुल 117 सीटों में से 34 विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं।
पंजाब विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर रोणकी राम ने बताया कि पंजाब में कुल 39 अनुसूचित जातियां हैं। उनमें से प्रमुख हैं चमार , आद-धर्मी , बाल्मीकि , मजहबी और राय सिख। राज्य में जितनी एससी आबादी है, उनमें से लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा इन उपजातियों का है।

आद-धर्मी और चमार रविदासिया और रामदासियों में विभाजित हैं।
ऐसा अनुमान है कि दोआबा क्षेत्र में लगभग 12 लाख रविदासिया रहते हैं।
जालंधर में डेरा सचखंड बल्लां राज्य में रविदासियों का सबसे बड़ा डेरा है।

गुरू रविदास के अनुयायी बड़ी संख्या में उनकी जयंती पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी जाते हैं।
जानकारों का कहना है कि आम तौर पर, विभिन्न विचारधाराओं और संबद्धता के कारण एससी वोट विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच विभाजित होते हैं। उन्होंने कहा कि हर पार्टी अपने वादों के साथ एससी समुदाय को लुभाने की कोशिश करती है।
पंजाब यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर आशुतोष कुमार ने कहा, यहां के दलित जाति, क्षेत्रीय और धार्मिक आधार पर बंटे हुए हैं।
फगवाड़ा सीट से कांग्रेस उम्मीदवार बलविंदर सिंह धालीवाल ने कहा कि चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने से विशेष रूप से एससी समुदाय और सामान्य रूप से आम आदमी के लिए बहुत बड़ा बदलाव आया है।

उन्होंने दावा किया कि चन्नी फैक्टर के कारण कांग्रेस पार्टी की ओर एक निश्चित झुकाव है।
शिरोमणि अकाली दल के नेता और पार्टी उपाध्यक्ष जरनैल सिंह वाहिद ने आगामी चुनाव में दलित समुदाय के महत्व को रेखांकित करते हुएकहा कि राज्य की 64 विधानसभा सीटों पर अनुसूचित जाति समुदाय का प्रभाव है।

उन्होंने कहा कि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी दोनों के कार्यकर्ता अगले महीने होने वाले चुनाव में शिअद-बसपा गठबंधन की जीत सुनिश्चित करने के लिए उत्साहपूर्वक काम कर रहे हैं।
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पिछले साल गुरू रविदास के दर्शन और शिक्षाओं को कायम रखने के लिए 101 एकड़ भूमि पर गुरू रविदास की पीठ स्थापित करने की घोषणा की थी। उन्होंने बाबा साहेब की गौरवशाली विरासत को कायम रखने के लिए अत्याधुनिक डॉ बी आर अंबेडकर संग्रहालय की भी घोषणा की थी।

चन्नी के अलावा, पंजाब कांग्रेस प्रमुख नवजोत सिंह सिद्धू, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल सहित अन्य नेताओं ने जालंधर में डेरा सचखंड बल्लां का दौरा किया है।

शिअद प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने पिछले साल दोआबा क्षेत्र में डॉ बी आर अंबेडकर के नाम पर एक विश्व स्तरीय विश्वविद्यालय बनाने और एससी और बीसी समुदायों के लिए अलग-अलग कल्याण विभाग स्थापित करने का वादा किया था।

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