कौन हैं दबंग राजा भैया? जिनका विवादों से है गहरा नाता

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  • मायावती के साथ है कट्टर दुश्मनी
रघुराज प्रताप सिंह जिन्हें राजनीति की दुनिया में राजा भैया के नाम से जाना जाता है। राजा भैया अकसर अपनी दबंगई को लेकर सुर्खियों में बनें रहते हैं। राजा भैया अपने पैतृक स्थानीय विधानसभा क्षेत्र कुंडा उत्तर प्रदेश से एक स्वतंत्र एमएलए हैं। 16 नवंबर 2018 को राजा भैया ने घोषणा की कि वह अपनी पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक बना रहे हैं।
इससे पहले 2007 उत्तर प्रदेश चुनाव में राजा भैया एक लोकप्रिय नेता के रूप में उभरे। नेशनल पार्टी ‘बहुजन समाज पार्टी’ के शिव प्रकाश मिश्रा को उन्होंने कुंडा से बुरी तरह से हराया और पहली बार उत्तर प्रदेश की विधानसभा पहुंचे। 2007 में वह एक निर्दलीय के रूप में खड़े हुए थे, जिसका उन्हें काफी फायदा हुआ। शानदार जीत के बाद राजा भैया ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। प्रतापगढ़ क्षेत्र के पांच विधानसभा क्षेत्रों के साथ-साथ पड़ोसी बिहार में कुछ विधानसभा क्षेत्रों पर भी उनका काफी प्रभाव है।
उनकी दबंगई के चर्चे इस तरह है कि जिस जगह पर उनका प्रभाव होता है वहां चुनावी रैलियों में कोई विपक्षी नेता उनपर हमला नहीं करता है। दंबगई के कारण राजा भैया का विवादों से भी बहुत पुराना नाता है। कुंडा से लगातार पांच बार निर्दलीय विधायक चुने गए राजा भैया पर अब तक आठ मुकदमे दर्ज हैं, जिनमें हत्या के प्रयास, डकैती-चोरी-चकारी, लूट-पाट, बलवा, मारपीट, शांति भंग, दंगा करवाना की मंशा जैसे मामले हैं।

 

 

 

  • मायावती और राजा भैया की दुश्मनी
रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया, उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस नाम की चर्चा गाहे-बगाहे खूब हो जाती है। चाहे सत्ता किसी की भी हो, उसमें राजा भैया की भागीदारी रहती ही रहती है। समाजवादी पार्टी और भाजपा की सरकारों में राजा भैया की तूती बोलती थी। लेकिन मायावती के साथ उनके रिश्ते सामान्य नहीं रहे। मायावती और राजा भैया के बीच सियासी दुश्मनी की शुरुआत साल 1997 में होती है। जब मायावती भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनी थीं। उस वक्त भाजपा और बसपा में डील हुई थी वह भी 6-6 महीने के मुख्यमंत्री पद पर बनें रहेंगे। मायावती 6 महीने का मुख्यमंत्री कार्यकाल पूरा कर चुकी थीं और अब बारी भाजपा की थी।
हालांकि मायावती सत्ता हस्तांतरित करने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थीं। लेकिन सियासी दबाव में मायावती को अपनी कुर्सी छोड़नी पड़ी। फिर कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने, लेकिन कुछ महीने में ही मायावती ने अपना समर्थन वापस ले लिया। ऐसे में भाजपा के लिए सरकार को बचाना सबसे बड़ी चुनौती थी। यहां एंट्री होती है रघुराज प्रताप उर्फ राजा भैया की। राजा भैया ने भाजपा सरकार बचाने के लिए कांग्रेस और बसपा विधायकों को तोड़ लिया और कल्याण सिंह की सरकार बचाने में मदद की। कल्याण सिंह ने राजा भैया को फिर अपने सरकार में मंत्री बना दिया। यहीं से शुरू हो गई मायावती और राजा भैया के बीच की राजनीतिक दुश्मनी।

 

 

 

 

  • मायावती ने कसा था राजा भैया पर शिकंजा
एक बार फिर से कुछ ऐसी ही परिस्थिति 2002 में बनी जब बसपा और भाजपा की सरकार थी। गठबंधन लगातार हिचकोले खा रही थी। ऐसे में राजा भैया ने गठबंधन को मजबूत करने की कोशिश की। उन्हें इनाम देते हुए भाजपा ने मायावती की कैबिनेट में राजा भैया को मंत्री बनाने का प्रस्ताव भेजा। लेकिन मायावती ने साफ तौर पर इंकार कर दिया। इतना ही नहीं, इसी साल भाजपा विधायक पूरन सिंह बुंदेला की शिकायत पर मायावती ने राजा भैया को आतंक निरोधक अधिनियम के तहत गिरफ्तार करवा कर जेल में भी डलवा दिया। इसके बाद मायावती ने राजा भैया की हवेली में पुलिस का छापा तक डलवा दिया। हवेली से काफी हथियार भी बरामद हुए थे। राजा भैया पर पोटा लगाया गया था। उनके पिता उदय प्रताप सिंह और चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह को भी अपहरण और धमकी देने के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। 2007 के चुनावों के बाद के बाद जब बहुमत के साथ मायावती सत्ता में आयी तो उन्होंने सीएम पद पर बनें रहने के दौरान रघुराज उर्फ राजा भैया को पुलिस के रडार पर ला दिया।
  • राजा भैया के तलाब में नरकंकाल!
मायावती का राजा भैया के खिलाफ एक्शन जारी रहा। प्रतापगढ़ स्थित राजा भैया की रियासत की कोठी के पीछे 600 एकड़ में फैली तलाब को भी मायावती ने खुदवा दिया। कहा जाता है कि इस तालाब से नरकंकाल भी मिले थे जिसके बारे में कई कहानियां बताइए बताई जाती रही है। कहा जाता है कि राजा भैया इसमें घड़ियाल पाल रखे थे और अपने दुश्मनों को उसी में फेंकवा दिया करते थे। हालांकि राजा भैया ने इस दावे का बार-बार खंडन किया। उस तालाब को मायावती ने सरकारी कब्जे में ले लिया था और इसे भीमराव अंबेडकर पक्षी विहार घोषित करवा दिया था। यही एक गेस्ट हाउस भी बनवा दिया गया था। राजा भैया अगले 10 महीनों तक अलग-अलग जेलों में बंद रहे। मायावती की सरकार 2003 में गिर गई। मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने। राजा भैया जेल से रिहा हुए। मुलायम सिंह की सरकार में राजा भैया मंत्री भी बने। राजा भैया के तालाब को पक्षी विहार में तब्दील करने वाले मायावती सरकार के फैसले को मुलायम सिंह ने पलट भी दिया। हालांकि मायावती का राजा भैया से अदावत जारी रहा। सत्ता में आने के बाद मायावती ने फिर से उस तालाब को पक्षी विहार बनवा दिया और 2010 के पंचायत चुनाव में एक प्रत्याशी की हत्या के आरोप में फिर से राजा भैया को गिरफ्तार करवा लिया था।
राजा भैया और उनसे जुड़े विवाद
  • 2002 में पोटा के तहत जेल
  • 2002 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक असंतुष्ट विधायक पूरन सिंह बुंदेला द्वारा कथित अपहरण और गंभीर परिणाम की धमकी देने की प्राथमिकी पर, रघुराज को तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के आदेश पर सुबह लगभग 4:00 बजे गिरफ्तार कर लिया गया।
  • 2 नवंबर 2002। बाद में उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व वाली सरकार ने उन्हें आतंकवादी घोषित कर दिया, और उन्हें अपने पिता उदय प्रताप सिंह और चचेरे भाई अक्षय प्रताप सिंह के साथ आतंकवाद रोकथाम अधिनियम (पोटा) के तहत जेल भेज दिया गया। इसके बाद, अक्षय को जमानत मिल गई, लेकिन रघुराज की दलीलें कई बार खारिज कर दी गईं।
  • जेल से कैबिनेट मंत्री तक
2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार के सत्ता में आने के 25 मिनट के भीतर, उनके खिलाफ सभी पोटा आरोप हटा दिए गए थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को पोटा आरोपों को खारिज करने से रोक दिया। अंततः पोटा अधिनियम 2004 में निरस्त कर दिया गया था और अदालत ने रघुराज को रिहा करने से इनकार कर दिया। तमाम बवाल के बाद भी वह सरकार के समर्थन के कारण शक्तिशाली व्यक्ति बन गये। फिर पुलिस अधिकारी आर.एस. पांडे (जिसने उनके घर पर छापेमारी का नेतृत्व किया) ने उनके खिलाफ प्रतिशोध शुरू किया। अंततः आर.एस. पांडे एक सड़क दुर्घटना में मारे गए थे, जिसकी जांच वर्तमान में सीबीआई द्वारा की जा रही है। 2005 में, वह खाद्य और नागरिक आपूर्ति मंत्री बने, और उनके लंबित आपराधिक मामलों के बावजूद, उन्हें राज्य द्वारा प्रदान की जाने वाली उच्चतम स्तर की सुरक्षा (जेड-श्रेणी) सौंपी गई। 2018 में उन्होंने बसपा उम्मीदवार डॉ अम्बेडकर के खिलाफ राज्यसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया। उनकी पार्टी ने प्रतापगढ़ और कौशांबी की दो सीटों पर अकेले लोकसभा चुनाव लड़ा।
  • डीएसपी जिया उल हक हत्याकांड
3 मार्च 2013 को, रघुराज प्रताप सिंह उर्फ ​​राजा भैया के निर्वाचन क्षेत्र कुंडा में ग्रामीणों और पुलिस के बीच संघर्ष के दौरान पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी) जिया उल हक की मौत हो गई थी। मारे गए अधिकारी की पत्नी परवीन आज़ाद की शिकायत के बाद, प्रतापगढ़ पुलिस ने राजा भैया के खिलाफ “साजिश” में कथित रूप से शामिल होने के लिए मामला दर्ज किया है, जिसके परिणामस्वरूप सामूहिक युद्ध हुआ और बाद में पुलिस अधिकारी की हत्या हुई। प्राथमिकी में परवीन ने कहा है कि उसके पति की हत्या राजा भैया के गुर्गों ने की थी। उसने कुंडा नगर पंचायत के अध्यक्ष गुलशन यादव, राजा भैया के प्रतिनिधि हरियन श्रीवास्तव और राजा भैया के ड्राइवर गुड्डू सिंह को मुख्य आरोपी बनाया है। उसने दो अन्य ग्रामीणों – कामता प्रसाद पाल और राजेश कुमार पाल का भी नाम लिया है।
पुलिस ने प्राथमिकी में नामजद अन्य आरोपियों के खिलाफ हत्या का मामला दर्ज किया है। इसके अलावा इस मामले को आगे की जांच के लिए दिनांक 07.2.2013 को विशिष्ट जांच एजेंसी सीबीआई को सौंप दिया गया था। सीबीआई ने उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री राजा भैया के निर्वाचन क्षेत्र में शनिवार को वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जिया-उल-हक और दो अन्य की हत्या के मामले में चार अलग-अलग मामले दर्ज किए हैं।
आकाश भगत

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