जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी के तकनीक से पाकुड़ में स्वदेशी जंगल लगाने की हुई पहल
झारखण्ड/पाकुड़ : विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर पाकुड़ में जिला स्तरीय स्टैडियम के पिछले हिस्से में लगभग एक हे0 भूमि पर मियावाकी तकनीकि से बन रहा है जंगल।
जापानी वनस्पतिशास्त्री अकीरा मियावाकी के नाम पर, मियावाकी विधि एक वन पुनर्जनन तकनीक है जिसका उद्देश्य कम या बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के अपमानित भूमि पर आत्मनिर्भर बहुस्तरीय स्वदेशी जंगलों को फिर से बनाना है।
- क्या है, मियावाकी तकनीकि
अकिरा मियावाकी एक जापानी वनस्पतिशास्त्री तथा पौधों के पारिस्थितिकी तंत्र विशेषज्ञ हैं, जो पौधों के बीजों तथा प्राकृतिक वनों के बारे में शोध के जाने जाते हैं। अवकृष्ट भूमि को पुर्नजीवित करने तथा प्राकृतिक जंगल लगाए जाने के तरीके के बारे में पूरा विश्व इनका लोहा मानता है। जो जंगल सामान्यतः प्राकृतिक अवस्था में 300 से 500 वर्ष में तैयार हो पाते हैं, उस तरह के जंगल में इस तकनीकि से मात्र 20-30 वर्षों में ही तैयार हो जाया करते हैं। इस तकनीकि से जंगल लगाने पर उनकी वृद्धि सामान्य रूप से एकल पौधा रोपण की तुलना में 10 गुणा तक तेज होती है।
इस तकनीकि से सर्वप्रथम मिट्टी की गहरी जुताई कर उसमें घास को निकाल दिया जाता है, इसके बाद उसमें कम्पोस्ट, पत्तों की खाद, चावल की भूसी इत्यादि मिलाकर मिटी को छिद्रदार बनाया जाता है, ताकि उसमें हवा का प्रवेश निर्वाध रूप से होता रहे तथा मिट्टी हल्की हो जाय। इसके बाद स्थानीय प्रजाति के विविध प्रकार के पौधों का रोपण किया जाता है, तथा जमीन को पुआल या सूखी पत्तियों से ढ़क दिया जाता है, ताकि सूर्य की सीधी किरणें उनपर नहीं पड़ें। इससे मिट्टी में जैविक गतिविधि काफी बढ़ जाती है, तथा पौधों की जड़ें आपस में मिलकर एक दूसरे पौधों को बढ़ने में सहयोग करती हैं। इसके साथ ही पौधा रोपण काफी घना होने से प्रकाश कि लिये पौधों में प्रर्तिष्पर्धा के कारण उनकी बढ़वार एकल पौधें की वृद्धि की तुलना में 10 गुणा तक अधिक हो जाया करती है।
- क्या है वन विभाग की तैयारी
वर्तमान में पाकुड़ के जिला स्तरीय स्टेडियम के पीछे लगभग एक हे0 क्षेत्रफल में मियावाकी तकनीकि से वृक्षारोपण कार्यक्रम की शुरूआत उपायुक्त कुलदीप चौधरी, पुलिस अधीक्षक मणिलाल मंडल, जिला वन पदाधिकारी रजनीश कुमार के द्वारा किया गया। वर्तमान में 130 फीट 20 फीट के क्षेत्रफल में 21 प्रजाति के 250 पौधों का रोपण किया गया, जिसमें करम, काजू, जामुन, पुत्रजीवक, गंभार, बानाहाटा, आंवला, महोगनी, बेल, अमलताश, कदम, पीपल, गुलमोहर, साल, आम, सीमल तथा अर्जुन प्रमुख हैं। इतने से छोटे से क्षेत्रफल में 1 ट्रैक्टर गाय के गोबर का कम्पोस्ट, 1 ट्रैक्टर पत्तों की खाद, 1 ट्रैक्टर धान की भूसी का प्रयोग हुआ है, तथा पौधा रोपण के उपरांत दो ट्रैक्टर धान का पुाआल का प्रयोग देर शाम तक किया गया है।
इस तकनीकि से प्रभावित होकर, पुलिस अधीक्षक मणिलाल मंडल के द्वारा पुलिस लाईन में इस तकनीकि से वृक्षारोपण करने का प्रस्ताव वन प्रमण्डल पदाधिकारी को दिया गया। वन प्रमण्डल पदाधिकारी के द्वारा इस वर्ष आयोजित होने वाले वन महोत्सव में इस इस तरह के वन लगाने के बारे में आश्वासन दिया।
- क्या होेंगे फायदे इस तकनीकि से जंगल उगाने से
इस तकनीकि से वृक्षारोपण करने से इन जंगलों में पक्षियों, मधुमक्खियों तथा तिलियों की भरमार होगी। इन जंगलों में छोटे-छोटे जीव जन्तु भी निवास कर पाएँगे। पक्षियों के कलर से पाकुड़ शहर गुलजार होगा। इन वनों से एकल वृक्षारोपण की अपेक्षा दस गुणा अधिक ऑक्सीजन देने तथा इसी अनुपात में प्रदूषण सोखने की छमता भी होती है। इस तकनीकि से सीखकर आने वाले दिनों में इस तकनीकि के सहारे जिले के क्रशर तथा माईंस के आस पास भी बहुत तेजी से वन लगाए जा सकते हैं, तथा नगरीय एवं औद्योगिक प्रदूषण रोकने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
इसका उद्धाटन उपायुक्त कुलदीप चौधरी, पुलिस अधीक्षक मणिलाल मंडल, वन प्रमण्डल पदाधिकारी रजनीश कुमार ने संयुक्त रूप से किया। जिसमें शहर के गणमान्य लोगों ने भी भाग लिया तथा इसमें काफी रूची दिखाई।