जब वाजपेयी से बोले थे नवाज शरीफ- आप पाकिस्तान में भी जीत सकते हैं चुनाव !
- अटल की अद्भुत लाहौर बस यात्रा
1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के अलावा भारत और पाकिस्तान के बीच वैसे तो हर युद्ध की शुरुआत छलावे से हुई है। चाहे वो आजादी के बाद कश्मीर हड़पने की साजिश हो या 1965 में स्थानीय बगावत छेड़ने की कोशिश। लेकिन वक्त के साथ ही दोनों देशों की हुकूमतों भी बदली और साथ ही बदल रहा था माहौल। सियासी फिजाओं के साथ ही दुनियाभर में भारत का रूतबा बढ़ रहा था।
11 मई 1998 को पोखरण में परीक्षण कर भारत ने दुनिया को चौंका दिया था। जिसके बाद आता है 1999 का साल, जब तपो-तपाए सियासतदां वाजपेयी जब बस लेकर लाहौर गए थे। 19-20 फरवरी की तारीखें निकाली गईं और तैयारियां जल्दी ही हिंदुस्तानी बारात की तरह दिखाई देने लगीं। बस में यात्रा पर साथ जाने वाले आमंत्रित लोगों में देव आनंद, कपिल देव, कुलदीप नैयर, जावेद अख्तर, सतीश गुजराल, शत्रुघ्न सिन्हा और मल्लिका साराभाई थे।
- वाजपेयी से बोले नवाज- आप यहां से भी जीत सकते हैं चुनाव
साल 1999 में जब अटल जी बस लेकर लाहौर पहुंचे थे उस वक्त वहां की जनता के बीच उन्होंने अपनी एक अलग ही छाप छोड़ी थी। वाजपेयी जब लाहौर पहुंचे और अपने पाकिस्तानी समकक्ष नवाज शरीफ को गले लगाकर अपनी प्रिय छवि की छाप छोड़ी। अपने देश में अटल बिहारी वाजपेयी के लिए दिवानगी देखकर नवाज शरीफ ने कहा था कि अगर आप यहां से चुनाव लड़े तो आराम से जीत सकते है।
- अटल की कविता ने जीता लोगों का दिल
लाहौर यात्रा के दौरान अटल बिहारी मिनार-ए-पाकिस्तान भी गए। वहां भी अटल ने अपनी वाकपटुता और बेबाकी दिखाते हुए कहा था कि मुझे कई लोगों ने कहा कि यहां नहीं आना चाहिए क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो फिर पाकिस्तान के निर्माण को मंजीरी मिल जाएगी। लेकिन मैं यहां पर आना चाहता था क्योंकि मुझे जो कुछ भी बताया गया उसमें कोई भी तर्क नहीं है।
लाहौर में गवर्नर हाउस में आयोजित समारोह में अपनी कविता- विश्व शांति के हम साधक हैं, जंग न होने देंगे! कभी न खेतों में फिर खूनी खाद फलेगी,खलिहानों में नहीं मौत की फसल खिलेगी,आसमान फिर कभी न अंगारे उगलेगा,एटम से नागासाकी फिर नहीं जलेगी,युद्धविहीन विश्व का सपना भंग न होने देंगे। पढी और उनके भाषणों ने पाकिस्तान के लोगो का दिल जीत लिया।
- पाकिस्तान की दगा
वाजपेयी के करीबी लोगों का कहना है कि उनका मिशन पाकिस्तान के साथ संबंधों को सुधारना था और इसके बीज उन्होंने 70 के दशक में मोरारजी देसाई की सरकार में बतौर विदेश मंत्री रहते हुए ही रोपे थे। लेकिन अपनी हरकतों के आगे मजबूर पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध के रूप में घात दिया तो पाकिस्तान के छल और धोखे के जवाब में भारतीय जवानों ने ऑपरेशन विजय के रूप में उसे ऐसा घाव दिया जिसकी टीस आज भी उसके जेहन में जिंदा है।