राष्ट्रीय चेतना के कवि मैथिलीशरण गुप्त, जिनका जिक्र कर PM मोदी ने 21वीं सदी के परिपेक्ष्य में पढ़ी पंक्तियां
संसद का बजट सत्र चल रहा है। जिस खड़ी का हर किसी को इंतजार था कि प्रधानमंत्री संसद में क्या बोलेंगे। प्रधानमंत्री जब बोलते हैं तो पूरा देश गौर से सुनता है। कृषि कानून के लेकर कोरोना काल के दौर का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत का जिक्र किया।
इस दौरान पीएम मोदी ने राष्ट्रकवि मैशिलीशरण गुप्त का जिक्र करते हुए कहा कि जब मैं अवसरों की चर्चा कर रहा हूं तो मुझे मैथिलीशरण गुप्त की कविता याद आती है जिसमें उन्होंने कहा है कि मैं अवसर तेरे लिए खड़ा है, फिर भी तू चुपचाप पड़ा है। तेरा कर्म क्षेत्र बड़ा है, पल-पल अनमोल, अरे भारत उठ, आंखे खोल।
जिसके बाद पीएम मोदी ने कहा कि मैं सोच रहा था कि इस कालखंड में 21वीं सदी के आरंभ में अगर उन्हें लिखना होता तो क्या लिखते? इसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मैथिलीशरण गुप्त की लाइनों की तर्ज पर कहा कि अवसर तेरे लिए खड़ा है, तू आत्मविश्वास से भरा पड़ा है, हर बाधा. हर बंदिश तो तोड़, अरे भारत आत्मनिर्भरता के पथ पर दौड़…
पीएम मोदी ने आज संसद में जिस कवि की रचना का जिक्र करते हुए उसे 21वीं सदी के परिपेक्ष्य से जोड़ते हुए दो पंक्तियां पढ़ीं वो नाम जिनके बिना राष्ट्रभाषा हिंदी के शब्द सितारों का कोई भी सफर पूरा नहीं होता। ये सितारा है मैथिली शरण गुप्त। गुलाम हिन्दुस्तान में शब्दों के इस सितारे ने अपनी लेखनी से देश में नई अलख जगा दी थी। आजादी के बाद हिन्दुस्तान ने अपने इस सपूत को राष्ट्रकवि का सम्मान दिया। राष्ट्रकवि की एक-एक रचना विश्व साहित्य की अनमोल धरोहर है।
चिरगांव की एक कस्बा जहां कि मिट्टी में भारत के ऐसे सपूत का जन्म हुआ जिसकी लेखनी ने आजादी के आंदोलन को नए जोश से भर दिया। जिसने महात्मा गांधी को भी अपनी कलम का कायल बनाया। मैथलि शरण गुप्त ने जब हिंदी की सेवा शुरू की उस वक्त बृज बोली का वर्चस्व था। आयार्च महावीर प्रसाद द्विवेदी हिंदी के लिए आंदोलन चला रहे थे और इसी दौरान आचार्य मैथिलीशरण गुप्त के गुरू बन गए। सरस्वती के माध्यम से उनकी कविता को उत्कृष्ट सम्मान मिला। 300 कविताएं सरस्वती में लिखी। मैथिलीशरण ने गोरी हुकूमत के खिलाफ खुलकर लिखना शुरू कर दिया। वैसे तो उनकी एक-एक रचना कालजयी थी और लोगों पर गहरी असर करती थी लेकिन 1910 में आई रंग में भंग ने लोगों को जोश से भर दिया था।
“आज भी चितौड़ का सुन नाम कुछ जादू भरा
चमक जाती चंचला सी चित में करके त्वरा”
1914 में आई भारत भारती ने उन्हें लोकप्रियता के राष्ट्रीय स्तर पर बिठा दिया। इस कविता ने उस वक्त के हिन्दुस्तान के कठिन हालात के प्रति लोगों को कुछ इस तरह सावधान करते हैं।
“हम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी
आआों विचारें आज मिलकर ये समस्याएं सभी
यद्यपि इतिहास हमें अपना प्राप्त पूरा है नहीं
हम कौन थे ये ज्ञान फिर भी अधूरा है नहीं “
भारत भारती की लोकप्रियता का आलम ये था कि सारी प्रतियां देखते ही देखते समाप्त हो गईं। और दो महीने के भीतर दूसरा प्रकाशन प्रकासित करना पड़ा। भारत भारती साहित्य जगत में आज भी नवजागरण का ऐतिहासिक दस्तावेज था। मैथिलीशरण गुप्त ने इसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों की बात कही है।
“मानस भवन में आर्यजन जिसकी उतारें आरती
भगवान! भारतवर्ष में गूंजे हमारी भारती
हो भद्रभावोद्भभाविनी वह भारती हे भगवते
सीतापते! सीतापते! गीतामते! गीतामते!”
राष्ट्रीय आंदोलनों, शिक्षा संस्थानों और प्रात: कालीन प्रार्थनाओं में भारत भारती गाई जाती थी। गांव-गांव में अनपढ़ लोग भी इसे सुनकर याद कर चुके थे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन के बाद जब नागपुर में झंडा सत्याग्रह हुआ तो सभी सत्याग्रही भारत भारती के गीत गाते सत्याग्रह करते। गोरी सरकार ने भारत भारती पर पाबंदी लगा दी और सारी प्रतियां जब्त कर ली गई।