Hariyali Teej 2025: नारी की आस्था, प्रेम और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम हरियाली तीज
भारतीय संस्कृति में श्रावण मास का विशेष महत्व है और इसी महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है हरियाली तीज। यह पर्व विशेष रूप से विवाहित महिलाओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, जो पति की लंबी उम्र, वैवाहिक सुख और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए यह व्रत रखती हैं। इस दिन धरती पर हरियाली छा जाती है, झूले पड़ते हैं, लोक गीत गाए जाते हैं और वातावरण भक्तिभाव व उल्लास से भर जाता है। देखा जाये तो हरियाली तीज केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय नारी की श्रद्धा, प्रेम, और प्राकृतिक सौंदर्य से जुड़ा उत्सव है। यह पर्व हमें परंपरा, प्रकृति और पारिवारिक संबंधों की अहमियत को याद दिलाता है। हरियाली तीज पर स्त्रियाँ जिस आनंद, श्रृंगार और भक्ति के साथ त्योहार मनाती हैं, वह भारतीय संस्कृति की जीवंतता का अद्भुत उदाहरण है।
हरियाली तीज का महत्व
पार्वती-शिव मिलन का प्रतीक- यह दिन देवी पार्वती के द्वारा भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के तप और सफलता का प्रतीक है।
विवाहित स्त्रियों का सौभाग्य पर्व- महिलाएँ अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत करती हैं।
प्रकृति उत्सव- हरियाली तीज वर्षा ऋतु के दौरान आता है जब प्रकृति अपने हरे-भरे रूप में होती है।
इसे भी पढ़ें: Hariyali Teej 2025: प्रकृति का त्योहार है हरियाली तीज
पूजन सामग्री
मिट्टी या धातु की शिव-पार्वती प्रतिमा
अक्षत, रोली, चंदन, पुष्प, दूब
मेहंदी, चूड़ी, साड़ी, सिंदूर, काजल आदि श्रृंगार सामग्री
पकवान: घेवर, मालपुए, पूड़ी, हलवा आदि
फल, पान, सुपारी, नारियल
दीपक, धूप, कपूर
पूजा विधि
प्रातः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें और निर्जल व्रत का संकल्प लें।
पूजा स्थल को सजाएँ, शिव-पार्वती की मूर्ति को स्थापित करें।
उन्हें जल, दूध, पंचामृत से स्नान कराएँ और वस्त्र, फूल, अक्षत अर्पित करें।
श्रृंगार सामग्री अर्पित करें। सुहागिन स्त्रियाँ 16 श्रृंगार करके पूजा करती हैं।
दीपक जलाकर हरियाली तीज व्रत कथा पढ़ें या सुनें।
“ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
अंत में आरती करके प्रसाद वितरण करें।
हरियाली तीज पर महिलाओं के समूह गीत गाते हुए झूला झूलते दिखाई देते हैं। इस दिन बेटियों को बढ़िया पकवान, गुजिया, घेवर, फैनी आदि सिंधारा के रूप में भेजा जाता है। इस दिन सुहागिनें बायना छूकर सास को देती हैं। इस तीज पर मेंहदी लगाने का विशेष महत्व है। स्त्रियां हाथों पर मेंहदी से भिन्न−भिन्न प्रकार के बेल बूटे बनाती हैं। स्त्रियां पैरों में आलता भी लगाती हैं जो सुहाग का चिन्ह माना जाता है।
यह त्योहार भारतीय परम्परा में पति पत्नी के प्रेम को और प्रगाढ़ बनाने तथा आपस में श्रद्धा और विश्वास पैदा करने का त्योहार है। इस दिन कुंवारी कन्याएं व्रत रखकर अपने लिए शिव जैसे वर की कामना करती हैं। विवाहित महिलाएं अपने सुहाग को भगवान शिव तथा पार्वती से अक्षुण्ण बनाए रखने की कामना करती हैं। इस तीज पर निम्न बातों को त्यागने का विधान है− पति से छल कपट, झूठ बोलना एवं दुर्व्यवहार, परनिन्दा। कहते हैं कि इस दिन गौरी विरहाग्नि में तपकर शिव से मिली थीं। इस दिन राजस्थान में राजपूत लाल रंग के कपड़े पहनते हैं। माता पार्वती की सवारी निकाली जाती है। राजा सूरजमल के शासन काल में इस दिन कुछ पठान कुछ स्त्रियों का अपहरण करके ले गये थे, जिन्हें राजा सूरजमल ने छुड़वाकर अपना बलिदान दिया था। उसी दिन से यहां मल्लयुद्ध का रिवाज शुरू हो गया।
इस पर्व को बुन्देलखंड में हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में इसे कजली तीज के रूप में मनाने की परम्परा है। राजस्थान के लोगों के लिए त्यौहार जीवन का सार है खासकर राजधानी जयपुर में इसकी अलग ही छटा देखने को मिलती है। यदि इस दिन वर्षा हो, तो इस पर्व का आनंद और बढ़ जाता है। राजस्थान सहित उत्तर भारत में नवविवाहिता युवतियों को सावन में ससुराल से मायके बुला लेने की परम्परा है। सभी विवाहिताएँ इस दिन विशेष रूप से श्रृंगार करती हैं। सायंकाल सज संवरकर सरोवर के किनारे उत्सव मनाती हैं और कजली गीत गाते हुए झूला झूलती हैं।
बताया जाता है कि जयपुर के राजाओं के समय में पार्वती जी की प्रतिमा, जिसे ‘तीज माता’ कहते हैं, को एक जुलूस उत्सव में दो दिन तक ले जाया जाता था। उत्सव से पहले प्रतिमा का पुनः रंगरोगन किया जाता है और नए परिधान तथा आभूषण पहनाए जाते हैं इसके बाद प्रतिमा को जुलूस में शामिल होने के लिए लाया जाता है। हजारों लोग इस दौरान माता के दर्शनों के लिए उमड़ पड़ते हैं। शुभ मुहूर्त में जुलूस निकाला जाता है। सुसज्जित हाथी और बैलगाड़ियां इस जुलूस की शोभा को बढ़ा देते हैं।
-शुभा दुबे