रंजीत सिंह दिसाले ने जीता ‘गोल्डन टीचर’ पुरस्कार
पुणे : दस लाख डॉलर की इनामी राशि वाला ग्लोबल टीचर प्राइज-2020 जीतने वाले महाराष्ट्र के सोलापुर के प्राथमिक शिक्षक रंजीत सिंह दिसाले ने कहा कि ज्ञान सिर्फ बांटने की चीज है। साथ ही सिंह ने कहा कि वह ‘सरहदों से परे’ जाकर छात्रों के लिए काम करना चाहते हैं, क्योंकि वह पूरी दुनिया को अपनी कक्षा के तौर पर देखते हैं।
उन्होंने कहा कि वह पुरस्कार राशि में से 20 फीसदी राशिअपनी ‘ लेट्स क्रॉस द बॉर्डर्स’ परियोजना के लिए प्रदान करेंगे। इस परियोजना का लक्ष्य संघर्ष प्रभावित देशों भारत, पाकिस्तान, फलस्तीन, इजराइल, ईरान, इराक और उत्तर कोरिया के विद्यार्थियों और युवाओं के बीच अमन कायम करना है। दिसाले सोलापुर के परितेवादी स्थित जिला परिषद प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाते हैं।
बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने एवं देश में त्वरित कार्रवाई (क्यूआर) कोड वाली पाठ्यपुस्तक क्रांति में महती प्रयास के लिए उन्हें 10 लाख डॉलर के वार्षिक ग्लोबल टीचर प्राइज, 2020 का विजेता चुना गया।
पुरस्कार जीतने के बाद उन्होंने घोषणा की कि वे 50 फीसदी पुरस्कार राशि अपने प्रतिभागियों में समान रूप से वितरित करेंगे।
एक मराठी चैनल से बात करते हुए 32 वर्षीय दिसाले ने कहा, ‘‘ एक शिक्षक हमेशा अपने ज्ञान और जानकारियों को विद्यार्थियों के साथ साझा करता है। मुझे यह पुरस्कार शिक्षकों, विद्यार्थियों और शिक्षा के लिए किए गए कामों की वजह से मिला है।’’
जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने पुरस्कार राशि इस पुरस्कार की दौड़ में शामिल अन्य प्रतिभागियों के साथ साझा करने का निर्णय क्यों लिया तो उन्होंने कहा, ‘‘ अगर मैं पुरस्कार की 50 फीसदी राशि अन्य प्रतिभागी शिक्षकों के साथ साझा करता हूं तो इससे उन्हें वह करने में मदद मिलेगी, जो वह अपने देश में करना चाहते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर मैं भारत में विद्यार्थियों के लिए काम करना चाहता हूं, लेकिन इसी तरह से मैं सरहदों के पार के विद्यार्थियों के लिए भी काम करना चाहता हूं, क्योंकि मैं पूरी दुनिया को अपनी कक्षा मानता हूं।’’
दिसाले ने कहा कि वह पुरस्कार राशि में से 30 फीसदी धनराशि शिक्षक नवाचार निधि के लिए आवंटित करना चाहते हैं। वह इसकी स्थापना को लेकर योजना बना रहे हैं। दिसाले ने कहा कि उन्होंने खुद को एक पेशेवर शिक्षक के तौर पर तैयार करने का निश्चय किया है। उन्होंने कहा विदेशों मे शिक्षक अधिक पेशेवर हैं। वे अपनी आय का एक हिस्सा खुद के विकास पर खर्च करते हैं।एक शिक्षक के तौर पर जब मैं उनके संपर्क में आया तो मैने यह फर्क जाना।
गौरतलब है कि वर्ष 2009 में दिसाले जब सोलापुर के पारितवादी के जिला परिषद प्राथमिक विद्यालय पहुंचे थे तब वहां स्कूल भवन जर्जर दशा में था तथा ऐसा लग रहा था कि वह मवेशियों की रहने की जगह और स्टोररूम के बीच का स्थान है।
उन्होंने चीजें बदलने का जिम्मा उठाया और यह सुनिश्चित किया कि विद्यार्थियों के लिए स्थानीय भाषाओं में पाठ्यपुस्तक उपलब्ध हो।उन्होंने न केवल पाठ्यपुस्तकों का विद्यार्थियों की मातृमें अनुवाद किया जबकि उसमें विशिष्ट क्यूआर कोड की व्यवस्था की ताकि छात्र-छात्राएं ऑडियो कविताएं और वीडियो लेक्चर एवं कहानियां तथा गृहकार्य पा सकें।
उनके प्रयास का फल यह हुआ कि तब से गांव में किशोरावस्था में ब्याहे जाने की घटना सामने नहीं आयी और विद्यालयों में लड़कियों की शत-प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित हुई।