Varad Chaturthi 2025: तिलकुंद वरद चतुर्थी व्रत से सभी संकट होते हैं दूर

0
आज तिलकुंद वरद चतुर्थी व्रत है, यह त्योहार भगवान गणेश को समर्पित है, जो विघ्नहर्ता और बुद्धि के देवता हैं। गणेश चतुर्थी का व्रत करने से व्यक्ति के जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है तो आइए हम आपको तिलकुंद वरद चतुर्थी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 
जानें तिलकुंद वरद चतुर्थी के बारे में 
1 फरवरी को तिलकुंद वरद चतुर्थी का व्रत रखा जा रहा है।  माघ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को तिल चतुर्थी, कुंद चतुर्थी अथवा तिलकुंद चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा में तिल और कुंद के फूलों का बड़ा ही महत्व है। पंडितों के अनुसार माघ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को वैनायकी श्री गणेश चतुर्थी व्रत के साथ ही उमा चतुर्थी के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से महिलाओं के द्वारा कुंद और अन्य पुष्पों से, गुड़ से और नमक से गौरी पूजा की जाती है। साथ ही विनायक चतुर्थी के दिन ब्राह्मणों और गायों का भी विशेष सम्मान किया जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति को हर तरह की सुख-समृद्धि मिलती है। लिहाजा इस दिन भगवान श्री गणेश के साथ ही माता गौरी की पूजा का भी विधान है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी व्रत किया जाता है। यह गणपति जी की जन्म तिथि है, शास्त्रों के अनुसार इस दिन गणेश की उपासना करने से घर में सुख-समृद्धि, आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ ज्ञान एवं बुद्धि प्राप्ति होती है। गणेश जी भक्तों के कार्यों में आने वाले संकटों को दूर करते हैंय उनकी कृपा से व्यक्ति के कार्य बिना विघ्न बाधा के पूर्ण होते हैं।

इसे भी पढ़ें: Basant Panchami 2025: विवाह मुहूर्तों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है वसंत पंचमी की तिथि

तिलकुंद वरद चतुर्थी का शुभ मुहूर्त 
01 फरवरी 2025, प्रातः 11:38 से दोपहर 01:40 तक
इस तरह वरद तिल चतुर्थी का व्रत 1 फरवरी को रखा जाएगा। शास्त्रों के अनुसार जिस दिन चतुर्थी तिथि लगी है चतुर्थी का व्रत भी उसी दिन से शुरू होगा। 
तिलकुंद वरद चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा का महत्व
वरद तिल चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा की जाती है इससे  मन को शांति व सुख मिलता है। इस दिन गणेश पूजन करने से सभी कष्टों को दूर करते हैं। श्री गणेश अपने भक्तों को धन, विद्या, बुद्धि के साथ ही ऐश्वर्य का आशीर्वाद देते हैं। साथ ही जीवन के सभी संकट दूर होने का वरदान भी प्राप्त होता है। 
वरद तिल चतुर्थी पूजा का मुहूर्त और विधि
वरद चतुर्थी की पूजा के लिए, ब्रह्म मुहूर्त और गोधूलि मुहूर्त का समय शुभ माना जाता है। इसके बाद चांद देखकर भी गणेश जी की पूजा की जाती है। वरद तिल चौथ पर भगवान गणेश की विशेष पूजा होती है। तिल से जुड़े धार्मिक कार्य किए जाते हैं। लोग तिल-गुड़ के लड्डू बनाकर भगवान को भोग लगाते हैं। तिल का दान भी महत्वपूर्ण है। तिलकुटा और तिल का चूरमा भी इस दिन बनाया जाता है। व्रत रखने वाले लोग पूरा दिन कुछ नहीं खाते। शाम को चांद देखकर अर्घ्य देते हैं। गणेश जी की पूजा और चतुर्थी व्रत की कथा भी सुनी जाती है।
तिलकुंद वरद चतुर्थी के दिन ऐसे करें पूजा
तिलकुंद वरद चतुर्थी गणेश जी की पूजा को समर्पित है। वरद तिल चतुर्थी की पूजा ब्रह्म मुहूर्त और गोधूलि मुहूर्त में की जाती है। वरद तिल चतुर्थी के दिन सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर साफ-स्वच्छ वस्त्र पहनें। इसके बाद आसन पर बैठकर भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। पूजा के दौरान भगवान श्रीगणेश को धूप-दीप दिखाएं। अब श्री गणेश को फल, फूल, चावल, रौली, मौली चढ़ाएं। पंचामृत से स्नान कराने के बाद तिल अथवा तिल-गुड़ से बनी वस्तुओं व लड्डुओं का भोग लगाएं। जब श्रीगणेश की पूजा करें तो अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें। पूजा के बाद ‘ॐ श्रीगणेशाय नम:’ का जाप 108 बार करें। शाम के समय कथा सुनें व भगवान की आरती उतारें। शास्त्रों के अनुसार इस दिन गर्म कपड़े, कंबल, कपड़े व तिल आदि का दान करें।
तिलकुंद वरद चतुर्थी पर करें ये शुभ काम
पंडितों के अनुसार इस दिन ऊनी कपड़े, कंबल, जूते-चप्पल, कपड़े, खाना और तिल आदि का दान करना चाहिए। शनि देव के निमित्त तेल और काले तिल का दान करें। किसी मंदिर में पूजन सामग्री जैसे कुमकुम, गुलाल, अबीर, हार-फूल, प्रसाद, भगवान के वस्त्र-आभूषण, चंदन, घी-तेल, रूई आदि चीजें दान करें। तिलकुंद चतुर्थी पर पूजा-पाठ के साथ ही तिल का दान खासतौर पर करना चाहिए। पानी में काले तिल मिलाकर स्नान करें। नहाने से पहले शरीर पर तिल से बना उबटन लगा सकते हैं। गणेश जी को तिल के लड्डू का भोग लगाएं। इस दिन तिल से हवन कर सकते हैं। खाने में तिल का सेवन करें। शाम को चंद्र उदय के बाद चंद्र की पूजा करें और तिल-गुड़ का भोग लगाएं।
तिलकुंद वरद चतुर्थी से जुड़ी पौराणिक कथा
शास्त्रों के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं से घिरे थे और भगवान शिव से मदद मांगने आए थे। तब शिवजी ने कार्तिकेय और गणेशजी से पूछा कि तुममें से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। दोनों ने ही स्वयं को इस काम के लिए सक्षम बताया। भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेने के लिए कहा कि जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वही देवताओं की मदद करेगा। गणेशजी ने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। यह देखकर कार्तिकेय ने खुद को विजेता बताया। तब गणेशजी ने कहा कि माता-पिता के चरणों में ही पूरा लोक है। भगवान शिव ने गणेशजी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी।
तिलकुंद वरद चतुर्थी पर ऐसे करे व्रत 
तिलकुंद वरद चतुर्थी के दिन सुबह उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। इसके बाद भगवान गणेश की मूर्ति को गंगाजल से शुद्ध करें। फिर गणेश जी को लाल फूल, दूर्वा, मोदक और फल आदि अर्पित करें। फिर विनायक चतुर्थी की कथा का पाठ और ‘ॐ गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप किया जाता है। दिन भर व्रत रखें और शाम को चंद्र दर्शन के बाद ही भोजन करें।
– प्रज्ञा पाण्डेय
Report: Input

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *