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झारखण्ड में भाजपा की हार अप्रत्याशित रही। राज्य में कांटे का मुकाबला कहने वाले राजनीतिज्ञों ने भी नहीं सोचा था कि NDA का राज्य में ऐसा सुपड़ा साफ हो जायेगा। हार के बाद अब भाजपा कारणों की तलाश रही है। अभी जो प्रारंभिक वजह जो दिख रही है, वो जयराम फैक्टर।

 

भाजपा और आजसू गठबंधन को अगर पूरे चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ, उसकी वजह जयराम महतो की पार्टी रही।

 

जयराम महतो इस चुनाव में इतने असरदार रहे कि ना डेमोग्राफी चेंज का मुद्दा चला, ना गोगो दीदी योजना और ना ही घुसपैठ, लव जिहाद और लैंड जिहाद। जयराम महतो ने आधे से ज्यादा सीटों पर भाजपा-आजसू को नुकसान पहुंचाया। जयराम महतो की पार्टी भले 1 ही सीट जीती मगर कम से कम राज्य की 33 सीटों पर तीसरे स्थान, 2 पर दूसरे पायदान पर रहकर एक नई राजनीतिक लकीर जरूर खींच दी है।

 

 

डुमरी में झामुमो का किला ढ़ाह दिया

डुमरी विधानसभा को झारखंड मुक्ति मोर्चा की जागीर समझा जाता था। यहां कोई भी प्रत्याशी खड़ा हो, अगर पार्टी झामुमो हो, तो जीत की गारंटी कही जाती थी, लेकिन इस चुनाव में जयराम महतो ने इतिहास बदल दिया। 2005 के बाद हुए पांच चुनावों में जिस सीट पर लगातार सोरेन की पार्टी जीती, वहां 29 साल के जयराम ने इस चुनाव में बड़ा उलटफेर किया। महतो ने करीब 11 हजार वोटों के अंतर से यहां झामुमो की बेबी देवी को हरा दिया।

 

 

चंदनकियारी और बेरमो में भाजपा को किया पस्त 

जयराम महतो बोकारो के बेरमो विधानसभा से चुनाव लड़ रहे थे। बेरमो में कांग्रेस से कुमार जयमंगल सिंह और भारतीय जनता पार्टी के रवीन्द्र पांडेय आमने-सामने थे, वहां जयराम महतो की जबरदस्त एंट्री हुई। बेरमो में जयराम महतो दूसरे नंबर पर रहे। आलम ये हुआ कि भाजपा के रवीन्द्र पांडेय को तीसरे स्थान पर रहना पड़ा। रविंद्र पांडेय को तकरीबन 58 हजार वोट मिले, जबकि जयराम महतो को 61 हजार वोट मिले।

 

 

चंदनकियारी में अमर बाउरी भी कैची के शिकार

चंदनकियारी विधानसभा में भाजपा के अमर बाउरी महतो को भी कैची का शिकार होना पड़ा। यहां से जयराम महतो की पार्टी से अर्जुन रजवार प्रत्याशी थे। रजवार को यहां 56 हजार 294 वोट मिले, जबकि अमर बाउरी 56 हजार 91 वोट के साथ तीसरे पर लुढ़क गये।

 

 

BJP गठबंधन पर 11 सीटों पर हुआ नुकसान 

जयराम महतो की पार्टी ने करीब एक दर्जन सीट पर तीसरे नंबर पर अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज करा भाजपा गठबंधन के साथ असल खेल कर दिया। दरअसल, महतो की पार्टी कम से कम 33 सीटों पर तीसरे नंबर पर रही। पर इन 33 में से 14 सीट पर महतो की पार्टी के कैंडिडेट्स की मौजूदगी ने जीत और हार को प्रभावित कर दिया। 14 सीटों पर महतो की पार्टी के कैंडिडेट्स को हारने वाले प्रत्याशी से भी ज्यादा वोट आए।

 

अगर आंकड़ों की बात करें तो इनमें से 11 पर एनडीए (7 – बीजेपी, 3 – आजसू, 1 – जेडीयू) हारी जबकि केवल तीन सीट पर झारखंड मुक्ति मोर्चा को नुकसान हुआ। भाजपा बोकारो, गिरिडीह, कांके, खरसांवा, निरसा, सिंदरी और टुंडी समेत कुल 7 सीटें हार गई। यहां जीत और हार की अंतर से ज्यादा महतो की पार्टी के कैंडिडेट्स को वोट आए। इसी तरह, भाजपा की सहयोगी आजसू – ईचागढ़, रामगढ़ और सिल्ली जैसे अपने गढ़ में जितनी वोटों से हारी, उससे अधिक यहां महतो की पार्टी वोट ले आई।

 

कमाल की बात ये है कि भाजपा-आजसू नहीं, भाजपा की सहयोगी जनता दल यूनाइटेड तमार सीट पर करीब 24 हजार वोट से हार गई. जबकि यहीं महतो की पार्टी के कैंडिडेट को 27 हजार वोट मिला। इस तरह, एनडीए के 11 प्रत्याशी सीधे तौर पर महतो की पार्टी के कैंडिडेट्स की मौजूदगी की वजह से धराशायी हो गए। इसकी तुलना में झामुमो को कम नुकसान हुआ है. झामुमो को केवल तीन सीट – सरायकेला, सिमरिया और लातेहार गंवानी पड़ी, जहां महतो की पार्टी जीत-हार के अंतर से अधिक वोट ले आई।

 

 

आजसू की बुरी गत भी कैची से 

झारखण्ड में करीब 15 फीसदी है। अभी तक राज्य के कुर्मी समाज में सबसे ज्यादा पकड़ सुदेश महतो की पार्टी आजसू की मानी जाती रही। भाजपा ने भी सीट समझौते में आजसू को 10 सीट दिया था। मगर आजसू के प्रभाव वाली इन सीटों पर जयराम महतो की पार्टी कुछ इस तरह उभरी कि सुदेश महतो को खुद अपनी सिल्ली सीट गंवानी पड़ी। सिल्ली में आजसू के सुदेश महतो करीब 24 हजार वोट से चुनाव हारे जबकि यहां जयराम महतो की पार्टी के कैंडिडेट देवेन्द्र महतो 42 हजार के करीब वोट ले आए।

 

 

उसी तरह से यूं ही, रामगढ़ में आजसू की सुनीता चौधरी महज 7 हजार वोट से चुनाव हार गईं। जबकि यहां जयराम महतो की पार्टी को 71 हजार वोट आए। आजसू इस चुनाव में केवल 1 सीट जीती – मांडू। लेकिन वह भी बड़ी मुश्किल से। यहां पार्टी के निर्मल महतो जीते मगर सिर्फ 231 वोट से। गौर करने वाली बात ये रही कि यहां भी जयराम महतो की पार्टी लगभग 71 हजार वोट ले आई।

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आकाश भगत

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