Rohini Vrat 2023: दो धर्मों के लिए बेहद खास है रोहिणी व्रत, जानिए पूजा का मुहूर्त और महत्व

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हिंदू पंचांग के मुताबिक आज यानी की 31 अक्तूबर को रोहिणी व्रत किया जा रहा है। बता दें कि यह व्रत भगवान वासुपूज्य स्वामी को समर्पित होता है। इस दिन विधि-विधान औप पूरे श्रद्धा भाव से भगवान वासुपूज्य स्वामी की पूजा-आराधना की जाती है। वहीं किसी विशेष कार्य में सफलता पाने के लिए रोहिणी व्रत किया जाता है।
 
इस व्रत को स्त्री व पुरुष दोनों ही कर सकते हैं। धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। ज्योतिष के मुताबिक रोहिणी व्रत पर दुर्लभ भद्रावास का भी निर्माण हो रहा है। आइए जानते हैं रोहिणी व्रत का शुभ मुहूर्त व शुभ योग…

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शुभ मुहूर्त
बता दें कि कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया आज यानी की 31 अक्तूबर को रात 09:30 मिनट तक है। इसके बाद चतुर्थी तिथि लग जाएगी। ऐसे में हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। रोहिणी व्रत हिंदू व जैन धर्म के लिए बेहद खास है। 
भद्रावास योग
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को ‘भद्रावास’ योग का निर्माण हो रहा है। भद्रावास योग का निर्माण सुबह 09:51 मिनट से शुरू होकर रात 09:30 मिनट तक रहेगा। इस दौरान वासुपूज्य की पूजा-अर्चना करने से अक्षय फल की प्राप्ति होगी। धार्मिक मान्यता के मुताबिक भद्रा के स्वर्ग में रहने के दौरान धरती पर रहने वाले सभी पशु-पक्षी, जीव-जंतु और मानव जीवन का कल्याण होता है। 
कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को दुर्लभ ‘भद्रावास’ का निर्माण हो रहा है। इस योग का निर्माण सुबह 09 बजकर 51 मिनट से लेकर रात्रि 09 बजकर 30 मिनट तक है। इस दौरान वासुपूज्य की पूजा करने से अक्षय फल की प्राप्ति होगी। धार्मिक मान्यता है कि भद्रा के स्वर्ग में रहने के दौरान पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव जंतु, पशु पक्षी, मानव जगत का कल्याण होता है।
करण
आज यानी की रोहिणी व्रत के दिन सबसे पहले वणिज करण का निर्माण हो रहा है। सुबह 09:51 मिनट तक वणिज करण का निर्माण हो रहा है। इसके बाद विष्टि करण का निर्माण 09:30 मिनट तक है। हांलाकि इस दौरान कोई भी शुभ कार्य करने की मनाही होती है। वहीं रात में 09:30 मिनट के बाद बव योग का निर्माण हो रहा है। बता दें कि बव और वणिज दोनों ही योग शुभ माने जाते हैं। इस योग में पूजा करने वाले जातक को सभी सुखों की प्राप्ति होती है। इस व्रत के बाद भगवान श्री कृष्ण और माता रोहिणी की पूजा-अर्चना की जाती है।

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