महामारी का रूप ले रही महिलाओं को जान से मारने की घटनाएं

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यूएन विशेषज्ञ के अनुसार, लैंगिक कारणों से महिलाओं व लड़कियों को जान से मारने की घटनाएँ अब एक वैश्विक महामारी का रूप ले रही हैं! 

संयुक्त राष्ट्र के एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने आगाह किया है कि लैंगिक कारणों से महिलाओं व लड़कियों को जान से मार दिए जाने (femicide) का प्रकोप विश्व भर में फैल रहा है, और सदस्य देश लैंगिक हिंसा के पीड़ितों की रक्षा करने के दायित्व में विफल साबित हो रहे हैं।

 

 

 

 

न्यायेतर, बिना अदालती सुनवाई, मनमाने ढंग से मौत की सज़ा दिए जाने पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर मॉरिस टिडबॉल-बिन्ज़ ने यूएन महासभा में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है। उन्होंने कहा कि ‘फ़ेमिसाइड’ एक वैश्विक त्रासदी है, जोकि वैश्विक महामारी के स्तर पर फैल रही है। इससे तात्पर्य, लिंग-सम्बन्धी वजह से किसी महिला व लड़की को जानबूझकर जान से मार देना है।

अक्सर इन घटनाओं को लैंगिक भूमिकाओं की रुढ़िवादी समझ, महिलाओं व लड़कियों के प्रति भेदभाव, महिलाओं व पुरुषों के बीच असमान सत्ता समीकरणों या हानिकारक सामाजिक मानदंडों के कारण अंजाम दिया जाता है।

 

मानवाधिकार विशेषज्ञ ने बताया कि हर वर्ष, हज़ारों लड़कियों व महिलाओं को, उनके लिंग के कारण विश्व भर में जान से मार दिया जाता है, जिनमें ट्रांस महिलाएं भी हैं।

उन्होंने कहा कि अनेक अन्य पर लैंगिक हिंसा का शिकार बनने और मौत होने का जोखिम है, चूंकि सदस्य देश, पीड़ितों के जीवन की रक्षा करने और उनकी सलामती सुनिश्चित करने के दायित्व में विफल हो रहे हैं।

 

विशेष रैपोर्टेयर टिडबॉल-बिन्ज़ ने अपनी रिपोर्ट में सचेत किया है कि लिंग-आधारित कारणों से मारना, लिंग-आधारित हिंसा के मौजूदा रूपों का एक चरम और व्यापक स्तर पर फैला हुआ रूप है।

जवाबदेही पर ज़ोर : इस क्रम में, उन्होंने ‘फ़ेमिसाइड’ के मामलों की जांच के लिए मानकों और सर्वोत्तम तौर-तरीक़ों को रेखांकित किया है, ताकि दंडमुक्ति की भावना से निपटा जा सके, पीड़ितों व उनके परिवारजन को न्याय मिल सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं की रोकथाम हो सके। ‘अनेक देशों में सैकड़ों महिलाएं, लैंगिक पूर्वाग्रह के परिणामस्वरूप हुए अभियोजन और सज़ा दने के तौर-तरीक़ों के कारण, मृत्युदंड मिलने का सामना कर रही हैं’।

विशेष रैपोर्टेयर ने सदस्य देशों से अपने दायित्व का निर्वहन करने, ‘फ़ेमिसाइड’ घटनाओं की जांच व उनका उन्मूलन करने के लिए प्रयासों में मज़बूती लाने का आग्रह किया है। ‘अधिकांश मामलों में दोषी, मगर केवल वही नहीं, संगी या पूर्व-संगी होते हैं और अक्सर जवाबदेही से छूट जाते हैं, अक्सर उपयुक्त जांच के अभाव के कारण’
उनकी रिपोर्ट बताती है कि ‘फ़ेमिसाइड’ मामलों की जांच, इस वैश्विक अभिशाप की शिनाख़्त करने, जवाबदेही तय करने और उसकी रोकथाम करने के लिए अहम है।

लैंगिक वजहों से महिलाओं व लड़कियों को जान से मार दिए जाने की घटनाओं में जानकारी जुटाया जाना ज़रूरी है, ताकि पीड़ितों व उनके परिवारों को न्याय, सच्चाई व मुआवज़ा दिया जा सके। मॉरिस टिडबॉल-बिन्ज़ ने सदस्य देशों से ऐसे क़ानूनी व प्रशासनिक उपायों को अपनाने का आग्रह किया है, जिनसे महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।

उन्होंने सचेत किया कि स्थानीय स्तर पर प्रचलित आस्थाओं, रीति-रिवाज़ों, परम्पराओं और धर्मों का हवाला देते हुए, महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों को सीमित करने से बचना होगा। और ना ही, ‘फ़ेमिसाइड’ के मामलों की जांच-पड़ताल के दौरान इनका इस्तेमाल बचाव के तौर पर किया जाना चाहिए।

 

आकाश भगत

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