जानिए भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी की पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि-विधान से पूजा करने पर संकटों से मिलती है मुक्ति

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हिंदू पंचांग के मुताबिक चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि यानी की 11 मार्च को गणेश चतुर्थी है। इस दिन व्रत रखने का विधान है। इस गणेश चतुर्थी को भालचंद्र संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। आपको बता दें कि इस साल गणेश चतुर्थी पर काफी शुभ योग बन रहा है। पंचांग के अनुसार, गणेश चतुर्थी यानि की भालचंद्र चतुर्थी पर चित्रा और स्वाती नक्षत्र के अलावा ध्रुव और सर्वार्थ सिद्धि का महायोग बन रहा है। आज इस आर्टिकल के जरिए हम आपको भालचंद्र संकष्टी के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और चंद्रोदय के समय के बारे में बताने जा रहे हैं। शुभ मुहूर्त पर पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होता है। 
दो बार पड़ती है चतुर्थी तिथि
हिंदू पंचाग के अनुसार, चतुर्थी तिथि साल में दो बार पड़ती है। पहली चतुर्थी तिथि कृष्ण पक्ष और दूसरी चतुर्थी शुक्ल पक्ष में पड़ती है। चैत्र मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली गणेश चतुर्थी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन विधि-विधान से पूजा किए जाने पर शुभ फल मिलता है।

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भालचंद्र गणेश चतुर्थी 2023 शुभ मुहूर्त
कृष्ण पक्ष चतुर्थी की शुरूआत- 10 मार्च को रात 9 बजकर 42 मिनट से शुरू
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि की समाप्ति- 11 मार्च को रात 10 बजकर 5 मिनट तक
तिथि- उदया तिथि होने के कारण 11 मार्च 2023 को संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जा रहा है।
चित्रा नक्षत्र- सूर्योदय से 7 बजकर 11 मिनट तक
स्वाति नक्षत्र- सुबह 7 बजकर 11 मिनट से 12 मार्च को सुबह 8 बजे तक
धुव्र योग- सूर्योदय से शाम 7 बजकर 51 मिनट तक
चंद्रोदय का समय- रात 9 बजकर 47 मिनट पर
पूजा विधि
गणेश चतुर्थी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें। स्नान के बाद भगवान गणपति का ध्यन करते हुए व्रत रखने का संकल्प लें। इसके बाद विधि-विधान से गणेशजी की पूजा करें। इसके लिए सबसे पहले जल आचमन करवाएं और फिर रोली, फूल, माला, अक्षत और दुर्वा आदि गणेशजी को अर्पित करें। इसके बाद गणेशजी को एक जोड़ी जनेऊ और एक पान के पत्ते में 1 सुपारी, इलायची, 2 लौंग और बताशा का चढ़ावा चढ़ाएं। गणेशजी को मोदक काफी पसंद है। इसलिए मोदक या फिर कुछा मीठा भोग के लिए चढ़ाएं। फिर जल अर्पित करें। घी का दीपक जलाकर गणेशजी की आरती करें और पूजा में हुई किसी भी भूल के लिए सच्चे मन से माफी मांग लें।

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