उच्चतम न्यायालय ने देश में कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट पर चिंता जताई
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नयी दिल्ली| उच्चतम न्यायालय ने देश में कानूनी शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट पर मंगलवार को चिंता व्यक्त की और कहा कि प्रवेश स्तर पर ही व्यवस्था में सुधार की जरूरत है।
शीर्ष अदालत गुजरात उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ ‘बार काउंसिल ऑफ इंडिया’ (बीसीआई) की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें एक ऐसी महिला को अपनी नौकरी से इस्तीफा दिए बिना एक वकील के रूप में पंजीकरण नामांकन करने की अनुमति दी गई थी जो अकेले ही अपने बच्चों का पालन-पोषण कर रही हैं।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति एस. के. कौल ने कहा, ‘‘मैं उचित परीक्षा आयोजित करने के लिए बीसीआई की जिम्मेदारी के बारे में भी कुछ उल्लेख करना चाहता हूं और यह सिफारिश करना चाहता हूं कि प्रवेश स्तर पर प्रणाली को कैसे सुधारा जाए। कुछ सुझाव दें।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हमारे पास एक ऐसी स्थिति है जहां असामाजिक तत्व जाते हैं और कानून की डिग्री प्राप्त करते हैं। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में गौशालाओं में कानून पाठ्यक्रम चल रहे हैं। आपको आत्मनिरीक्षण करना होगा।’’
सुनवाई शुरू होते ही न्याय मित्र के रूप में नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता के. वी. विश्वनाथन ने दलील दी कि एक तंत्र विकसित किया जा सकता है जहां नौकरीपेशा व्यक्तियों का पंजीकरण नहीं किया जाए।
पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश भी शामिल हैं, ने कहा कि जब कोई व्यक्ति अभी भी कार्यरत है तो उसे पंजीकरण की अनुमति देना उचित नहीं हो सकता है।
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘प्रथमदृष्टया, हमें यह स्वीकार करना मुश्किल लगता है कि कोई व्यक्ति दो नावों की एक साथ सवारी कर सकता है।’’
बीसीआई के वकील ने न्याय मित्र की दलीलों का विरोध किया और कहा कि इस तरह के सुझाव मौजूदा मुद्दे के दायरे से बाहर हैं।
उच्चतम न्यायालय ने हालांकि कहा कि जब बार संस्थाएं अपने अधिकारों का दावा करती है तो उन्हें अपनी कमियों का भी जायजा लेना चाहिए।
पीठ ने कहा कि विधि स्कूलों का तेजी से बढ़ना और उनमे दी जाने वाली शिक्षा की गुणवत्ता प्रमुख समस्याओं में से एक है।