क्या है पारसी लोगों के अंतिम संस्कार का तरीका, जिस पर SC ने लगाई रोक

0

कोविड संक्रमण से मारे गए पारसी लोगों को उनके धार्मिक तरीके से अंतिम संस्कार के लिए इजाजत देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है।

 

 

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने टॉवर ऑफ साइलेंस में कोविड संक्रमण से मारे गए पारसी लोगों के अंतिम संस्कार की इजाजत देने से इनकार किया है। कोर्ट की तरफ से ये निर्णय केंद्र सरकार के अंतिम संस्कार के लिए जारी एसओपी को बदलने से इनकार करने पर लिया गया है। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार को समायोजित करने के लिए कोविड​​​​-19 से मरने वालों के शवों के श्मशान / दफन प्रोटोकॉल में बदलाव नहीं करेगी।

 

 

 

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि कोविड से मौत होने पर संस्कार का काम पेशेवर द्वारा किया जाता है और मृत शरीर को खुला नहीं छोड़ा जा सकता है। ऐसे शवों को अगर ठीक से दफनाया या अंतिम संस्कार नहीं किया गया तो कोविड संक्रमित रोगियों के शव के पर्यावरण और जानवरों के संपर्क में आने की संभावना है। शव को दफनाने या दाह संस्कार के बिना (बिना ढके) खुला रखना कोविड पॉजेटिव रोगियों के शवों के निपटान का एक स्वीकार्य तरीका नहीं है।

 

 

  • पारसी समुदाय ने दायर की थी याचिका

गौरतलब है कि पारसी समुदाय की शिकायत है कि कोविड-19 से मरने वाले समुदाय के सदस्यों का पांरपरिक रूप से अंतिम संस्कार नहीं हो पा रहा है। पारसी समुदाय की याचिका गुजरात उच्च न्यायालय ने गत वर्ष 23 जुलाई को खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ शीर्ष अदालत में अपील की गई। शीर्ष अदालत ने छह दिसंबर को मामले में केंद्र और गुजरात सरकार से जवाब तलब किया। याचिका में पारसी समुदाय ने अदालत से अनुरोध किया है कि कोविड-19 से मरने वाले समुदाय के सदस्यों को उनकी परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार करने की अनुमति दी जाए, बजाय कि उनको जलाने की।

 

 

 

  • क्या है दोखमेनाशिनी 

पारसी भारत के समृद्ध समुदायों में से एक है। पारसी अहुरमज्दा भगवान में विश्वास रखते हैं। जिस तरह हिन्दू और सिख धर्म में शव का दाह-संस्कार किया जाता है, इस्लाम और ईसाई धर्म के लोग शव को दफनाते हैं, उसी तरह पारसी शव को ‘कुआं/टॉवर ऑफ साइलेंस’ नामक संरचना में ऊंचाई पर रखा जाता है जिन्हें गिद्ध खाते हैं और सूर्य के संपर्क में आने वाले अवशेषों को क्षत-विक्षत किया जाता है। अधिकांश पारसी इसका पालन करते हैं। इसे दोखमेनाशिनी कहा जाता है।

आकाश भगत

About Author

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed