क्या थे विवादास्पद कृषि कानून ? जिसे केंद्र की मोदी सरकार ने वापस ले लिया

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नयी दिल्ली। केंद्र की मोदी सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। इसके बावजूद किसान आंदोलन जारी है। आपको बता दें कि केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों का एक साल से अधिक समय से विरोध प्रदर्शन चल रहा है। किसान आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने मोदी सरकार के समक्ष अपनी मांगें रखी हैं। जिसके बाद मोदी सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा से बातचीत के लिए नाम मांगे हैं।

संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत के साथ ही मोदी सरकार ने कृषि विधि निरासन विधेयक 2021 पेश किया। जिसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी है। इसमें तीन खंड हैं जिसमें से प्रथम खंड में अधिनियम का संक्षिप्त नाम है। इसके दूसरे खंड में कहा गया है कि कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण)अधिनियम 2020, कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020 और आवश्यक वस्तु संशोधन कानून, 2020 का निरसन किया जाता है। विधेयक के तीसरे खंड में कहा गया है कि आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 की धारा 3 की उपधारा (1क) का लोप किया जाता है। इसी के साथ ही किसान आंदोलन का प्रमुख मुद्दा ‘कृषि कानून की वापसी’ समाप्त हो गया।

पहला कानून

इस कानून के माध्यम के किसानों को अपनी फसल बेचने की सहूलियत दी गई थी। इसके माध्यम से किसान देश में कहीं भी अपनी फसल बेच सकता है। आपको बता दें कि साल 1965 में कृषि उत्पाद बाजार समिति (एपीएमसी) एक्ट आया था और इसी के तहत देश में सात हजार कृषि मंडिया हैं। सरकार इस कानून के तहत किसानों को साहूकारों (बिचौलियों) के चंगुल से बचाना चाहती है। दरअसल, साहूकार किसानों से उनकी फसल कम दाम में खरीद लेते थे लेकिन यह कानून आ जाता तो किसान अपनी फसल मंडियों में लाकर ही बेचता। हालांकि, एपीएमसी मंडी में फसल बेचने के लिए एक तरह का टैक्स भी देना पड़ता है जो राज्य सरकार के हिस्से में जाता है।

दूसरा कानून

कृषि कानून का दूसरा कानून कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम 2020 को कांट्रेक्ट खेती को अनुमति देता था। किसान संगठन इस कानून से सबसे ज्यादा नाखुश थे। इसे आसान भाषा में ऐसे समझ सकते हैं कि कोई भी व्यक्ति या कंपनी किसान से खेत में फसल उगाने के लिए कहे और पहले ही उसकी रकम तय कर दे और फसल आने के बाद किसान से फसल को ले ले। इसके पीछे तर्क दिया जा रहा था कि पूंजीपति कम दाम में फसल को खरीद लेंगे और उसके अपने स्टोर क्षमता के हिसाब से स्टोर कर लेंगे। जब कीमत बढ़ेगी तो लाभ प्राप्त करेंगे। ऐसे में किसानों के पास स्वेच्छा से अपनी फसल बेचने का जरिया नहीं होगा।

तीसरा कानून

सरकार ने फसलों के भंडारण और उसकी काला बाजारी को रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम1955 बनाया था। जिसमें सीमित मात्रा में किसी भी फसल का भंडारण किया जा सकता था। इसकी एक तय सीमा होती थी लेकिन आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम, 2020 के माध्यम से अनाज, दलहन, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू को आवश्यक वस्तु की सूची से हटा दिया गया था। इसके जरिए इन तमाम वस्तुओं का भंडारण किया जा सकता था और इसकी वजह से बाजार में उतार और चढ़ाव भी देखने को मिल सकता था।

इन कानूनों के पीछे तर्क था कि सरकार इनके माध्यम से पूंजीपतियों या कहें बड़ी-बड़ी कंपनियों की तरफदारी कर रही है। इसमें किसानों का पक्ष कम दिखाई दे रहा है। किसानों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को गारंटी कानून बनाया जाए और एपीएमसी मंडियों को मजबूत किया जाए।

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