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  • पोषण माह में सीफार के सहयोग से हुई मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला
  • गर्भावस्था से ही पड़ जाती है पोषण की नींव
  • पहले 1000 दिन महत्वपूर्ण
  • जन्म के बाद तुरंत स्तनपान, छह माह तक सिर्फ स्तनपान 

उत्तरप्रदेश/गोरखपुर, 29 सितम्बर 2021 : जिले को कुपोषण मुक्त बनाने में मीडिया और हमारी टीम का अभी तक का जो सकारात्मक प्रयास रहा है। इससे मुझे पूरा विश्वास है कि अगर यह प्रयास जारी रहा तो भविष्य में हमारे जिले को कुपोषण मुक्त बनने से कोई रोक नहीं सकता है। यह कहना है जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह का। जिला कार्यक्रम अधिकारी बुधवार को शहर के एक होटल में आयोजित मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे। सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के सहयोग से आयोजित इस कार्यशाला में पोषण विषय पर विस्तारपूर्वक चर्चा हुई।

 

 

 

जिला कार्यक्रम अधिकारी ने कहा कि गर्भावस्था से ही पोषण की नींव पड़ जाती है। गर्भावस्था से लेकर शिशु के जन्म के बाद तक के 1000 दिन पोषण की दृष्टि से अहम हैं। लोगों को यह बताया जाना चाहिए कि जन्म के तुरंत बाद स्तनपान, छह माह तक सिर्फ स्तनपान और छह माह से लेकर दो साल की उम्र तक स्तनपान के साथ पूरक आहार पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग जिला प्रशासन के दिशा-निर्देशन में स्वास्थ्य विभाग, पंचायती राज विभाग समेत कई अन्य विभागों के साथ मिल कर सितंबर माह में इसी उद्देश्य के लिए पोषण माह मनाता है। इस महीने में गोदभराई कार्यक्रमों के जरिये मातृ पोषण का संदेश दिया गया, वहीं अन्नप्राशन दिवस जैसे आयोजनों के जरिये यह बताया गया कि छह माह से दो साल तक के बच्चों को स्तनपान के साथ-साथ अर्धठोस पूरक आहार भी दिया जाना चाहिए। पोषण मेलों के जरिये लोगों को बताया जाता है कि घर में उपलब्ध पोषक सामग्री को स्वादिष्ट बना कर सेवन किया जाना चाहिए। उन्होंने सहजन की महत्ता के बारे में जानकारी दी और बताया कि सहजन का इस्तेमाल दाल में, चूर्ण के रूप में और सब्जियों के तौर पर किया जा सकता है।

 

 

विषय प्रवर्तन करते हुए शहरी बाल विकास परियोजना अधिकारी प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने सही पोषण के लिए आवश्यक दस हस्तक्षेप की चर्चा की। उन्होंने बताया कि गर्भावस्था में मां को पौष्टिक भोजन, चिकित्सक के परामर्श के अनुसार आयरन, फोलिक एसिड की गोलियों और पहले की अपेक्षा ज्यादा आहार लेना चाहिए। जो भोजन गर्भवती मां करती हैं, उसी से गर्भनाल के जरिये बच्चे को पोषण मिलता है। घर में उपलब्ध चना, सोयाबीन, हरी साग-सब्जियों, दाल, अंडा, दही आदि में पर्याप्त पोषण मौजूद है और इन्हीं का सेवन किया जाना चाहिए।

 

 

 

यूनिसेफ के मंडलीय समन्वयक सुरेश तिवारी ने पोषण संबंधित पीपीटी की प्रस्तुति की और बताया कि महिलाओं और बच्चों में एनीमिया की रोकथाम के लिए पौष्टिक भोजन के साथ-साथ साफ-सफाई का व्यवहार काफी महत्वपूर्ण है। बच्चों को घर में बने पौष्टिक भोजन देने चाहिए न कि बाहर का बना फास्ट फूड। जंक फूड और फास्ट फूड से बच्चे कुपोषित हो जाते हैं । कार्यक्रम के दौरान खुले सत्र में मीडिया ने भी पोषण के बारे में विस्तार से चर्चा की और ढेरो सवाल पूछे। आभार ज्ञापन बाल विकास परियोजना अधिकारी राहुल राय ने किया, जबकि संचालन सीफॉर संस्था के क्षेत्रीय समन्वयक वेद प्रकाश पाठक ने किया।

 

इस अवसर पर जिले के सभी सीडीपीओ, सीफॉर टीम से अरूण सिंह, राजनारायण शर्मा, सुजीत अग्रहरि, सज्जाद रिजवी और नीरज ओझा प्रमुख तौर पर मौजूद रहे।

 

 

 

  • 7090 बच्चे अति कुपोषित

डीपीओ ने बताया कि जिले में वजन के हिसाब से 7090 बच्चे अति कुपोषित हैं। कुल 56175 बच्चे कुपोषित हैं। इन कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों में से 5589 बच्चे तीव्र कुपोषित हैं, जबकि 1014 बच्चे अति तीव्र कुपोषित हैं। अति तीव्र कुपोषित बच्चों को चिकित्सकीय परामर्श की आवश्यकता होती है और उन्हें विलेज हेल्थ एंड न्यूट्रिशन डे (वीएचएनडी) पर चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध कराया जाता है।

 

कुपोषण के लक्षण

  • उम्र के अनुसार शारीरिक विकास न होना।
  • हमेशा थकान महसूस होना।
  • कमजोरी लगना।
  • अक्सर बीमार रहना।
  • खाने-पीने में रूचि न रखना।

 

 

सुपोषण के दस मंत्र

• जन्म के दो घंटे के भीतर मां का गाढ़ा पीला दूध।
• छह माह तक सिर्फ स्तनपान
• छह माह बाद ऊपरी आहार की शुरूआत।
• छह माह से दो वर्ष तक ऊपरी आहार के साथ स्तनपान।
• विटामिन ए, आयरन, आयोडिन, जिंक और ओआरएस का सेवन।
• साफ-सफाई और खासतौर से हाथों की स्वच्छता।
• बीमार बच्चों की देखरेख।
• कुपोषित बच्चों की पहचान।
• किशोरियों की देखभाल खासतौर से हीमोग्लोबिन की कमी न हो।
• गर्भवती की देखभाल और उन्हें चिकित्सक के परामर्श के अनुसार आयरन-फोलिक का सेवन के लिए प्रेरित करना।

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आकाश भगत

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