रामनवमी पर्व का महत्व, पूजा का शुभ मूहर्त, पूजन विधि और व्रत कथा
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को भगवान श्रीराम का जन्मदिवस बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। देश के मंदिरों में रामनवमी के दिन श्रीराम जन्मोत्सवों की धूम देखते ही बनती है। लेकिन पिछले साल की तरह इस वर्ष भी कोरोना संक्रमण के चलते मंदिरों में विशाल कार्यक्रम नहीं आयोजित किये जा रहे हैं।
लोग इस वर्ष भी रामनवमी का त्योहार घर पर ही मना रहे हैं और प्रभु से कामना कर रहे हैं कि महामारी से दुनिया को मुक्ति दिलाएँ। रामनवमी को नवरात्रि का अंतिम दिन होने के कारण इस दिन माँ दुर्गा की भी पूजा की जाती है और जगह-जगह हवन, पूजन और कन्या पूजन किये जाते हैं।
- भगवान के जन्म का समय क्या है?
मान्यता है कि भगवान श्रीराम का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था। इसीलिए इस दिन तीसरे प्रहर तक व्रत रखा जाता है और दोपहर में मनाया जाता है श्रीराम महोत्सव। इस दिन व्रत रखकर भगवान श्रीराम और रामचरितमानस की पूजा करनी चाहिए। इस दिन जो श्रद्धालु दिनभर उपवास रखकर भगवान श्रीराम की पूजा करते हैं तथा अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान−पुण्य करते हैं वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होते हैं। इस दिन पुण्य सलिला सरयू नदी में स्नान करके लोग पुण्य लाभ कमाते हैं। भगवान श्रीराम के जन्म स्थान अयोध्या में इस त्यौहार की विशेष धूम रहती है। अयोध्या का रामनवमी पर लगने वाला चैत्र रामनवमी मेला काफी प्रसिद्ध है जिसमें देश भर से लाखों श्रद्धालु जुटते हैं। हालांकि इस बार कोरोना संक्रमण के चलते यह मेला नहीं आयोजित किया जा रहा है।
- रामनवमी की पूजा कैसे करें ?
पंचांग के अनुसार, साल 2021 में रामनवमी पर पूजा मुहूर्त 21 अप्रैल को सुबह 11 बजकर 2 मिनट से दोपहर 1 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। यानि पूजा की कुल अवधि 2 घंटे 36 मिनट रहेगी। रामनवमी के दिन व्रत रखने वालों को चाहिए कि वह प्रातः जल्दी उठ कर नित्यकर्म से निवृत्त होकर भगवान श्रीराम की मूर्ति को शुद्ध पवित्र ताजे जल से स्नान कराकर नये वस्त्राभूषणों से सज्जित करें और फिर धूप दीप, आरती, पुष्प, पीला चंदन आदि अर्पित करते हुए भगवान की पूजा करें। रामायण में वर्णित श्रीराम जन्म कथा का श्रद्धा भक्ति पूर्वक पाठ और श्रवण तो इस दिन किया ही जाता है अनेक भक्त रामायण का अखण्ड पाठ भी करते हैं।
भगवान श्रीराम को दूध, दही, घी, शहद, चीनी मिलाकर बनाया गया पंचामृत तथा भोग अर्पित किया जाता है। भगवान श्रीराम का भजन, पूजन, कीर्तन आदि करने के बाद प्रसाद को पंचामृत सहित श्रद्धालुओं में वितरित करने के बाद व्रत खोलने का विधान है। रामनवमी के दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधान है।
- रामनवमी व्रत कथा
राम, सीता और लक्ष्मण वन में जा रहे थे। सीता जी और लक्ष्मण को थका हुआ देखकर राम जी ने थोड़ा रुककर आराम करने का विचार किया और एक बुढ़िया के घर गए। बुढ़िया सूत कात रही थी। बुढ़िया ने उनकी आवभगत की और बैठाया, स्नान-ध्यान करवाकर भोजन करवाया। राम जी ने कहा- बुढ़िया माई, “पहले मेरा हंस मोती चुगाओ, तो मैं भी करूं।” बुढ़िया बेचारी के पास मोती कहां से आतो जोकि सूत कात कर गुजारा करती थी। अतिथि को ना कहना भी वह ठीक नहीं समझती थीं। दुविधा में पड़ गईं।
अत: दिल को मजबूत कर राजा के पास पहुंच गईं और अंजली मोती देने के लिये विनती करने लगीं। राजा अचम्भे में पड़ा कि इसके पास खाने को दाने नहीं हैं और मोती उधार मांग रही है। इस स्थिति में बुढ़िया से मोती वापस प्राप्त होने का तो सवाल ही नहीं उठता। आखिर राजा ने अपने नौकरों से कहकर बुढ़िया को मोती दिला दिये। बुढ़िया मोती लेकर घर आई, हंस को मोती चुगाए और मेहमानों की आवभगत की। रात को आराम कर सवेरे राम जी, सीता जी और लक्ष्मण जी जाने लगे। राम जी ने जाते हुए उसके पानी रखने की जगह पर मोतियों का एक पेड़ लगा दिया। दिन बीतते गये और पेड़ बड़ा हुआ, पेड़ बढ़ने लगा, पर बुढ़िया को कु़छ पता नहीं चला। मोती के पेड़ से पास-पड़ोस के लोग चुग-चुगकर मोती ले जाने लगे।
एक दिन जब बुढ़िया उसके नीचे बैठी सूत कात रही थी। तो उसकी गोद में एक मोती आकर गिरा। बुढ़िया को तब ज्ञात हुआ। उसने जल्दी से मोती बांधे और अपने कपड़े में बांधकर वह किले की ओर ले चली़। उसने मोती की पोटली राजा के सामने रख दी। इतने सारे मोती देख राजा अचम्भे में पड़ गया। उसके पूछने पर बुढ़िया ने राजा को सारी बात बता दी। राजा के मन में लालच आ गया। वह बुढ़िया से मोती का पेड़ मांगने लगा। बुढ़िया ने कहा कि आस-पास के सभी लोग ले जाते हैं। आप भी चाहे तो ले लें। मुझे क्या करना है। राजा ने तुरन्त पेड़ मंगवाया और अपने दरबार में लगवा दिया। पर रामजी की मर्जी, मोतियों की जगह कांटे हो गये और लोगों के कपड़े उन कांटों से खराब होने लगे। एक दिन रानी की ऐड़ी में एक कांटा चुभ गया और पीड़ा करने लगा। राजा ने पेड़ उठवाकर बुढ़िया के घर वापस भिजवा दिया। पेड़ पर पहले की तरह से मोती लगने लगे। बुढ़िया आराम से रहती और खूब मोती बांटती।
- सभी गुण विद्यमान हैं भगवान श्रीराम में
भगवान श्रीराम की मातृ−पितृ भक्ति भी बड़ी महान थी वो अपने पिता राजा दशरथ के एक वचन का पालन करने 14 वर्ष तक वनवास काटने चले गए और माता कैकयी का भी उतना ही सम्मान किया। भातृ प्रेम के लिए तो श्रीराम का नाम सबसे पहले लिया जाता है उन्होंने अपने भाइयों को अपने बेटों से बढ़ कर प्यार दिया इनके इसी भातृ प्रेम की वजह से उनके भाई उन पर मर मिटने को तैयार रहते थे। श्रीराम ने रावण का और अन्य असुरों का संहार कर धरती पर शांति भी कायम की।
भगवान श्रीराम महान पत्नी व्रता भी थे उन्होंने वनवास से लौटने के बाद माता सीता के साथ न रह कर भी कभी राजसी ठाठ में जीवन नहीं बिताया तथा न ही कभी उनके सिवा किसी अन्य की कल्पना की। भगवान श्रीराम ने अपने सेवकों तथा अनुयायियों का भी सदैव ध्यान रखते हैं। वह अपने सेवक हनुमानजी एवं अंगद के लिए हमेशा प्रस्तुत रहते थे। भगवान श्रीराम में सभी गुण विद्यमान थे।
– शुभा दुबे