वैसे तो हमारा संविधान संघात्मक ढांचे का अनुसरण करता है जिससे कि हमारी देश की एकता बनी रहती है। परंतु संविधान निर्माताओं ने विषम परिस्थितियों के लिए आपात उपबंध की व्यवस्था की है। देश की सुरक्षा खतरे में हो या उसकी एकता और अखंडता पर कोई चोट पहुंचने के बात आ रही हो जो संघीय ढांचा के लिए खतरा बन सकता है, ऐसी परिस्थिति में देश की रक्षा के लिए संघ के सिद्धांतों को त्याग दिया जाता है और आपातकाल की घोषणा कर दी जाती है। अगर कम शब्दों में कहें तो संविधान में इन प्रावधानों को जोड़ने का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा करना है। परिस्थितियां सामान्य होने के साथ ही संविधान पुनः एक बार फिर से सामान्य रूप से काम करने लगता है। संविधान में आपात उपबंध का जिक्र भाग 18 के अनुच्छेद 352 से 360 के बीच किया गया है।
आपात उपबंध को तीन प्रकार में बांटा गया है:-
राष्ट्रीय आपात
राष्ट्रपति शासन
वित्तीय आपात
राष्ट्रीय आपात : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति को आपात की घोषणा करने का शक्ति प्राप्त है। हालांकि 44वें संशोधन में इस बात को स्पष्ट कर दिया है गया है कि राष्ट्रपति ऐसी उद्घोषणा तभी कर सकता है जब मंत्रिमंडल से उसे लिखित रूप में सूचित किया जाए। इसके तहत राष्ट्रपति युद्ध, बाहरी आक्रमण और विद्रोह की स्थिति में आपातकाल की घोषणा कर सकता है। हालांकि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की ही सिफारिश पर इस बात की घोषणा करेगा। न्यायालय आपात की घोषणा पर राष्ट्रपति से प्रश्न कर सकता है। 44 वें संशोधन में इस बात का भी जिक्र है कि राष्ट्रीय आपात की घोषणा संपूर्ण राष्ट्र या फिर उसके किसी भाग में भी की जा सकती है। संविधान में इसके लिए आपात की उद्घोषणा शीर्षक का प्रयोग हुआ है।
एक माह के अंदर संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत द्वारा इसका अनुमोदन लेना जरूरी है। पहले सभी प्रकार की आपात में अनुच्छेद 19 स्वत: निलंबित हो जाती थी परंतु अब केवल वाह्य आपात की दशा में ऐसा होता है। राष्ट्रीय आपात में अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। आपात की स्थिति में केंद्र सरकार के निर्देश पर ही राज्य सरकार को चलना होता है। इस दौरान केंद्र राज्यों को निर्देश भी दे सकता है।
अब तक देश में 3 राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की जा चुकी है :-
पहले आपात की उद्घोषणा अक्टूबर 1962 से जनवरी 1968 तक की गई थी। यह उद्घोषणा 1962 में चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के नेफा क्षेत्र में हमले के कारण की गई थी।
दूसरी आपात की उद्घोषणा दिसंबर 1971 से मार्च 1977 तक पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध छेड़ने के दौरान किया गया था।
तीसरी आपात की उद्घोषणा 1975 से मार्च 1977 तक आंतरिक अशांति के आधार पर किया गया था।
राष्ट्रपति शासन-संविधान के अनुच्छेद 356 में राष्ट्रपति शासन का जिक्र किया गया है। इसका इस्तेमाल राज्यों में संवैधानिक तंत्र के विफल हो जाने की स्थिति में किया जाता है। हालांकि, इसके लिए संविधान में आपात या आपातकाल शब्द का इस्तेमाल नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में संघ न्यायिक कार्य को छोड़कर राज्य प्रशासन के सभी कार्यों को अपने हाथ में ले लेता है। राज्य में आपात की उद्घोषणा 2 माह की अवधि के लिए होता है। इसे बढ़ाने के लिए संसद की अनुमति लेनी होती है। 1951 में सबसे पहले पंजाब में अनुच्छेद 356 का प्रयोग किया गया था।
वित्तीय आपात- संविधान के अनुच्छेद 360 के अंतर्गत वित्तीय आपात की उद्घोषणा राष्ट्रपति के द्वारा तब की जाती है जब किसी कारण वश देश के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा होता है। वित्तीय आपात की घोषणा को किसी भी समय वापस भी लिया जा सकता है। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के न्यायाधीशों तथा संघ एवं राज्य सरकारों के अधिकारियों के वेतन में कटौती की जा सकती है। राष्ट्रपति आर्थिक दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए राज्यों को निर्देश भी दे सकता है। राष्ट्रपति राज्य सरकार को यह भी निर्देश दे सकता है कि राज्य के समस्त वित्त विधेयक उसके स्वीकृति के बाद ही विधानसभा में प्रस्तुत किया जाए।