Mahananda Navami 2024: महानंदा नवमी व्रत से होती है शुभ फलों की प्राप्ति

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आज है महानंदा नवमी, इस दिन विवाहित महिलाएं दिनभर उपवास रखती हैं और रात में चंद्रमा भगवान के दर्शन करने के बाद अपना उपवास खोलती हैं तो आइए हम आपको महानंदा नवमी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 
जानें महानंदा नवमी के बारे में 
हिंदू धर्म में महानंदा नवमी के व्रत को बहुत शुभ माना जाता है। यह व्रत माघ, भाद्रपद और मार्गशीर्ष के महीनों के दौरान पड़ने वाले शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को रखा जाता है। पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को महानंदा नवमी का व्रत रखा जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने का विधान है। पंडितों के अनुसार इस दिन के स्नान, दान करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। शास्त्रों के अनुसार महानंदा नवमी को ‘ताल नवमी’ भी कहा जाता है। 

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महानंदा नवमी का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, महानंदा नवमी के साथ मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के जीवन से हर कष्ट समाप्त हो जाता है। इसके साथ ही धन संबंधी समस्याओं से छुटकारा मिल जाता है। महानंदा नवमी के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही व्यक्ति को वर्तमान और पिछले जन्मों के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। पंडितों के अनुसार ताला नवमी यानि महानंदा नवमी के दिन व्रत तथा पूजा करने से घर के सभी दुख और क्लेश दूर हो जाते हैं। इस व्रत के मनुष्य को न केवल भौतिक सुख मिलते हैं बल्कि मानसिक शातिं भी मिलती है। इस व्रत को करने और मन से लक्ष्मी का ध्यान कर पूजन करने से घर में सुख-समृद्धि आती है जो हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए लाभदायी होता है।
मां लक्ष्मी के साथ मां दुर्गा की पूजा का विधान
शास्त्रों के अनुसार, देवी दुर्गा शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक हैं। देवी दुर्गा की पूजा करने से सभी बुरी आत्माओं पर विजय प्राप्त होती है। इसी के कारण उन्हें ‘दुर्गतिनाशिनी’ भी कहा जाता है जिसका अर्थ है वह जो सभी कष्टों को दूर करती है। इसलिए जो लोग देवी दुर्गा की भक्ति पूर्वक पूजा करते हैं, वे अपने सभी दुखों और शोकों से मुक्ति प्राप्त करते हैं। महानंदा नवमी तिथि को मां दुर्गा के नौ स्वरूपों चंद्रघंटा, शैलपुत्री, कालरात्रि, स्कंद माता, ब्रह्मचारिणी, सिद्धिदायिनी, कुष्मांडा, कात्यायनी और महागौरी की पूजा करने का विधान है।
महानंदा नवमी व्रत के दिन ऐसे करें पूजा 
महानंदा नवमी का व्रत बहुत खास होता है। पंडितों के अनुसार महानंदा व्रत के दिन पूजा करने का खास विधान है। महानंदा नवमी से कुछ दिन पहले घर की साफ-सफाई करें। नवमी के दिन पूजाघर के बीच में बड़ा दीपक जलाएं और रात भर जगे रहें। महानंदा नवमी के दिन ऊं हीं महालक्ष्म्यै नमः का जाप करें। रात्रि जागरण कर ऊं ह्रीं महालक्ष्म्यै नमः का जाप करते रहें। जाप के बाद रात में पूजा कर पारण करना चाहिए। साथ ही नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन करा कुछ दान दें फिर उनसे आर्शीवाद मांगें। आर्शीवाद आपके लिए बहुत शुभ होगा।
महानंदा नवमी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा
महानंदा नवमी व्रत की कथा के अनुसार एक बार एक साहूकार अपनी बेटी के साथ रहता था। बेटी बहुत धार्मिक प्रवृति की थी वह प्रतिदिन एक पीपल के वृक्ष की पूजा करती थी। उस पीपल के वृक्ष में लक्ष्मी जी का वास करती थीं। एक दिन लक्ष्मी जी साहूकार की बेटी से दोस्ती कर ली। लक्ष्मी जी एक दिन साहूकार की बेटी को अपने घर ले गयीं और उसे खूब खिलाया-पिलाया। उसके बाद बहुत से उपहार देकर बेटी को विदा कर दिया। साहूकार की बेटी को विदा करते समय लक्ष्मी जी बोली कि मुझे कब अपने घर बुला रही हो इस पर साहूकार की बेटी उदास हो गयी। उदासी से उसने लक्ष्मीजी को अपने घर आने का न्यौता दे दिया। घर आकर उसने अपने पिता को यह बात बतायी और कहा कि लक्ष्मी जी का सत्कार हम कैसे करेंगे। इस पर साहूकार ने कहा हमारे पास जो भी है उसी से लक्ष्मी जी का स्वागत करेंगे। तभी एक चील उनके घर में हीरों का हार गिरा कर चली गयी जिसे बेचकर साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी के लिए सोने की चौकी, सोने की थाली और दुशाला खरीदी। लक्ष्मीजी थोड़ी देर बाद गणेश जी के साथ पधारीं। उस कन्या ने लक्ष्मी-गणेश की खूब सेवा की। उन्होंने उस बालिका की सेवा से प्रसन्न होकर समृद्ध होने का आर्शीवाद दिया।
जानें महानंदा नवमी व्रत के उत्सव के बारे में 
इस दिन, हर जगह से लोग दुर्गा मंदिरों में जाते हैं और उनका आशीर्वाद पाने के लिए उनकी स्तुति और भजन करने के लिए भजन करते हैं। दुर्गा अष्टमी और दुर्गा पूजा की तैयारियाँ, जो एक महीने में होती हैं, इस दिन से शुरू होती हैं। श्रद्धालु, विशेषकर विवाहित महिलाएं इस दिन उपवास रखती हैं। वे रात को चांद देखकर अपना व्रत तोड़ते हैं। तलर बारा नामक एक विशेष व्यंजन- पके हुए ताड़ के फल के गूदे से बनी छोटी-छोटी गेंदें, जिन्हें कद्दूकस किया हुआ नारियल, चीनी, आटा और फिर तेल में डीप फ्राई करके बनाया जाता है। तैयार किए गए अन्य व्यंजन हैं राजभोग, मुरमुरा लड्डू, कलाकंद, सुनहरी रसमलाई, लूची, भोपा एलू और कई अन्य। लोग अपने पारंपरिक पोशाक में, सफेद और लाल रंग की साड़ी में महिलाएं और सफेद धोती में पुरुष कपड़े पहनते हैं। ओडिशा में बिजारा मंदिर और पश्चिम बंगाल में कनक दुर्गा मंदिर इस त्योहार के उत्सव के लिए प्रसिद्ध हैं। आशीर्वाद की दृष्टि से इस दिन देवी दुर्गा की पूजा करने के बाद भक्तों में एक अद्भुत उत्साह और ऊर्जा का अनुभव होता है।
– प्रज्ञा पाण्डेय

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