जानें ‘फ़ैक्ट चेक’ का क्यों हो रहा विरोध?

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  • क्या सेंसरशिप ला रही है सरकार ?

केंद्र सरकार के इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने नया फ़ैक्ट चेक निकाय बनाने की घोषणा की है। सरकार जहां इसे फ़ेक न्यूज़ रोकने की दिशा में अहम क़दम बता रही है वहीं विपक्ष इसे सेंसरशिप की आहट के रूप में भी देख रहा है।

 

 

केंद्रीय आईटी मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बताया है कि सरकार का फ़ैक्ट चेक निकाय गूगल, फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी इंटरनेट कंपनियों को फ़र्ज़ी ख़बरों के बारे में जानकारी देगा। केंद्र सरकार ने आईटी रूल्स 2021 में संशोधन को मंज़ूरी दे दी है। इन नए सूचना प्रौद्योगिकी नियमों को लेकर विवाद होता रहा है। अब प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) या केंद्र सरकार द्वारा गठित फ़ैक्ट चेक निकाय के पास किसी जानकारी को फ़र्ज़ी घोषित करने का अधिकार होगा।

 

 

नए नियमों के तहत फ़ेसबुक, ट्विटर या गूगल जैसी इंटरनेट कंपनियों जिन्हें भारत में इंटरमीडियरी कंपनी का दर्जा हासिल है, को उस कंटेंट को हटाना होगा जिसे सरकार के फ़ैक्ट चेक संस्थान फ़र्ज़ी घोषित कर देंगे।

 

 

यानी किसी कंटेंट को केंद्र सरकार के फ़ैक्ट चेक निकाय के फ़र्ज़ी घोषित करने के बाद इंटरनेट कंपनियां उसे इंटरनेट से हटाने के लिए बाध्य होंगी। अगर इंटरनेट कंपनियां ऐसा नहीं करती हैं तो उन पर क़ानूनी कार्रवाई की जा सकेगी। अब तक आईटी एक्ट की धारा 79 के तहत सोशल मीडिया कंपनियों को इस तरह के कंटेंट पर क़ानूनी कार्रवाई को लेकर सुरक्षा हासिल थी।

 

 

केंद्र सरकार का तर्क है कि ये क़दम फ़ेक न्यूज़ से निबटने के लिए उठाया जा रहा है। हालांकि विपक्ष इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर चोट बता रहा है।

 

 

  • एडिटर्स गिल्ड का विरोध

भारत में प्रेस स्वतंत्रता के लिए काम करने वाले संगठन एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने भी केंद्र सरकार के इस क़दम की आलोचना की है।

 

 

एक बयान जारी कर एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने कहा है, “भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने 6 अप्रैल को इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) अमेंडमेंट रूल्स, 2023 (सूचना प्रौद्योगिकी संशोधित नियम, 2023) को अधिसूचित किया है। इसे लेकर एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया परेशान और चिंतित है।”

 

 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया का तर्क है कि नए नियमों का प्रेस की स्वतंत्रता पर नकारात्मक असर होगा। गिल्ड ने चिंता ज़ाहिर की है कि केंद्र सरकार द्वारा गठित फ़ैक्ट चेक निकाय के पास केंद्र सरकार के किसी भी काम से जुड़ी किसी भी तरह की जानकारी को फ़र्ज़ी घोषित करने की असीमित शक्ति होगी।

 

 

एडिटर्स गिल्ड का कहना है कि एक तरह से केंद्र सरकार ने अपने काम के बारे में क्या सही है और क्या फ़र्ज़ी।। ये तय करने का अपने आप को ही पूर्ण अधिकार दे दिया है।

 

केंद्र सरकार ने अभी सिर्फ़ गजट अधिसूचना के ज़रिए ही फैक्ट चेक निकाय के गठन के बारे में जानकारी दी है। इसका क्या स्वरूप होगा, ये किस तरह काम करेगा इस बारे में विस्तृत जानकारी अभी नहीं दी गई है।

 

एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया का सवाल है कि इस निकाय पर न्यायिक निरीक्षण, अपील के अधिकार, या प्रेस स्वतंत्रता के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के पालन को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की गई है। ये सभी प्राकृतिक न्याय की अवधारणा के ख़िलाफ़ है और एक तरह से सेंसरशिप ही है।

 

मीडिया संगठनों का ये आरोप भी है कि सरकार ने नियमों में इस बदलाव के लिए सलाह मशविरा नहीं किया।

 

 

  • क्या तर्क है सरकार का?

सरकार का कहना है कि इन बदलावों का मक़सद इंटरनेट से फ़ेक न्यूज़ कम करना है। सरकार ने सेंसरशिप को लेकर चिंताओं को भी ख़ारिज किया है।

 

केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा, “सरकार ने इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के ज़रिए एक निकाय को अधिसूचित करने का निर्णय लिया है और ये संस्थान एक फ़ैक्ट चेकर की तरह काम करेगा और सिर्फ़ उन जानकारियों का फ़ैक्ट चेक किया जाएगा जो सरकार से संबंधित होंगी। ”

 

 

चंद्रशेखर ने कहा, “अभी हमें ये तय करना है कि ये एक नया संस्थान होगा जिसके साथ भरोसा और विश्वस्नीयता जुड़ी होगी या फिर हम किसी ऐसे पुराने संस्थान को लेंगे और फिर उसे फ़ैक्ट चेक मिशन के लिए भरोसा और विश्वसनीयता पैदा करने के काम में लगाएंगे।”

 

 

  • सरकार की मंशा पर सवाल

सरकार का ये तर्क है कि ये बदलाव सोशल मीडिया पर फ़ेक न्यूज़ को रोकने के लिए किए जा रहे हैं। लेकिन विश्लेषक सरकार की मंशा पर सवाल उठा रहे हैं।

 

 

वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त कहते हैं, “इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ख़बरों का प्रसार बढ़ा है। ये तथ्य है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर ख़बर प्रकाशित करने वाली वेबसाइटों का ना कहीं पंजीयन होता है और ना ही कोई ज़िम्मेदारी। ऐसे में इनकी ज़िम्मेदारी तय होने की ज़रूरत तो महसूस की जा रही है लेकिन ये काम सरकार का कोई निकाय नहीं कर सकता क्योंकि सरकार अपने आप में एक पक्ष है। एक रास्ता ये हो सकता था कि किसी स्वायत्त संस्थान का गठन किया जा सकता है जो किसी सरकार या किसी और के दबाव में काम ना करे।”

 

 

जयशंकर गुप्त कहते हैं, “इससे पहले पीआईबी फ़ैक्ट चेक कर रही है। अब नया निकाय बनाया जा रहा है। यानी जो सरकार के विरुद्ध बात होगी उसे एंटी नेशनल या फेक घोषित कर दिया जाएगा। ये सीधा-सीधा अभिव्यक्ति की आज़ादी का उल्लंघन होगा।”

 

 

गुप्त कहते हैं, “डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के नाम पर जो अनर्गल कंटेंट बिना ज़िम्मेदारी के प्रकाशित किया जा रहा है, उसकी रोकथाम के लिए ज़रूर क़दम उठाए जाएं लेकिन उसके नाम पर प्रेस की स्वतंत्रता से समझौता नहीं किया जाना चाहिए।”

 

 

“सरकार अगर वाक़ई फ़ेक न्यूज़ को रोकना चाहती है तो एक ऐसे स्वायत्त संस्थान का गठन करे जो किसी भी तरह के दबाव से मुक्त हो। ये तय करना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि क्या फ़ेक है और क्या सही है। अब सरकार अपने ख़िलाफ़ कही गई बातों को फ़ेक कहकर उस पर कार्रवाई कर सकती है। ये एक तरह से आलोचना को दंडित करना होगा।”

 

 

एक आशंका ये भी ज़ाहिर की जा रही है कि अगर सरकार ने अपनी आलोचनात्मक ख़बरों को फ़ेक न्यूज़ कह दिया तो सरकार पर सवाल उठाने वाली पत्रकारिता के लिए कितनी जगह रहेगी।

 

 

जब इन बदलावों को प्रस्तावित किया गया था तब डिजिटल प्रकाशकों के संगठन डिजीपब ने भी इसे लेकर चिंताएं ज़ाहिर की थीं और कहा था कि इसे स्वतंत्र प्रेस की आवाज़ को दबाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

 

 

डिजीपब ने सरकार से मांग की थी कि आगे चलकर इस संशोधन पर विचार विमर्श के लिए उसे आमंत्रित किया जाए और उनका पक्ष भी सुना जाए।

 

 

  • विपक्ष की आलोचना

विपक्ष ने भी केंद्र सरकार के इस क़दम की आलोचना की है। विपक्षी राजनीतिक दलों ने कहा है कि सरकार ये क़दम प्रेस पर सेंसरशिप लगाने जैसा है।

 

 

कांग्रेस के मीडिया प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि भारत में फ़ेक न्यूज़ की सबसे बड़ी उत्पादक मौजूदा सत्ताधारी पार्टी और उसकी राजनीतिक विचारधारा से जुड़े लोग हैं। उन्होंने कहा कि सरकार को अपना ये क़दम वापस लेना चाहिए।

 

 

वहीं लोकसभा सांसद और पूर्व सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने कहा है कि सरकार का ये फ़ैसला उसकी असुरक्षा की भावना को दर्शाता है। तिवारी ने कहा, “ये सेंसरशिप है। ये अजीब है कि अपील की कोई गुंजाइश नहीं होगी और अंतिम फ़ैसला सरकार ही सुनाएगी।”

 

 

तिवारी ने कहा, “यथोचित प्रतिबंधों के होते हुए भी ये नियम अनुच्छेद-19 की कसौटी पर कभी खरे नहीं उतरेंगे।”

 

 

वहीं संसद में तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने सरकार के इस क़दम की आलोचना करते हुए कहा, “मोदी-शाह की बीजेपी जो ख़ुद फ़ेक न्यूज़ बनाने की मास्टर है, अब फ़ेक न्यूज़ को नियमित करना चाहती है।”

 

 

वहीं सीपीआई (माओवादी) ने एक बयान जारी कर सरकार के इस क़दम को अलोकतांत्रिक बताते हुए कहा है कि ये स्वीकार्य नहीं है। सीपीआई (एम) की तरफ़ से जारी एक बयान में कहा गया है कि नए आईटी नियमों को तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।

दिलनवाज़ पाशा, बीबीसी संवाददाता

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