चार शुभ योग में 26 जनवरी को मनाई जायेगी बसंत पंचमी

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हिंदू पंचांग के अनुसार वसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी। दरअसल माघ शुक्ल पंचमी 25 जनवरी की शाम से ही शुरू हो जाएगी लेकिन उदयातिथि के अनुसार बसंत पंचमी 26 जनवरी को मनाई जाएगी। यानी कि साल 2023 में गणतंत्र दिवस और बसंत पंचमी एक ही मनाई जाएगी। धार्मिक दृष्टि से ये पर्व विद्यार्थियों के लिए विशेष महत्व रखता है। वहीं गणतंत्र दिवस का आयोजन भी सभी शिक्षण संस्थानों में बड़े पैमाने पर किया जाता है। लिहाजा अगले साल 26 जनवरी का दिन दोगुना खास होने जा रहा है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस साल बसंत पंचमी 26 जनवरी को मनाई जाएगी। कहा जाता है कि इस दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है। इसके साथ ही इस दिन ही मां सरस्वती की उपत्ति भी हुई थी। यह दिन छात्रों, कला, संगीत आदि क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए बेहद खास होता है। बसंत पंचमी के दिन पीले रंग का भी विशेष महत्व होता है। बसंत पंचमी का दिन विद्या आरंभ या किसी भी शुभ कार्य के लिए बेहद उत्तम माना जाता है। इस त्योहार को लेकर मान्यता है कि सृष्टि अपनी प्रारंभिक अवस्था में मूक, शांत और नीरस थी। चारों तरफ मौन देखकर भगवान ब्रह्मा जी अपने सृष्टि सृजन से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का और इससे अद्भुत शक्ति के रूप में मां सरस्वती प्रकट हुईं। मां सरस्वती ने वीणा पर मधुर स्वर छेड़ा जिससे संसार को ध्वनि और वाणी मिली। इसलिए बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा का विधान है। मान्यता है कि इस दिन आराधना करने से माता सरस्वती शीघ्र प्रसन्न होती हैं और ज्ञान का आशीर्वाद प्रदान करती हैं। 
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव-माता पार्वती के विवाह की लग्न लिखी गई। विद्यार्थी और कला साहित्य से जुड़े हर व्यक्ति को इस दिन मां सरस्वती की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इस दिन सच्चे मन से की गई पूजा कभी विफल नहीं जाती। मां सरस्वती की पूजा से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। इस दिन घर में मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर अवश्य स्थापित करें। घर में वीणा रखने से घर में रचनात्मक वातावरण निर्मित होता है। घर में हंस की तस्वीर रखने से मन को शांति मिलती है और एकाग्रता बढ़ती है। मां सरस्वती की पूजा में मोर पंख का बड़ा महत्व है। घर के मंदिर में मोर पंख रखने से नकारात्मक ऊर्जा का अंत होता है। कमल के फूल से मां का पूजन करें। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि बसंत पंचमी के दिन विवाह, गृह प्रवेश और अन्य शुभ कार्य संपन्न कराए जाते हैं। बसंत पंचमी के दिन शिशुओं को पहली बार अन्न खिलाया जाता है। इस दिन बच्चों का अक्षर आरंभ भी कराया जाता है। बसंत पंचमी में पीले रंग का विशेष महत्व है। पूजा विधि में पीले रंग की वस्तुओं का प्रयोग करें। पीले रंग के व्यंजन बनाए जाते हैं। बसंत पंचमी के दिन कामदेव और उनकी पत्नी रति की भी पूजा की जाती है। 
बसंत पंचमी पर बन रहे हैं 4 शुभ योग
डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष बसंत पंचमी पर 4 विशेष योग का निर्माण हो रहा है। इस दिन शिव योग, सिद्ध योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग का संयोग बनने जा रहा है। 
शिव योग 
बसंत पंचमी के दिन यानी 26 जनवरी को सुबह 03:10 मिनट से लेकर दोपहर 03:29 मिनट तक शिव योग रहेगा।
सिद्ध योग 
शिव योग के समाप्त होते ही सिद्ध योग शुरु हो जाएगा। जो पूरी रात रहेगा। इस योग को बेहद शुभ माना जाता है।
सर्वार्थ सिद्धि योग 
सर्वार्थ सिद्धि योग 26 जनवरी को शाम 06:57 मिनट से लेकर अगले दिन 07:12 मिनट तक रहेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस योग में किए गए सभी कार्य सफल, संपन्न और सिद्ध होते हैं।

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रवि योग 
इस दिन रवि योग शाम 06:57 मिनट से लेकर अगले दिन सुबह 07:12 मिनट तक रहेगा। सूर्य देव की कृपा से इस योग में किए गए सभी कार्यों में अमंगल दूर होते हैं और शुभता की प्राप्ति होती है।
शुभ मुहूर्त
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार माघ शुक्ल पंचमी 25 जनवरी 2023 की दोपहर 12:34 मिनट से होगी और 26 जनवरी 2023 को सुबह 10:28 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार इस साल वसंत पंचमी 26 जनवरी 2023 को मनाई जाएगी। इस बार बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त 26 जनवरी 2023 को सुबह 07:12 मिनट से लेकर दोपहर 12:34 मिनट तक रहेगा। ऐसे में इस दिन देवी की पूजा की अवधि: 05 घंटे तक होगी। 
पूजा विधि
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि मां सरस्वती की प्रतिमा या मूर्ति को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें। अब रोली, चंदन, हल्दी, केसर, चंदन, पीले या सफेद रंग के पुष्प, पीली मिठाई और अक्षत अर्पित करें। अब पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को अर्पित करें। मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें। विद्यार्थी चाहें तो इस दिन मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।
या कुंदेंदुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रावृता। 
या वीणा वर दण्डमण्डित करा, या श्वेत पद्मासना।
या ब्रहमाऽच्युत शंकर: प्रभृतिर्भि: देवै: सदा वन्दिता। 
सा मां पातु सरस्वती भगवती, नि:शेषजाड्यापहा।। 
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मां सरस्वती के इस श्लोक से मां का ध्यान करें। इसके पश्चात ’ओम् ऐं सरस्वत्यै  नम:’ का जाप करें और इसी लघु मंत्र को नियमित रूप से आप अर्थात विद्यार्थी वर्ग प्रतिदिन कुछ समय निकाल कर इस मंत्र से मां सरस्वती का ध्यान करें। इस मंत्र के जाप से विद्या, बुद्धि, विवेक बढ़ता है। वसंतोत्सव नवीन ऊर्जा देने वाला उत्सव है। शिशिर ऋतु के असहनीय सर्दी से मुक्ति मिलने का मौसम आरंभ हो जाता है। प्रकृति में परिवर्तन आता है और जो पेड़-पौधे शिशिर ऋतु में अपने पत्ते खो चुके थे वे पुनः नव-नव पल्लव और कलियों से युक्त हो जाते हैं। वसंतोत्सव माघ शुक्ल पंचमी से आरंभ होकर के होलिका दहन तक चलता है। कहा जाता है कि वसंत पंचमी के दिन जैसा मौसम होता है वैसा पूरे होली तक ऐसा ही मौसम रहता है।
बसंत पचंमी कथा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तुओं सबकुछ दिख रहा था, लेकिन उन्हें किसी चीज की कमी महसूस हो रही थी। इस कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। उनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक थी। तीसरे में माला और चौथा हाथ वर मुद्रा में था। यह देवी थीं मां सरस्वती। मां सरस्वती ने जब वीणा बजाया तो संस्सार की हर चीज में स्वर आ गया। इसी से उनका नाम पड़ा देवी सरस्वती। यह दिन था बसंत पंचमी का। तब से देव लोक और मृत्युलोक में मां सरस्वती की पूजा होने लगी
– डा. अनीष व्यास
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक

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