मकर संक्रांति के दिन खिचड़ी का दान देना विशेष रूप से फलदायी होता है

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मकर संक्रांति पर्व को देश के विभिन्न भागों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाया जाता है जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल ‘संक्रान्ति’ कहा जाता है। मकर संक्रांति पर्व को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य उत्तर की ओर बढ़ने लगता है जो ठंड के घटने का प्रतीक है। धार्मिक मान्यता के अनुसार सूर्य अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जो मकर राशि के शासक थे। पिता और पुत्र आम तौर पर अच्छी तरह नहीं मिल पाते इसलिए भगवान सूर्य महीने के इस दिन को अपने पुत्र से मिलने का एक मौका बनाते हैं।
आस्था का पर्व
जाड़े के मौसम के समापन और फसलों की कटाई की शुरुआत का प्रतीक समझे जाने वाले मकर संक्रांति पर्व को देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है और इस अवसर पर लाखों लोग देश भर में पवित्र नदियों में स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं। देश के विभिन्न भागों में तो लोग इस दिन कड़ाके की ठंड के बावजूद रात के अंधेरे में ही नदियों में स्नान शुरू कर देते हैं। इस पावन अवसर पर श्रद्धालु इलाहाबाद के त्रिवेणी संगम, वाराणसी में गंगाघाट, हरियाणा में कुरुक्षेत्र, राजस्थान में पुष्कर और महाराष्ट्र के नासिक में गोदावरी नदी में स्नान करते हैं।

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दान देने का विशेष लाभ
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को दान देना पुण्यकारी माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन खिचड़ी का दान देना विशेष रूप से फलदायी होता है। देश के विभिन्न मंदिरों को इस दिन विशेष रूप से सजाया जाता है और इसी दिन से शुभ कार्यों पर लगा प्रतिबंध भी खत्म हो जाता है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनकर मंदिरों में जाते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। इस पर्व पर इलाहाबाद में लगने वाला माघ मेला और कोलकाता में गंगासागर के तट पर लगने वाला मेला काफी प्रसिद्ध है। अयोध्या में भी इस पर्व की खूब धूम रहती है। यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु पवित्र सरयू में डुबकी लगाकर रामलला, हनुमानगढ़ी में हनुमानलला तथा कनक भवन में मां जानकी की पूजा अर्चना करते हैं। हरिद्वार में भी इस दौरान मेला लगता है जिसमें श्रद्धालुओं का उत्साह देखते ही बनता है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गई है। गोरखनाथ मंदिर में लगने वाला खिचड़ी मेला भी काफी प्रसिद्ध है।
देशभर में अलग-अलग छटाएं
जहां समूचे उत्तर प्रदेश में इस पर्व को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी सेवन एवं खिचड़ी दान का अत्यधिक महत्व होता है वहीं महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएं अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल, नमक आदि वस्तुएं अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन कूड़ा करकट जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है। पोंगल मनाने के लिए स्नान करके खुले आंगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनाई जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं। इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाकर खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं। असम में मकर संक्रांति को माघ−बिहू अथवा भोगाली−बिहू के नाम से मनाया जाता है तो राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएं अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
अन्य मान्यताएं
मकर संक्रांति पर्व से जुड़ी एक मान्यता यह भी है कि महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथ के पीछे−पीछे चल कर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
-शुभा दुबे

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