सुप्रीम कोर्ट ने झारखण्ड सरकार की अधिसूचना रद्द की
- अनुसूचित क्षेत्र में सौ फीसदी आरक्षण असांविधानिक
झारखण्ड/राँची : सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कल मंगलवार को कहा, एक राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्र में स्थानीय उम्मीदवारों के लिए 100 फीसदी आरक्षण तय नहीं कर सकती। यह पूरी तरह असांविधानिक है और सार्वजनिक रोजगार में गैर-भेदभाव के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। शीर्ष अदालत ने सेकेंडरी स्कूलों के लिए प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टीजीटी) भर्ती से संबंधित मामले में यह टिप्पणी की।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने कहा, सार्वजनिक रोजगार के अवसर से अन्यायपूर्ण तरीके से कुछ व्यक्तियों को वंचित नहीं किया जा सकता है। यह कुछ लोगों का विशेषाधिकार नहीं है। ऐसा करने पर शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है। नागरिकों को समान अधिकार हैं और एक वर्ग के लिए अवसर पैदा करके दूसरों को पूरी तरह से बाहर करने पर संविधान निर्माताओं ने विचार नहीं किया था।
इस टिप्पणी के साथ ही शीर्ष अदालत ने झारखण्ड राज्य द्वारा राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में तृतीय और चतुर्थ श्रेणी पदों में स्थानीय निवासियों के लिए 100 फीसदी आरक्षण प्रदान करने संबंधी 2016 में जारी एक अधिसूचना को रद्द कर दिया। पीठ ने कहा, संबंधित अनुसूचित जिलों व क्षेत्रों के केवल स्थानीय निवासियों के लिए प्रदान किया गया 100 फीसदी आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद-16 (2) का उल्लंघन है। यह गैर-अनुसूचित क्षेत्रों व जिलों के अन्य उम्मीदवारों व नागरिकों के अधिकारों को प्रभावित करने वाला है।
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि अनुच्छेद-16 (3) व अनुच्छेद-35 के अनुसार, स्थानीय अधिवास (डोमिसाइल) आरक्षण केवल संसद द्वारा अधिनियमित कानून के माध्यम से प्रदान किया जा सकता है। राज्य विधानमंडल को ऐसा करने की शक्ति नहीं है। इसलिए अधिसूचना अनुच्छेद-16(3) और 35 का उल्लंघन है।