हिन्दू धर्म के कौन-कौन से त्योहार श्रीराम के जीवन से जुड़े हुए हैं?

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हिन्दुओं के आराध्य देव श्रीराम भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विख्यात श्रीराम का नाम हिन्दुओं के जन्म से लेकर मरण तक उनके साथ रहता है। अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम ने असुर राज रावण और अन्य आसुरी शक्तियों के प्रकोप से धरती को मुक्त कराने के लिए ही इस धरा पर जन्म लिया था। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से नैतिकता, वीरता, कर्तव्यपरायणता के जो उदाहरण प्रस्तुत किये वह बाद में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक का काम करने लगे।

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महर्षि वाल्मीकि ने अपने महाकाव्य ‘रामायण’ और संत तुलसीदास जी ने भक्ति काव्य ‘श्रीरामचरितमानस’ में भगवान श्रीराम के जीवन का विस्तृत वर्णन बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। हिन्दू धर्म के कई त्योहार श्रीराम के जीवन से जुड़े हुए हैं जिनमें रामनवमी के रूप में उनका जन्मदिवस मनाया जाता है तो दशहरा पर्व भगवान श्रीराम द्वारा रावण का वध करने की खुशी में मनाया जाता है। श्रीराम के वनवास समाप्त कर अयोध्या लौटने की खुशी में हिन्दुओं का सबसे बड़ा पर्व दीपावली मनाया जाता है।
राम प्रजा को हर तरह से सुखी रखना राजा का परम कर्तव्य मानते थे। उनकी धारणा थी कि जिस राजा के शासन में प्रजा दुखी रहती है, वह अवश्य ही नरक का अधिकारी होता है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में रामराज्य की विशद चर्चा की है। राम अद्वितीय महापुरुष थे। वे अतुल्य बलशाली तथा उच्च शील के व्यक्ति थे।
युवा श्रीराम के जीवनकाल में तब बड़ा परिवर्तन आया जब वह अपने छोटे भाई लक्ष्मण तथा मुनि विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचे और वहां श्रीराम ने जनकजी द्वारा प्रतिज्ञा के रूप में रखे शिव−धनुष को तोड़ दिया। जिसके बाद राजा ने साक्षात् लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न सीता का विवाह राम के साथ कर दिया तथा दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ कर दिया। इसके बाद महाराज दशरथ ने अपने बड़े पुत्र राम को राज्य करने योग्य देखकर उन्हें राज्य भार सौंपने का मन में निश्चय किया।
राजतिलक संबंधी सामग्रियों का प्रबंध हुआ देखकर महाराज दशरथ की तीसरी पत्नी रानी कैकेयी ने अपनी वशीभूत महाराज दशरथ से पूर्व कल्पित दो वरदान मांगे। उन्होंने पहले वरदान के रूप में अपने पुत्र भरत के लिये राज्य तथा दूसरे वरदान के रूप में श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मांगा। कैकेयी का वचन मानकर श्रीरामचन्द्र जी सीता तथा लक्ष्मण के साथ दण्डक वन चले गये, जहां राक्षस रहते थे। इसके बाद पुत्र के वियोग जनित शोक से संतप्त पुण्यात्मा दशरथ ने पूर्व काल में एक व्यक्ति द्वारा प्रदत्त शाप का स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिये।

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वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण राक्षस तथा लंका का राजा था। सौ योजन का समुद्र लांघकर हनुमान जी ने सीता का पता लगाया। समुद्र पर सेतु बना। रणभूमि के महायज्ञ में श्रीराम के बाणों ने राक्षसों के साथ कुम्भकर्ण और रावण के प्राणों की आहुति ले ली। भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे और वहां सबसे मिलने के बाद श्रीराम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ। अयोध्या में ग्यारह हजार वर्षों तक उनका दिव्य शासन रहा।
– शुभा दुबे

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