एस जयशंकर के बारे में ये बातें जानते हैं आप? कैसा रहा विदेश सचिव से विदेश मंत्री बनने तक का सफ़र
नरेंद्र मोदी 2.0 की सरकार के शपथ ग्रहण के दौरान कई जाने पहचाने नामों ने शपथ ली। लेकिन एक नाम ऐसा भी आया जो हर किसी को चौंका गया। ये नाम पूर्व विदेश सचिव का रहा जिन्हें विदेश मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया। सुब्रमण्यम जयशंकर हाईप्रोफाइल परिवार से आते हैं। उनका परिवार मूल रूप से तमिलनाडु का है लेकिन उनका जन्म और उनकी परवरिश दिल्ली में हुई है। उनके पिता के सुब्रमण्यम भी नौकरशाह थे। उन्होंने देश के न्यूक्लियर प्रोग्राम और कारगिल रिव्यू कमेटी के साथ ही मनमोहन सिंह के कार्यकाल में रणनीतिक विकास के लिए बने टास्क फोर्स में अहम भूमिका निभाई। आपको भारत के विदेश मंत्रा एस जयशंकर के जीवन से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों के बारे में बताते हैं।
शिक्षा और परिवार
नई दिल्ली में जन्मे एस जयशंकर की शिक्षा एयरफोर्स स्कूल और सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हुई। उनकी पत्नी का नाम क्योको जयशंकर है और उनके दो पुत्र तथा एक पुत्री हैं। उन्हें कुल 36 साल का राजनयिक अनुभव हैं। जयशंकर ने पॉलिटिकल साइंस से एमए करने के अलावा एमफिल और पीएचडी भी किया है। वह इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटिजक स्टडी लंदन के भी सदस्य हैं।
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कई अहम पदों पर देश की सेवा की है
1977 बैच के आईएफएस अफसर जयशंकर पदम्मश्री सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं। पूर्व कूटनीतिक विशेषज्ञ एस जयशंकर 1977 में भारतीय विदेश सेवा यानि की आईएफएस अधिकारी बने थे। बतौर आईएफएस अफसर उन्होंने कई अहम पदों पर देश की सेवा की है और यूएस चेन, चेक गणराज्य जैसे देशों में भारत के राजदूत भी रहे हैं। एस जयशंकर ने सिंगापुर में हाई कमीश्नर की भी भूमिका निभाई है।
विदेश सचिव के रूप में भूमिका
जनवरी 2015 में एस जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त किया गया था और सुजाता सिंह को हटाने के मोदी सरकार के फैसले के समय को लेकर विभिन्न तबकों ने तीखी प्रतिक्रिया जताई थी। सुजाता को उनका कार्यकाल पूरा होने के छह महीने पहले ही हटा दिया गया था। ऐसा माना जाता है कि सितंबर 2014 में प्रधानमंत्री के रूप में अपनी पहली अमेरिका यात्रा के दौरान नरेंद्र मोदी एस जयशंकर से काफी प्रभावित हुए थे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इसी दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से मुलाकात की थी और न्यूयॉर्क के मैडिसन स्क्वायर गार्डन में भारतीय मूल के लोगों को संबोधित किया था, जिसने उन्हें एक वैश्विक पहचान दी थी।
चीन एवं अमेरिकी मामलों के जानकार
पूर्व विदेश सचिव को चीन एवं अमेरिकी मामलों का जानकार भी माना जाता है। वह चीन में बतौर राजदूत रहे हैं और उनके कार्यकाल में ही लद्दाख के डेपसांग और फिर जून 2017 में डोकलाम विवाद हुआ था। जयशंकर ने बखूबी इन मसलों को सुलझाया था। कहते हैं कि जयशंकर ने उस समय पर्दे के पीछे एक सक्रिय भूमिका अदा की थी। भारत और अमेरिका के बीच देवयानी खोबरागड़े विवाद को सुलझाने में जयशंकर की अहम भूमिका थी।