मोक्षदा एकादशी पर अर्जुन की तरह सभी के मोह और पापों का क्षय हो जाता है

मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही मोक्षदा एकादशी कहते हैं। इस दिन गीता जयन्ती भी मनाई जाती है। मोक्षदा एकादशी एक मात्र ऐसा पर्व है, जो विष्णु के परम धाम का मार्ग प्रशस्त करता है। गीता जयंती साथ ही होने से इस पर्व का महत्व और अधिक बढ़ गया है।
चूंकि एकादशी के दिन गंगा स्नान करने से सीधे मोक्ष की प्राप्ति होती है, अत: अनेक श्रद्धालु इस दिन गंगा जल में डुबकी लगाकर मोक्ष की कामना करते हैं।
इस दिन कुरुक्षेत्र की रणस्थली में कर्म से विमुख हुए अर्जुन को भगवान कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। गीता को संजीवनी विद्या की संज्ञा दी गई है। गीता के जीवन दर्शन के अनुसार− मनुष्य महान है, अमर है, असीम शक्ति का भंडार है। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन ने श्रीकृष्ण से कहा था, ”मैं युद्ध नहीं करूंगा। अपने बंधु बांधवों तथा गुरुओं को मारकर राजसुख भोगने की मेरी इच्छा नहीं है।”
यही अर्जुन कुछ क्षणों पूर्व कौरवों की सारी सेना को धराशायी करने के लिए संकल्प कर चुके थे। किंतु अब अधीर होकर कर्म से विमुख हो रहे थे। ऐसे में कर्तव्य विमुख अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया था, वही गीता है।
गीता की गणना विश्व के महान ग्रंथों में की जाती है। गीता अमृत है। इस अमृत का पान करने से व्यक्ति अमर हो जाता है। गीता का आरम्भ धर्म से तथा अंत कर्म से होता है। गीता मनुष्य को प्रेरणा देती है। इसी आधार पर अर्जुन ने स्वीकारा था, ”भगवान मेरा मोह क्षय हो गया है। अज्ञान से मैं ज्ञान का प्रवेश पा गया हूं। आपके आदेश का पालन करने के लिए मैं कटिबद्ध हूं।”
गीता में कुल अठारह अध्याय हैं। महाभारत का युद्ध भी अठारह दिन तक ही चला था। गीता के कुल श्लोकों की संख्या सात सौ है। भगवद गीता में भक्ति तथा कर्म योग का सुंदर समन्वय है। इसमें ज्ञान को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। ज्ञान की प्राप्ति पर ही मनुष्य की शंकाओं का वास्तविक समाधान होता है। इसीलिए गीता सर्वशास्त्रमीय है। योगीराज श्रीकृष्ण का मनुष्यमात्र को संदेश है− कर्म करो। तुम्हारा कर्तव्य कर्म करना ही है। फल की आशा मत करो। फल को दृष्टि में रखकर भी कर्म मत करो। कर्म करो, पर निष्काम भाव से। फल की इच्छा से कर्म करने वाला व्यक्ति विफल होकर दुखी होता है। अस्तु लक्ष्य की ओर प्रयासरत रहना ही अच्छा है।
इस दिन श्रीगीताजी, श्रीकृष्ण, व्यासजी आदि का श्रद्धापूर्वक पूजन करके गीता जयन्ती का समारोह मनाना चाहिए। गीता पाठ तथा गीता प्रवचन आदि का आयोजन करना चाहिए। इसका सदा ही शुभ फल प्राप्त होता है। अर्जुन के मोह क्षय की भांति इससे सभी श्रद्धालुओं के मोह व पापों का क्षय हो जाता है इसीलिए यह मोक्षदा है।
-शुभा दुबे