गांजे को वैध कराने की उठ रही है मांग! जानिए क्या है पूरा मामला

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नेपाल की संस्कृति और धर्म में पूरी तरह से घुले-मिले गांजे के उपयोग और उसकी स्वीकार्यता के कारण एक वक्त था जब हिमालयी देश दुनिया भर से आने वाले हिप्पियों के लिए जन्नत हुआ करता था और यूरोप तथा अमेरिका से हजारों की संख्या में बसों में भर-भर कर हिप्पी आया करते थे।

 

लेकिन नेपाल ने दुनिया के अन्य देशों का अनुकरण करते हुए 1970 के दशक के अंत में गांजे के उपयोग को गैर-कानूनी बना दिया और हिप्पियों का यहां आना बंद हो गया।

अब करीब 50 साल बाद फिर से गांजे की खेती, उपयोग और निर्यात को कानूनी मान्यता देने की मांग की जा रही है क्योंकि दुनिया के अन्य कई देशों ने भी गांजे के मेडिकल और रिक्रिएशनल (मनोरंजन के लिए) उपयोग की अनुमति दे दी है।
गांजे को कानूनी मान्यता देने के पक्षधरों ने इस संबंध में संसद में एक विधेयक पेश किया है जो गांजे के उपयोग को कानूनी मान्यता देगा।

 

 

 

हालांकि देश में राजनीतिक दलों के बीच जारी मतभेद के कारण इस विधेयक पर चर्चा में देरी हो रही है। अभियान के प्रमुख राजीव काफ्ले ने कहा, ‘‘हम नेपाल में गांजे को कानूनी मान्यता देने की मांग कर रहे हैं, सबसे पहले ऐसे मरीजों के चिकित्सकीय उपयोग के लिए जो मृत्यु की कगार पर हैं।’’

 

 

एड्स के कारक विषाणु एचआईवी से संक्रमित काफ्ले का कहना है कि गांजे ने उन्हें इस दर्द से निपटने में मदद की और उन्हें शराब तथा अन्य मादक पदार्थों के नशे से दूर रखा।

 

 

 

 

नेपाल में गांजे के उपयोग को सामान्य स्वीकार्यता है। 1960 और 70 के दशक में इसने पश्चिमी देशों से हिप्पियों को खूब आकर्षित किया। लेकिन, पश्चिमी देशों की सरकारों से पड़ने वाले दबाव ने नेपाल को गांजे और अन्य मादक पदार्थों को गैर-कानूनी घोषित करने पर मजबूर किया।

 

 

 

 

गांवों में गांजे के पौधे सामान्य तौर पर खर पतवार की तरह उगते हैं लेकिन खेतों में बिक्री के लिए लगाए गए पौधों को कई बार पुलिस नष्ट कर देती है। ऐसे भी शहर में जहां हजारों लोग गांजे का उपयोग करते हैं, वहां इसे खरीदना कुछ मुश्किल काम नहीं है।

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आकाश भगत

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