पितृ अमावस्या 2021: बरसो बाद बन रहा ग्रह नक्षत्रों द्वारा पितरों की विदाई का शुभ योग

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सर्व पितृ अमावस्या पितृ पक्ष का आखिरी दिन होता है। इसे विसर्जनी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन उन सभी पितरों का तर्पण-श्राद्ध किया जाता है, जिनकी तिथि हम भूल चुके होते हैं या ज्ञात नहीं होती।
अश्विन मास की अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है।  इस साल 6 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या है। इस दिन किए गए कई उपाय हमारे कष्टों को दूर कर देते हैं। अश्विन मास की इस अमावस्या की खास बात यह है कि इस बार इस दिन एक विशेष योग बन रहा है, जो कि कई सालों में बनता है।
आइए जानते हैं इस विशेष योग के बारे में… 
सर्व पितृ अमावस्या पर ग्रह नक्षत्रों का शुभ योग बन रहा है। पितृ अमावस्या पर गज्ज्छाया योग बन रहा है। इस योग को बेहद शुभ माना जाता है। बुधवार छह अक्तूबर को सूर्योदय से सूर्य और चंद्रमा शाम 04 बजकर 34 मिनट तक हस्त नक्षत्र में होंगे। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गज्ज्छाया योग में श्राद्ध या तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं। इस दिन ब्रह्म योग और इंद्र योग का बन रहा है। अब ये योग 8 साल बाद 2029 में बनेगा।
सूर्य की सहस्र किरणों में जो सबसे प्रमुख किरण है उसका नाम ‘अमा’ है। उस अमा नामक प्रधान किरण के तेज से सूर्य त्रिलोक को प्रकाशित करते हैं। उसी अमा में इस तिथि विशेष को चंद्रदेव निवास करते हैं (वस्य), इसलिए इसका नाम ‘अमावस्या’ है।
विगत पंद्रह दिनों से पृथ्वी की परिधि में पधारे हमारे पितर गण अमावस्या के दिन विशेष तर्पण एवं भोज्य पदार्थों को ग्रहण करते हुए अपने वंशजों को राजी-खुशी एवं सुख समृद्धि का आशीर्वाद देते हुए पितृ लोक प्रस्थान करेंगे। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान सभी पितर वायु रूप में धरती पर आते हैं पितरों को अमावस्या के दिन विदाई दी जाती है और पितर अपने लोक चले जाते हैं।
पंचमुखी मंदिर के पंडित कैलाश दत्त ने बताया कि पद्म पुराण, मार्कंडेय और अन्य पुराणों में कहा गया है कि अश्विन महीने की अमावस्या पर पितृ पिंडदान और तिलांजलि चाहते हैं। यदि उन्हें यह नहीं मिलता तो वे अतृप्त होकर ही चले जाते हैं। यदि जातक इस दिन पीपल के पत्तों पर पांच तरह की मिठाइयों को रखकर पीपल की पूजा करें। पितरों से प्रार्थना करें कि वह हमेशा आप पर आशीर्वाद बनाए रखें। पितर संतुष्ट होकर अपने लोक जाएंगे तो आप सुख से रहेंगे। तथा जो व्यक्ति अपने पितरों की देहांत तिथि के अनुसार, पूर्व श्राद्ध के पंद्रह दिनों में किसी भी कारणवश शास्त्रोक्त विधि से श्राद्धकर्म नहीं कर पाए। वह इस अमावस्या तिथि को पितरों के निमित पिंडदान, तर्पण व श्राद्धकर्म कर धर्म लाभ ले सकते हैं।
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आकाश भगत

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