केबिनेट गठन से लेकर सरकार की अहम पोस्टिंग में नवजोत सिंह सिद्धू की नहीं चली तो वह पार्टी से इस्तीफा देने को विवश हुये

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चंडीगढ । नवजोत सिंह सिद्धू का इस्तीफा अचानक नहीं आया। पिछले दिनों पंजाब की राजनिति में घटे घटनाक्रम के चलते उन्हें इसके लिये मजबूर होना पडा। । कैप्टन अमरेन्दर सिंह के इस्तीफे के अगले दिन से ही से सिद्धू का एक ही लक्ष्य था , कि सरकार की नियुक्तियों में उनकी भी सुनी जाये। उनकी नाराजगी के बावजूद चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया गया, सब कुछ अच्छा था और इस फैसले की सराहना पूरे देश में हुई ।
 

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लेकिन तनातनी की शुरूआत एपीएस देओल की तैनाती के साथ ही हो गई। राज्य में महाधिवक्ता के पद पर एपीएस देओल को चुना गया है, जिन्होंने पूर्व डीजीपी सुमेध सिंह सैनी का केस कोर्ट में लड़ा था। बेहबल कलां फायरिंग केस के मामले में वह कानूनी जंग में उतरे थे। सिद्धू इनके भी विरोध में थे, लेकिन हाईकमान ने यहां भी उनकी राय को महत्व नहीं दिया।  सिद्धू चाहते थे कि दीपिंदर पटवालिया  को एडवोकेट जनरल नियुक्त किया जाए, लेकिन पार्टी ने उनकी नहीं सुनी व सुमेध सैनी के वकील रहेएपीएस देओल को एडवोकेट जनरल नियुक्त किया । 
 
 
सिद्धू ने कैबिनेट मंत्रियों के मामले में चाहते थे नए मंत्री बने जिन पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं हों। उनके कुछ नाम स्वीकार किए गए अधिकतर नाम हाईकमान और चन्नी-मनप्रीत बादल की जोड़ी की सलाह पर मंजूर हुये । कैप्टन गुट में जो नाम पहले थे और भ्रष्टाचार के लिए मशहूर थे वो भी शामिल हो गये गए । सिंगला, आशु, ब्रह्म मोहिंद्रा और खासकर राणा गुरजीत  जिनमें प्रमुख थे। सिद्धू नहीं चाहते थे कि ये लोग दोबारा कैबिनेट में आए क्योंकि इनका नाम कहीं न कहीं भ्रष्टाचार से जुड़ गया है । राणा गुरजीत मामले में सिद्धू ने बार-बार विरोध दर्ज कराया । लेकिन चन्नी-मनप्रीत बादल की जोड़ी हाईकमान के साथ मिलकर सिद्धू की एक नहीं चलने दी । इन दोनों ने सिद्धू और सुखी रंधवा को कई मुद्दों पर लड़ाया । 
 

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इन पुराने मंत्रियों और राणा गुरजीत के साथ ही सिद्धू दवाब के बाद अरुणा चौधरी पर दबाव के चलते जोड़ा गया । सिद्धू चाहते थे अरुणा चौधरी को मजहबी समाज से कैबिनेट मंत्री बनाया जाए । दलित समुदाय का एक बड़ा हिस्सा धार्मिक समुदाय है । चन्नी इस पर बिल्कुल सहमत नहीं थे । विधायक राणा गुरजीत सिंह को मंत्री बनाए जाने का सिद्धू ने पूरा विरोध किया था। लेकिन पार्टी हाईकमान ने उनकी बात नजरअंदाज की और उन्हें मंत्री पद दिया गया। सिद्धू का कहना था कि राणा गुरजीत के ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप हैं। उनकी ओर से अंतिम समय तक विरोध किया गया था, लेकिन दरकिनार कर दिया गया।
 

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नवजोत सिंह सिद्धू अपने करीबी कई नेताओं को कैबिनेट में देखना चाहते थे, लेकिन परगट सिंह और रजिया सुल्ताना के अलावा किसी और को मौका नहीं दिया गया। कहा जा रहा है कि कैबिनेट के गठन के वक्त से ही सिद्धू खुद को किनारे लगा महसूस करने लगे थे और अंत में इस्तीफा भी दे दिया। अब खुद रजिया सुल्ताना ने भी उनके समर्थन में कैबिनेट मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया है।
 
बची हुई बात डीजीपी की है ।  सिद्धू चाहते थे सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय पंजाब के डीजीपी बनें यह बात उन्होंने कई बार कही लेकिन मनप्रीत बादल के साथ चरणजीत चन्नी ने इकबालप्रीत सिंह सहोता को तैनाती दे दी । सहोता अकाली सरकार के समय गुरू ग्रंथ साहिब से अनादर मामले के दौरान थे । 
 
 
यह भी कहा गया था कि सुखी रंधावा अपना काम करने के लिए  चट्टोपाध्याय   से खुश नहीं है । सबसे बड़ी बात यह थी कि सिद्धू के इन सभी अपॉइंटमेंट में कुछ नहीं होने के बावजूद पूरा देश सोच रहा था कि सिद्धू की सहमति से सब कुछ हो रहा था । मंत्रिमंडल शपथ ग्रहण समारोह के बाद सिद्धू ने न मुलाकात की न बात की, उनके पटियाला घर में भी सन्नाटा था । सिद्धू तब भी नहीं आया जब सुबह मंत्रियों को विभागों से मिलना था, हेलीकॉप्टर भी पटियाला भेजा गया लेकिन वो नहीं आये और कहते रहे कि मूड ठीक नहीं है । ये तो कई दिनो से चल रहा था और सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया 
नवजोत सिंह सिद्धू के बारे में कहा जा रहा है कि वे सुखजिंदर रंधावा की जगह खुद को सीएम देखना चाहते थे। ऐसे में हाईकमान ने किसी जाट सिख को चुनने की बजाय दलित नेता चरणजीत सिंह चन्नी पर दांव लगाया। पार्टी को उम्मीद थी कि इससे सिद्धू राजी हो जाएंगे, लेकिन जब रंधावा को होम मिनिस्ट्री का जिम्मा मिला तो वह एक बार फिर से भड़क गए। 
 
बताया जा रहा है कि हाईकमान ने नवजोत सिंह सिद्धू को सीधे तौर पर कहा दिया था कि वे सुपर सीएम बनने की बजाय प्रदेश के संगठन को मजबूत करने पर फोकस करें। इस बात को सिद्धू ने अपने खिलाफ समझा क्योंकि वह सरकार में भी अपना पूरा दखल चाहते थे।

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