नए कृषि कानून का दिखने लगा मंडियों पर असर, आवक घाटी,मंडी शुल्क में भी दर्ज हुई भरी गिरावट
मेरठ, तीन नए कृषि कानूनों में सरकार ने व्यापारियों को अधिक भंडारण की छूट दी है, वहीं किसानों को अपनी फसल मंडियों से बाहर कहीं पर भी बेचने का अधिकार दिया है। अब इन कृषि कानूनों का असर धरातल पर नज़र आने लगा है। प्रदेश की मंडियों में कृषि उत्पाद की आवक और मंडी शुल्क में 50 प्रतिशत से भी अधिक गिरावट आई है। इसके चलते मध्यमवर्गीय व्यापारियों से लेकर किसानों तक की चिंता बढ़ गई है। मंडी समिति के कर्मचारियों को भी वेतन न मिलने का भय सताने लगा है।
मंडी से जुड़े सूत्रों के अनुसार नए कानूनों का डर और आंदोलन के असर के साथ ही मौजूदा परिस्थितियों में कृषि उत्पादों की आवक और आय पर बड़ा असर पड़ रहा है। वहीं, मंडी से बाहर कृषि उत्पाद बेचने वाले किसानों को फसल का उचित दाम न मिलने की शिकायतें तो पहले से ही हैं। वहीं कुछ किसान और व्यापारी इसे नए कृषि कानूनों से जोड़ रहे हैं। उनका मानना है कि नए नियम कायदे मंडियों से जुड़े किसानों और व्यापार के अनुकूल नहीं हैं।
पश्चिमी यूपी के मेरठ मंडल की मेरठ मंडी समिति सहित 22 मंडियों से सरकार को वर्ष 2019-20 में लगभग 96 करोड़ रुपये मंडी शुल्क के रूप में मिले थे। जो अब वित्तीय वर्ष 2020-21 में घटकर 46 करोड़ रह गए हैं। कुछ व्यापारियों ने तो यहां तक आशंका जताई है कि इन हालात में मंडियों पर ताला लटक जाएगा। क्योंकि जिनता खर्च मंडी समितियों में स्टाफ के वेतन पर किया जा रहा है, मंडी शुल्क से उतनी आय नहीं हो रही है।
सूत्रों के अनुसार मंडी के कुछ व्यापारी मंडी के अंदर अपनी दुकान पर आने वाले कृषि उत्पाद की खरीद फरोख्त करने के बाद भी इस कारोबार को मंडी से बाहर दिखा रहे हैं। इसका सीधा असर मंडी समिति की आय पर पड़ रहा है। इस खेल पर अंकुश लगाना भी जरूरी है।
मंडी समिति के सचिव विजिन बालियान ने बताया कि मंडी में आवक गिरी है। मंडी शुल्क भी कम हुआ है क्योकि कुछ व्यापारियों ने अपने लाइसेंस सरेंडर करने के लिए आवेदन किए हैं। कई व्यापारी मंडी से बाहर व्यापार करने लगे हैं। वही व्यापार संघ मेरठ के अध्यक्ष नवीन गुप्ता के अनुसार नए कृषि कानूनों ने मंडी में कारोबार को समेट दिया है। ये कानून न किसान के हित में हैं और न व्यापारी के। किसान अपने हित की ही नहीं बल्कि व्यापारी हित की भी लड़ाई लड़ रहे हैं।