मानव और प्रकृति के बीच टकराव, जंगलों पर हो रही राजनीति की कहानी है ‘शेरनी’

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विद्या बालन की एक बार फिर ओटीटी पर वापसी हुई हैं। शकुंतला देवी की बायोपिक के बाद अमेजन प्राइम वीडियो पर विद्या बालन की फिल्म शेरनी रिलीज हुई हैं। फिल्म वन विभाग से जुड़े एक बहुत ही बड़े मुद्दे को उठाती हैं। फिल्म की कहानी बाघों की हत्या जैसे गंभीर सब्जेक्ट पर आधारित हैं जिसके विषय में सरकारों सहित लोगों को भी सोचना चाहिए। फिल्म में एक डायलॉक है जो फिल्म की कहानी का सार बया करता है- ‘अगर विकास के साथ जीना है तो पर्यावरण को बचा नहीं सकते और अगर पर्यावरण को बचाने जाओ तो विकास बेचारा उदास हो जाता है।’ 
 

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इस डायलॉग को आप आज की परिस्थिति से भी जोड़कर देख सकते हैं। देश कोरोना महामारी की चपेट में हैं। ये महामारी भी पर्यावरण से छेड़छाड़ करने का ही नतीजा है।  कोरोना को रोकने के लिए विश्वभर में लॉकडाउन लगाया गया जिसकी वजह से विश्व के कई देशों की अर्थव्यवस्था कई साल पीछे चली गयी। बाघों की हत्या पूरे विश्व के लिए एक बुहत बड़ा मुद्दा है, इस लिए भारत सरकार कई राज्यों में सेव टाइगर की मुहीम चला रही हैं। विद्या बालन की फिल्म शेरनी में एक छोटा सा बच्चा अपने कक्षा में पढ़ाई गयी लाइन को दोहराते हुए कहता है कि बाघों के कारण ही जंगल है, जंगल है तो बारिश है, पानी है तो इंसान हैं, इस लिए इंसानों के लिए जंगलों का होना बहुत जरूरी है। जंगल तभी रहेगा जब उनमें जानवर होगें। बाघों की हत्या जैसे मुद्दे को लेकर बनायी गयी फिल्म में आप देखेंगे कि कैसे राजनीति और प्रशासनिक स्तर पर लोगों की दोगलेबाजी, स्वार्थ के कारण जंगलों का नाश होता जा रहा है। 
 

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 फिल्म की कहानी
 फिल्म शेरनी में विद्या विन्सेंट (विद्या बालन) 6 साल वन विभाग में डेस्क पर नौकरी करने के बाद जंगल में डीएफओ की पोस्ट पर आती हैं। वह यहा के हालात को देखती है और कमियों पर काम करती है। विद्या एक सख्त ऑफिसर है लेकिन हिंदी फिल्मों की तरह हीरोगिरी नहीं करती हैं। फिल्म में आप देखेंगे की एक टाइगर गांव वालों पर हमला करना शुरू कर देता हैं। टी12 नाम की ये शेरनी अपना रास्ता भटक गयी है और वापस जंगल की और बढ़ रही है। रास्तें में गावों और खेत होने शेरनी लोगों का शिकार भी करती है। शेरनी के शिकार का मुद्दा राजनीतिक बन जाता है क्योंकि प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं और राजनीतिक पार्टियों ने टाइगर अटैक को पॉलिटिकल मुद्दा बना दिया है। टाइगर अटैक को रोकने के लिए क्षेत्र के विधायक शेरनी को मारने का ऐलान कर देते हैं। वन विभाग की टीम को काम करने नहीं दिया जाता। वन विभाग पर राजनैतिक प्रेशर डाला जाता है। अब विन विभाग की डीएफओ विद्या विन्सेंट को शेरनी को बचाने की चुनौती होती है। फिल्म में आप देखेंगे कि सरकारी अफसर कैसे राजनीतिक दबाव और स्वार्थ के सामने अपने घुटने टेक देते हैं। 
 
 
कलाकार , एक्टिंग और निर्देशन
फिल्म में विद्या बालन के अलावा मुकुल चड्ढा, विजय राज, नीरज काबी, शरत सक्सेना, बृजेंद्र काला जैसे बड़े कलाकार है। विद्या बालन की आदाकारी से हम सभी वाकिफ है कि वह जिस भी किरदार को निभाती है उसे पर्दे पर जिंदा कर देती हैं। विद्या बालन ने एक गंभीर ऑफिसर का किरदार बहुत ही शानदार तरीके से निभाया है। निर्देशक अमित मसुरकर ने फिल्म को बहुत ऑरिजनल तरीके ने निर्देशित किया है। बहुत बारीकी से चीजे दिखायी है। वहीं कहानी को भी जमीनी स्तर से जोड़ कर दिखाया गया है। नेशनल पार्क के जो इलाके होते हैं वहां जिस तरह की समस्याएं होती है उन्हें फिल्म में दिखाया गया है। फिल्म एक सब्जेक्टिव मूवी है जो एक गंभीर मुद्दें पर ध्यान आकर्षित करती है। 
 
कलाकार: विद्या बालन, मुकुल चड्ढा, विजय राज, नीरज काबी, शरत सक्सेना, बृजेंद्र काला
निर्देशक: अमित मसुरकर
रेटिंग: 3.5 स्टार (5 में से)
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