शिव की जांघों से पैदा हुए हैं जंगम समुदाय के लोग, पढ़ें इन शिव भक्तों के इतिहास से जुड़े रोचक किस्से

शिमला ।  सावन का महीना हो या फिर शिवरात्री के दौरान उत्तरी भारत में घर घर जाकर शिव महिमा का गुणगान करने वाले जंगम का जीवन भी काफी रोचक रहा है।
दरअसल, सिर पर नाग प्रतिमा जड़ित मुकुट, कानों में कुंडल,हाथ में घंटी लिये पुरूष कहीं दिखाई दे तो मन में कौतूहल उत्पन्न होता है कि आखिर यह कौन है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार  इन पुरूषों को भगवान शंकर ने अपनी जांघ से उत्पन्न किया और इसी कारण इन्हें जंगम के नाम से जाना जाता है।
 
भगवान और पार्वती के विवाह के उपरांत भगवान शिव के विवाह के दान को किसी ने नहीं लिया। यह देख शिव दान देने विष्णु भगवान के पास गये , तो उन्होंने भी दान लेने को मना कर दिया। कहा कि हे भोलेनाथ आपका दिया दान तो वही ले सकता है, जो सुबह शाम आपका गुणगान करे। इसके बाद भगवान शंकर ब्रहमा के पास पहुंचे,और उनसे विवाह दान लेने का आग्रह किया।  इस पर ब्रहमा जी ने कहा कि मैं तो दान लेने वाला नहीं । अगर ऐसा होता है तो तीनों लोकों के प्राणी भी मुझे दान देने लगेंगे व सारी सृष्टि का खेल ही उलट हो जायेगा।  इसलिये मैं आपका यह दान नहीं ले सकता। यह सब देखकर माता पार्वती ने भगवान शंकर से कहा कि प्रभु आपकी लीला तो अपरंपार है।  आप अपनी शक्ति से अपने विवाह का दान लेने वाले किसी मानव की उत्पति कर  दो।
 

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काफी सोच विचार के बाद भगवान शंकर ने अपनी जांघ से मानव पैदा किया । मानव से हाथ जोड़ कर भगवान शंकर ने प्रार्थना कि की हे प्रभु, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं। तब भगवान श्ांकर ने अपने विवाह का सामान मानव से स्वीकार करने को कहा। मानव ने भगवान शिव के आगे हाथ जोड़ कर कहा कि भगवान सुना है आपका दान बहुत प्रभावशाली होता है। मुझे तो इस दान का असर कम करने का भी ज्ञान नहीं है।  यह सुनकर विष्णु जी ने कहा कि तुम सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत्त होकर गुणगान सृष्टि में दर दर जाकर करना। मानव की भेष  भूषा के लिये भगवान शंकर ने नोग  दिया, भगवान विष्णु ने कलगी दी,पार्वती ने कुंडल कर्ण फूल,ब्रहमा जी ने जनेऊ,नंदीगण ने घंटी दी और मानव का नामकरण जंघम हुआ।
 

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हमारे देश के हरियाणा राज्य के कैथल,कुरूक्षेत्र,जींदऔर करनाल में इन दिनों करीब पांच सौ से अधिक जंघम परिवार रहते हैं। यह परिवार मात्र 80 कोस के क्षेत्र में ही रहते हैं।  हर घर का एक व्यक्ति अपने पिता की मृत्यु के पशचात जंघम बनता है। जंघम संप्रदाय का सबसे बड़ा मंदिर कैथल में ही है।  जींद, लुधियाणा,जम्मू व कुरूक्षेत्र में जंगम संप्रदाय के बनाये शिव मंदिर हैं। यहां खासकर शिवरात्री पर यह लोग जुटते हैं। व यहां अराधना करते हैं। और उसी दिन लगभग 50 से अधिक जंगमों के समक्ष नये जंगम को जंगम बनाने के संस्कार दिये जाते हैं। जंगम पूर्ण रूप से वैष्णव प्रवृत्ति के होते हैं, व मांस मदिरा विषय विकारों से कोसों दूर रहते हैं। जंगम भांग व घोटा का इस्तेमाल करते हैं। जंगम का दिया हुआ दाल केवल शनिदान लेने वाला व्यक्ति ही ले सकता है।
 
जंगम कलियुग की वाणी कुछ तरह गाते हैं।
पुत्र की किरया बाप करेगा,बारह कोस पर दिया जलेगा, कोई कोई बंदा जिंदा बचेगा,पुडिय़ों में अनाज बिकेगा,तांबे की धरती होगी, लोहे का आकाश होगा,सवा हाथ का मर्द होगा, पौणे हाथ की जनानी होगी, पांच साल की कन्या होगी, सात साल का वर मांगेगी,अपना घर आप चुनगी,नौ साल की रचना रचेगी,12 साल की पुत्र खिलायेगी,14 साल की बांझ होगी,अठारह साल की नानी होगी, उन्नीस बिशवे पाप बढ़ेगा,एक बिस्वे धर्म होगा,पाप छायेगा दुनिया में ,पापी जमाना आयेगा,पुत्री बेच पिता ले खावे,बड़े बड़े मकान बनावें, बड़े बड़े व्यापार चलावें,जिउंदे पिता नरक में जावें,पुत्री का पैसा ऐसा बनेगा,यो सोने पे बने सुहागा,यो जल अंदर घुले पताशा,चंदन की तरह घुल जावें,यह सुन लो कलियुग की वाणी, इस तरह जंगम सृष्टि के दर दर जाकर शिव अराधना करते हैं। भगवान शंकर के गुणगान करने के बाद उन्हें जो भी दान मिलता है,उसे जंगम कभी भी अपने हाथ में नहीं लेते। बल्कि अपने हाथ में बजने वाली घंटी को उल्टा करके दान उसमें डलवाते हैं।  और फिर उल्टा  अपनी जेब में डाल लेते हैं।  जंघम का मानना है कि घ्ांटी अंदर से शिवलिंग के आकार की होती है। और जंगम शिवलिंग का चढ़ा हुआ दान खाते हैं।
 
आज के युग में जंगम द्धारा सुनाई जाने वाली कलियुग की वाणी सही साबित हो रही है। जिस तरह पुडिय़ा में आटा बिकेगा, थैलों में दूध बिकेगा तथा सृष्टि में अधर्म बढ़ेगा और धर्म कम होगा। शिव महिमा का गुणगान करके और कलियुग की घटनाओं  के प्रति लोगों को सचेत करते हुये जंगम लोगों को प्रभु के प्रति आस्था को बढ़ाने में निरंतर जुड़े हुये हैं। 

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