1948 में पहली बार पाकिस्तान से आए रिफ्यूजी कैंप के पंजाबी परिवारों ने शुरू किया था रावण दहन
झारखण्ड/राँची : साल 1948 से रांची में शुरू हुए रावण दहन 72 साल के बाद पहली बार आयोजित नहीं होगा। देश के विभाजन के दौरान पाकिस्तान से रांची पहुंचे पंजाबी परिवारों ने रावण दहन की परंपरा की शुरूआत की थी। उस वक्त यहां के खिजुरिया तालाब स्थित गोस्सनर कॉलेज कैंपस के रिफ्यूजी कैंप में 12-15 पंजाबी परिवार रहते थे जिन्होंने रावण दहन की शुरूआत की थी। इसके बाद से लगातार हर साल रावण दहन किया जाने लगा। लेकिन कोरोना के चलते इस साल रावण दहन पर रोक लग गई है।
पंजाबी-हिंदू बिरादरी के प्रवक्ता अरुण चावला ने बताया कि रांची में 10 से 12 जगहों पर रावण दहन किया जाता था। इनमें सबसे बड़ा और भव्य रावण दहन रांची के मोरहाबादी मैदान में होता था। यहां रावण के पुतले की ऊंचाई 65 फीट, जबकि मेघनाथ के पुतले की 60 और कुंभकरण के पुतले की ऊंचाई 55 फीट होती है। उन्होंने बताया कि मोरहाबादी मैदान में आयोजित सबसे बड़े रावण दहन कार्यक्रम में मुख्यमंत्री मुख्य अतिथि होते हैं। मोरहाबादी के बाद सबसे भव्य रावण दहन रांची के अरगोड़ा चौक पर होता है।
अरुण चावला ने बताया कि मोरहाबादी मैदान में रावण दहन कार्यक्रम के लिए सांस्कृतिक टीम कोलकाता से जबकि आतिशबाजी की टीम मुंबई से आती रही है।
उन्होंने बताया कि एक महीने पहले से रावण दहन कार्यक्रम की शुरूआत हो जाती है। कुल आयोजन में 15 से 20 लाख रुपए का खर्च आता है जिसे चंदा करके इक्ट्ठा किया जाता है। चंदा में समाज के सभी वर्गों के लोगों की भागीदारी होती है। पुतला बनाने के लिए गया से आता है मुस्लिम परिवार रांची के मोरहाबादी मैदान में आयोजित सबसे बड़े रावण दहन के लिए पुतला बनाने का काम बिहार के गया जिले का एक मुस्लिम परिवार करता है। अरुण चावला ने बताया कि गया के रहने वाले मोहम्मद मुस्लिम अपने कारीगर और परिवार के साथ रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला बनाने के लिए रांची आते हैं। उन्होंने कहा कि पुतला तैयार करने में करीब एक महीने का वक्त लगता है, इसलिए मोहम्मद मुस्लिम को एक महीना पहले यहां बुलाया जाता है जिसके बाद रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले को बनाने की तैयारी शुरू हो जाती है।
शुरुआत के कई सालों तक रावण का मुखौटा गधे का होता था रावण का पहला पुतला स्वर्गीय अमीरचंद सतीजा ने अपने हाथों से बनाया था। तब के डिग्री कॉलेज (बाद में रांची कॉलेज मेन रोड घर के सामने) के परिसर में 12 फीट का रावण का निर्माण किया गया था। उस वक्त रावण दहन के दौरान लगभग 400 लोगों की भीड़ थी। अरुण चावला ने बताया कि चूंकि रावण बुराई का प्रतीक माना जाता है, इसलिए रांची में रावण का मुखौटा पहले गधे का होता था लेकिन बाद में मुखौटा मानव मुख का बनने लगा।
उन्होंने बताया कि हर साल रावण दहन के दौरान बढ़ती भीड़ एवं रावण के पुतलों की बढ़ती लंबाई के कारण रावण दहन कार्यक्रम डिग्री कॉलेज, खजुरिया तालाब के पास शरणार्थी शिविर, डोरंडा के राम मंदिर, बारी पार्क तथा राजभवन के सामने नक्षत्र वन में होने लगा। इसके बाद आखिरकार पुतला दहन का कार्यक्रम 1960 से मोरहाबादी मैदान में किया जाने लगा।