श्रीकृष्ण संग फूलों की होली खेलने का त्यौहार है फुलेरा दूज
बसंत पंचमी और होली के बीच आने वाला त्यौहार फुलेरा दूज है। फुलेरा दूज मथुरा और वृंदावन में खासतौर से मनाया जाता है तो आइए हम आपको फुलेरा दूज के महत्व के बारे में कुछ रोचक बातें बताते हैं।
- जानें फुलेरा दूज के बारे में
फुलेरा दूज एक शुभ त्यौहार है जिसे उत्तर भारत में विशेष रूप से मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान कृष्ण को समर्पित है। फुलेरा दूज में फुलेरा का अर्थ है ‘फूल’ जो फूलों को दर्शाता है। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं और फुलेरा दूज की शुभ पूर्व संध्या पर होली मनायी जाती है। यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लाता है। यह त्यौहार फाल्गुन माह में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।
- ऐसे मनाएं फुलेरा दूज
फुलेरा दूज विशेष त्यौहार होता है। इस दिन पर, भक्त भगवान कृष्ण की पूजा होती है। उत्तरी भारत के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित मंदिरों भव्य उत्सव होते हैं। इस दिन भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों की होली खेली जाती है। ब्रज में इस दिन देवता के सम्मान में भव्य उत्सव होते हैं। मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सजाये गए और रंगीन मंडप में रखा जाता है। रंगीन कपड़े का एक छोटा टुकड़ा भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर लगाया जाता है। यह कपड़ा इस बात का प्रतीक है कि वह होली खेलने के लिए तैयार हैं। शयन भोग की रस्म पूरी करने के बाद, रंगीन कपड़े को हटा दिया जाता है। देवता के सम्मान में भक्त भजन-कीर्तन करते हैं। होली के आगामी उत्सव के प्रतीक देवता की मूर्ति पर थोड़ा गुलाल फैलाया जाता है। उसके बाद मंदिर के सभी पुजारी इकट्ठा होकर लोगों पर गुलाल छिड़कते हैं।
- फुलेरा दूज का महत्व
फाल्गुन मास में आने वाले इस त्योहार को सबसे महत्वपूर्ण और शुभ माना जाता है। पंडितों की मान्यता है कि यह दिन भाग्यशाली माना जाता है क्योंकि इस दिन हानिकारक प्रभावों और दोषों का प्रभाव नहीं होता है। इसलिए इसे अबुझ मुहूर्त भी माना जाता है। फुलेरा दूज विवाह, संपत्ति की खरीद इत्यादि सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने के लिए पवित्र होता है। उत्तर भारत के राज्यों में, ज्यादातर शादी समारोह फुलेरा दूज की पूर्व संध्या पर होते हैं।
- फुलेरा दूज से जुड़ी पौराणिक कथा
फुलेरा दूज हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है। इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार द्वापर युग में एक बार भगवान श्रीकृष्ण बीमार पड़ गए। बीमारी के कारण सभी दवा और जड़ी बूटियां बेअसर हो रही थीं। तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों को चरणामृत पिलाने के लिए कहा। श्री श्रीकृष्ण का मानना था कि जो उनके परम भक्त हों उनके पांव को धोने वाले जल को ग्रहण करने से वह पूरी तरह से स्वस्थ हो जाएंगे। लेकिन गोपियां को शंका थी कि यह उपाय निष्फल हो जाएगा। तभी उन्हें राधा रानी की याद आ गयी। श्रीकृष्ण की हालत देखकर राधा ने उनसे उपाय पूछा तो गोपियां श्रीकृष्ण के द्वारा बताया गया उपाय बता दीं। राधा जी फौरन पांव धोकर उसका चरणामृत तैयार कर भगवान श्रीकृष्ण को पिलाने के लिए आगे बढ़ जाती हैं।
राधा यह अच्छी तरह से जानती थीं कि वह क्या कर रही हैं। जो बात अन्य गोपियों के लिए भय का कारण थी वही भय राधा को भी था। लेकिन भगवान श्री कृष्ण को वापस स्वस्थ करने के लिए वह नर्क जाने के लिए भी तैयार थीं। जिसके बाद राधा जी ने अपने पांव का चरणामृत श्री कृष्ण को दिया और कृष्ण जी ने वह चरणामृत ग्रहण कर लिया। जिसके बाद वह स्वस्थ हो गए। राधा ही वह थीं जिनके प्यार एवं सच्ची निष्ठा से श्री कृष्ण तुरंत ही स्वस्थ हो गए।
- फुलेरा दूज पर भोग भी होता है खास
हिन्दूओं का प्रमुख त्यौहार फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के लिए खास किस्म का भोग तैयार किया जाता है। इस भोग में पोहा और अन्य विशेष व्यजंनों को शामिल किया जाता है। इन विशेष व्यजंनों को पहले देवता को अर्पित किया जाता है उसके बाद प्रसाद को सभी भक्तों में बांटा जाता है।
– प्रज्ञा पाण्डेय