UNSC में भारत की एक और यात्रा जो ले जा सकती है स्थायी सीट तक
संयुक्त राष्ट्र यानी वो संगठन जो पूरे विश्व में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से लेकर सामाजिक प्रगति, मानवाधिकार और विश्व शांति के लिए बेहद महत्वपूर्ण कार्य करता है। नए साल की शुरुआत के साथ, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में एक नई यात्रा शुरू करते हुए आठवीं बार इसका गैर-स्थायी सदस्य बन गया। भारत नॉर्वे, केन्या, आयरलैंड और मैक्सिको के साथ 15-सदस्यीय यूएनएससी में दो साल के कार्यकाल के लिए प्रवेश किया। भारत के सामने खुद को एक वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी क्षमता प्रदर्शित करने और स्थायी सीट के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए एक अनूठा अवसर है। तो यूएनएससी में क्या होगा भारत का एजेंडा और उसका दृष्टिकोण? ऐसे तमाम सवालों के जवाब आज इस रिपोर्ट के माध्यम से तलाशने की कोशिश करेंगे।
- आठवीं बार भारत बना अस्थायी सदस्य
इतिहास में देखें तो ऐसे सात मौके इससे पहले आए जब भारत ने यूएनएससी की गैर-स्थायी सदस्य के तौर पर शामिल हुआ। भारत पहली बार 1950 में गैर-स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था। भारत पहली बार 1950 में गैर स्थायी सदस्य के रूप में चुना गया था। उसके बाद 1967-68, 1972-72, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और उसके बाद 2011-12 में भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में चुना जा चुका है। अब आठवीं बार 1 जनवरी से अस्थायी सदस्य बन गया।
- यूएनएससी में भारत
भारत की सदस्यता पर दुनिया के कई देशों की नजह टिकी है। वहीं भारत के दृष्टिकोण को विदेश मंत्री एस जयशंकर के शब्दों से समझने की कोशिश करें तो इसके लिए उन्होंने 5 सूत्री फार्मूला भी दिया है- सम्मान, संवाद, सहयोग, शांति और समृद्धि। भारत ने जिस प्रकार से चीन की चालाकियों का जवाब दिया है। उसके बाद चीन को यूएनएससी में भारत के कदम का बेसब्री से इंतजार होगा। इसके अलावा भारत की अस्थाई सदस्यता के कारण सीमा पार आतंकवाद, आतंकवाद को फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग, कश्मीर जैसे मुद्दों पर भारत की स्थिति मजबूत होगी।
- चीन को मिलेगी चुनौती
संयुक्त राष्ट्र में चीन ने पहले के मुकाबले अपनी स्थिति को बेहतर किया है। उसने न सिर्फ बजट में अपना योगदान बढ़ाया है बल्कि कई संगठनों के उच्च पदों पर उसके अधिकारी पहुंच चुके हैं। चीन की चालाकियों का माकूल जवाब देने के बाद भारत के पास अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी ड्रैगन से निपटना होगा। भारत अगस्त 2021 में 15 देशों वाली शक्तिशाली परिषद के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी निभाएगा। हर सदस्य देश बारी-बारी से एक महीने के लिए परिषद की अध्यक्षता करता है।
- मुख्य प्राथमिकताएं जो ले जा सकती हैं स्थायी सीट तक
आतंकवाद, समुद्री सुरक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान, अंतर्राष्ट्रीय शांति कायम रखने जैसे मुख्य एजेंडा होंगे जो यूएनएसी में एक स्थायी सीट के लिए मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। इसके साथ ही कुछ आंकड़ों के आइने से उन बारिकियों को समझने को टटोलने की कोशिश करते हैं जो स्थायी सीट के भारत के दावे को और मजबूत करता है।
- संयुक्त राष्ट्र में भारत चौथा सबसे बड़ा सैन्य योगदान देने वाला देश है।
- संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में वर्तमान में कुल 6,700 भारतीय सैनिक तैनात हैं।
- 1948 से संयुक्त राष्ट्र के कई मिशनों में 200,000 से अधिक भारतीय सेवा दे चुके हैं।
- संयुक्त राष्ट्र के झंडे के नीचे 160 से अधिक भारतीयों ने अपनी जान गंवाई है।
- 2007 में, संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन के लिए एक अखिल महिला टुकड़ी को तैनात करने वाला भारत पहला देश बना।
भारत दुनिया भर में शांति के प्रयासों में सुधार करने के लिए अपनी ताकत का लाभ उठाने की कोशिश करेगा। साथ ही, भारत दुनिया का वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग हब है। दुनिया भर में वितरित होने वाले लगभग 60 प्रतिशत टीके भारत से आते हैं, जिसका अर्थ है हर तीन टीकों में से एक। उत्पादन और नैदानिक परीक्षणों की लागत भारत में दुनिया में सबसे कम है।
- आतंकवाद से दो-दो हाथ करने का क्लियर स्टैंड
अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने में भारत की स्पष्ट नीति है। एक गैर-स्थायी सदस्य के रूप में, भारत वैश्विक आतंकवाद, आतंकवादियों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी के दुरुपयोग, आतंक के वित्तपोषण के प्रवाह को कम करने और अन्य बहुपक्षीय मंचों के साथ सहयोग को मजबूत करने के लिए एक प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए जोर देगा। अमूमन गैर स्थायी सदस्य शक्तिहीन हैं क्योंकि उनके पास वीटो की शक्ति नहीं होती है। इतिहास में ऐसे कई मौके देखने को मिले जब चीन ने वीटो का प्रयोग कर मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने में रोड़ा अटकाया था। लेकिन इसके साथ ही अगर स्थायी सदस्यों ने पहले ही एक प्रस्ताव के लिए ‘हां’ कह दे तो भी उसे कम से कम सात गैर-स्थायी सदस्यों के समर्थन की आवश्यकता है। इसे सामूहिक वीटो कहा जाता है। गैर-स्थायी सदस्य भी यूएनएससी में कई समितियों और कार्य समूहों की अध्यक्षता करते हैं। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए भारत के पास नेतृत्व करने और स्थायी सदस्यता हासिल करने के लिए खुद को मजबूत करने का अच्छा अवसर है।