13 दिसंबर : जब लोकतंत्र के मंदिर पर हुआ था कायराना आतंकी हमला, जांबाजों ने लगा दी थी जान की बाजी
2001 में 13 अगस्त की सुबह आतंक का काला साया देश के लोकतंत्र की दहलीज तक आ पहुंचा था। संसद परिसर में घुसे पांच आतंकवादियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी कर पूरे हिंदुस्तान को झकझोर दिया था। देश की राजधानी के बेहद महफूज माने जाने वाले इलाके में शान से खड़ी संसद भवन की इमारत में घुसने के लिए आतंकवादियों ने सफेद रंग की एम्बेसडर का इस्तेमाल किया और सुरक्षाकर्मियों को गच्चा देने में कामयाब रहे, लेकिन उनके कदम लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र कर पाते उससे पहले ही सुरक्षा बलों ने उन्हें ढेर कर दिया। चलिए आपको यह बताते हैं कि आखिर उस दिन क्या-क्या हुआ था…
सबसे पहले तो आपको यह बता दें कि जब यह आतंकवादी हमला हुआ था तब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था। उस समय संसद के दोनों सदन 40 मिनट के लिए स्थगित हुए थे और ऐसे में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी अपने अपने आवास पर चले गए थे। हालांकि, उस दौरान तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी करीब 200 संसद सदस्यों के साथ संसद परिसर में ही मौजूद थे। इसी दौरान संसद परिसर में घुसकर आतंकियों ने फायरिंग शुरू कर दी। आपके मन में अभी सबसे बड़ा सवाल तो यह आ रहा होगा कि यह आतंकवादी सबसे सुरक्षा के महफूज जगह संसद परिसर में घुसने में कैसे कामयाब रहे? तो आपको बता दें कि आतंकवादियों को गृह मंत्रालय और संसद के लेबल वाले स्टीकर गाड़ी पर लगे होने के कारण प्रवेश मिल गया। गाड़ी का नंबर था DL-3 CJ 1527।
संसद में घुसने के साथ ही सफेद रंग के एंबेसडर कार से पांच आतंकी निकले और अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दी। यह पांचो आतंकवादी एके-47 से लैस थे और इनके पीठ और कंधे पर बैग थे। इसके बाद संसद भवन में अफरा-तफरी का माहौल मच गया। लेकिन इस दौरान सुरक्षा कर्मी अपनी जान की बाजी लगाकर हमारे लोकतंत्र के मंदिर को बचाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे थे। संसद परिसर में मौजूद लालकृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस समेत बड़े मंत्रियों और नेताओं को सुरक्षित स्थानों पर ले जाया गया। कहा जाता है कि सबसे पहले सीआरपीएफ की कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी ने आतंकवादियों को देखा और तत्काल ही उसने अलार्म बजा दिया। उसी के बाद आतंकवादी गोलियां बरसाना शुरू कर दिए। कमलेश कुमारी पर भी आतंकवादियों ने गोलियां बरसाई जिसके कारण उनकी मौत हो गई। इस मुठभेड़ में सबसे पहले कमलेश कुमारी की ही मौत हुई थी।
अलार्म बजने के बाद भारतीय सुरक्षा बलों ने पोजीशन ले लिया और आतंकवादियों से मुकाबला करने लगे। एक आतंकवादी ने गोली लगते ही खुद को उड़ा दिया। बाकी आतंकवादी बीच-बीच में हथगोला भी फेंक रहे थे। सूझबूझ का परिचय देते हुए हमारे जवानों ने आतंकवादियों को चारों तरफ से घेर लिया और आखिरकार एक-एक कर सभी को ढेर कर दिया। इस आतंकवादी हमले में दिल्ली पुलिस के 5 जवान नानक चंद, रामपाल, ओमप्रकाश, विजेंद्र सिंह और घनश्याम के अलावा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की एक महिला कॉन्स्टेबल कमलेश कुमारी और संसद सुरक्षा के दो सुरक्षा सहायक जगदीश प्रसाद यादव और मातम बर सिंह नेगी आतंकियों से बहादुरी से लड़ते हुए शहीद हो गए। मुठभेड़ में एक माली की भी मौत हो गई थी। हर साल 13 दिसंबर को इन्दी सुर वीरों को याद कर श्रद्धांजलि दी जाती है। इस घटना के बाद आतंकवाद के इस अभिशाप से निपटने के लिए देश से नए सिरे से प्रयास करने का संकल्प लिया। आज जरुरत है कि हम अपनी मातृभूमि की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करने के लिए अपनी बचनबद्धता पूरी दृढ़ता से फिर व्यक्त करें।