Ashadha Skanda Shashthi: आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत से सभी रोग होते हैं दूर

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आज आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत है, सोमवार को आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि है। इस तिथि पर भगवान स्कंद कुमार की पूजा करने का विधान है इसलिए इसे स्कंद षष्ठी कहा जाता है। इस दिन व्रत और भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से हर तरह के दोष और पाप खत्म हो जाते हैं तो आइए हम आपको आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व एवं पूजा विधि के बारे में बताते हैं। 

जानें आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत के बारे में 

हिन्दू धर्म में आषाढ़ मास में पड़ने वाली स्कंद षष्ठी का बहुत महत्व है। स्कंद षष्ठी को षष्ठी व्रत और कुमार षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है, यह भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की पूजा का विशेष दिन होता है। हर महीने शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन भगवान शिव और माता पार्वती के छठे पुत्र कार्तिकेय की पूजा की जाती है। स्कन्द षष्ठी के दिन खासतौर पर भगवान कार्तिकेय की पूजा करने के साथ-साथ व्रत भी रखा जाता है। स्कंद षष्ठी का व्रत हर माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को रखा जाता है। इस व्रत में भगवान कार्तिकेय की पूजा करते हैं। भगवान स्कंद की पूजा करने से सभी प्रकार के रोग, दोष, काम, क्रोध, मद, लोभ आदि मिट जाते हैं। इस बार स्कंद षष्ठी के दिन रवि योग बन रहा है। इसमें सूर्य का प्रभाव अधिक होता है, जिसमें सभी प्रकार के दोष नष्ट हो जाते हैं। भगवान कार्तिकेय को स्कंद, कुमार, सुब्रह्मण्य, मुरुगन आदि नामों से भी पुकारा जाता है। नौ देवियों स्कंदमाता का भी वर्णन मिलता है, जिनकी गोद में स्कंद कुमार बैठे होते हैं। भगवान स्कंद की पूजा करने से सभी प्रकार के रोग, दोष, काम, क्रोध, मद, लोभ आदि मिट जाते हैं।

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आषाढ़ स्कंद षष्ठी का शुभ मुहूर्त

हिंदू कैलेंडर के अनुसार, स्कंद षष्ठी के लिए जरूरी आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि 30 जून को है इसलिए आषाढ़ स्कंद षष्ठी 30 जून को मनाया जाएगा।

आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत के लाभ

पंडितों के अनुसार जो लोग संतानहीन हैं, उनको स्कंद षष्ठी का व्रत रखकर भगवान कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए, उनके आशीर्वाद से संतान की प्राप्ति हो सकती है। अगर आपके जीवन में धन और वैभव की कमी है तो आपको भी स्कंद षष्ठी का व्रत रखना चाहिए, आप पर माता लक्ष्मी की कृपा होगी। स्कंद कुमार के साथ भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है, इस बार स्कंद षष्ठी गुरुवार को है और गुरुवार विष्णु पूजा के लिए समर्पित है। ऐसे में स्कंद षष्ठी पर विष्णु जी और स्कंद कुमार की पूजा का सुंदर संयोग बना है, दोनों की साथ में पूजा करने से आपके कार्य सफल होंगे और जीवन में सुख और समृद्धि आ सकती है।  संतान की लंबी आयु और शत्रुओं को पराजित करने के लिए भी स्कंद षष्ठी का व्रत रखा जाता है।

जानें भगवान स्कंद के बारे में 

भगवान स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं। ये देवताओं के सेनापति भी कहे जाते हैं। इनकी पूजा दक्षिण भारत मे सबसे ज्यादा होती है। यहां पर ये मुरुगन नाम से भी प्रसिद्ध है। भगवान स्कंद हिंदू धर्म के प्रमुख देवों मे से एक हैं। स्कंद को कार्तिकेय और मुरुगन नामों से भी पुकारा जाता है। दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र हैं। कार्तिकेय भगवान के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं। इनकी पूजा खासतौर से तमिलनाडु और भारत के दक्षिणी राज्यों में होती है। भगवान स्कंद का सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडु में ही है।

आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा

भगवान कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है कि जब दैत्य तारकासुर  का अत्याचार चारों ओर फैल रहा था तब देवताओं को भी पराजय का समाना करना पड़ा । जिस कारण सभी देवता भगवान ब्रह्मा के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं। ब्रह्मा उनके दु:ख को जानकर उनसे कहते हैं कि तारकासुर का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है, परंतु सती के अंत के पश्चात् भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं। इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शिव उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह करते हैं। शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो जाता है। इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है और कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं। देवताओं के अनुरोध पर कार्तिकेय उनके सेनापति बने।

आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत में पूजा के नियम 

स्कंद षष्ठी पर भगवान शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। इसमें स्कंद देव (कार्तिकेय) की स्थापना और पूजा होती है। अखंड दीपक भी जलाए जाते हैं। भगवान को स्नान करवाया जाता है। भगवान को भोग लगाते हैं। इस दिन विशेष कार्य की सिद्धि के लिए कि गई पूजा-अर्चना फलदायी होती है। इस दिन मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए। ब्रह्मचर्य का पालन करना जरूरी होता है। पूरे दिन संयम से भी रहना होता है।

आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व 

स्कंद पुराण के नारद-नारायण संवाद में संतान प्राप्ति और संतान की पीड़ाओं को दूर करने वाले इस व्रत का विधान बताया गया है। एक दिन पहले से उपवास करके षष्ठी को कुमार यानी कार्तिकेय की पूजा करनी चाहिए। भगवान कार्तिकेय का ये व्रत करने से दुश्मनों पर जीत मिलती है। वहीं हर तरह की परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। पुराणों के अनुसार स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आंखों की ज्योति प्राप्त हुई। ब्रह्मवैवर्त पुराण में बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से ही प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता है।

आषाढ़ स्कंद षष्ठी व्रत के दिन करें पूजा, मिलेगा लाभ 

पंडितों के इस दिन सुबह जल्दी उठें और स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें। सूर्य देव को अर्घ्य दें और मंदिर की सफाई करें। चौकी पर कपड़ा बिछाकर भगवान कार्तिकेय की मूर्ति को विराजमान करें। देसी घी का दीपक जलाकर आरती करें और मंत्रों का जप करें। जीवन में सुख-समृद्धि में वृद्धि के लिए कामना करें। भगवान को फल और मिठाई का भोग लगाएं। अंत में प्रसाद के साथ लोगों में विशेष चीजों का दान करें।
– प्रज्ञा पाण्डेय
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