Mohini Ekadashi 2025: 8 मई को रखा जायेगा मोहिनी एकादशी व्रत
हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मोहिनी एकादशी व्रत रखा जाता है। वैसे तो हर महीने में दो एकादशी तिथि होती है। एक शुक्ल पक्ष और एक कृष्ण पक्ष में, लेकिन मोहिनी एकादशी का खास महत्व माना जाता है। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि मोहिनी एकादशी का व्रत 8 मई को रखा जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरूप की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर होते हैं। मान्यता है कि मोहिनी एकादशी का व्रत सभी प्रकार के दुखों का निवारण करने वाला, सब पापों को हरने वाला और व्रतों में उत्तम व्रत है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य मोहजाल से छुटकारा पाकर विष्णु लोक को प्राप्त करता है। मोहिनी एकादशी के दिन पूजा अर्चना करने से मन को शांति मिलती है और धन, यश और वैभव में वृद्धि होती है। इस दिन सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त व्रत भी रखा जाता है। इस व्रत के पुण्य से भक्त के अनजाने में किए गए सभी पाप दूर हो जाते हैं। भगवान विष्णु की कृपा भी प्राप्त होती है।
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू धर्म में साल में 24 एकादशी पड़ती हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है और इस दिन श्रीहरि की पूजा की जाती है। वैसे तो सभी एकादशी महत्वपूर्ण मानी गई है लेकिन वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्व है। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाले एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। मोहिनी एकादशी का दिन भगवान विष्णु और उनके मोहिनी अवतार की पूजा करने के लिए मनाया जाता है। भक्त अपने पिछले पापों से छुटकारा पाने और विलासिता से भरा जीवन जीने के लिए मोहिनी एकादशी का व्रत रखते हैं। इस दिन व्रत-पूजा करने से साधक को सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही घर में सुख समृद्धि भी बनी रहती है। इस बार मोहिनी एकादशी पर 3 शुभ योग बन रहे हैं।
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मोहिनी एकादशी तिथि
वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि आरंभ: 7 मई, 2025, प्रातः 10 : 19 मिनट पर
वैशाख शुक्ल एकादशी तिथि समाप्त: 8 मई, 2025, दोपहर 12:29 मिनट पर
उदयातिथि के आधार पर मोहिनी एकादशी व्रत 8 मई 2025 को रखा जाएगा।
शुभ योग
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस वर्ष मोहिनी एकादशी के दिन भद्रवास योग बन रहा है, जो इस व्रत को और भी प्रभावशाली बनाता है। इस योग में किया गया व्रत और जप अनेक गुना पुण्य प्रदान करता है।
यज्ञ से भी ज्यादा फल देता है एकादशी व्रत
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पुराणों के मुताबिक, एकादशी को हरी वासर यानी भगवान विष्णु का दिन कहा जाता है। विद्वानों का कहना है कि एकादशी व्रत यज्ञ और वैदिक कर्म-कांड से भी ज्यादा फल देता है। पुराणों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से मिलने वाले पुण्य से पितरों को संतुष्टि मिलती है। स्कंद पुराण में भी एकादशी व्रत का महत्व बताया गया है। इसको करने से जाने-अनजाने में हुए पाप खत्म हो जाते हैं।
पुराणों और स्मृति ग्रंथ में एकादशी व्रत
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि स्कन्द पुराण में कहा गया है कि हरिवासर यानी एकादशी और द्वादशी व्रत के बिना तपस्या, तीर्थ स्थान या किसी तरह के पुण्याचरण द्वारा मुक्ति नहीं होती। पदम पुराण का कहना है कि जो व्यक्ति इच्छा या न चाहते हुए भी एकादशी उपवास करता है, वो सभी पापों से मुक्त होकर परम धाम वैकुंठ धाम प्राप्त करता है। कात्यायन स्मृति में जिक्र किया गया है कि आठ साल की उम्र से अस्सी साल तक के सभी स्त्री-पुरुषों के लिए बिना किसी भेद के एकादशी में उपवास करना कर्त्तव्य है। महाभारत में श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सभी पापों ओर दोषों से बचने के लिए 24 एकादशियों के नाम और उनका महत्व बताया है।
एकादशी व्रत का महत्व
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक संस्कृति में प्राचीन काल से ही योगी और ऋषि इन्द्रिय क्रियाओं को भौतिकवाद से देवत्व की ओर मोड़ने को महत्व देते आ रहे हैं। एकादशी का व्रत उसी साधना में से एक है। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एकादशी में दो शब्द होते हैं एक (1) और दशा (10)। दस इंद्रियों और मन की क्रियाओं को सांसारिक वस्तुओं से ईश्वर में बदलना ही सच्ची एकादशी है। एकादशी का अर्थ है कि हमें अपनी 10 इंद्रियों और 1 मन को नियंत्रित करना चाहिए। मन में काम, क्रोध, लोभ आदि के कुविचार नहीं आने देने चाहिए। एकादशी एक तपस्या है जो केवल भगवान को महसूस करने और प्रसन्न करने के लिए की जानी चाहिए। हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत की महिमा स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को मोक्ष मिलता है और सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं, दरिद्रता दूर होती है, अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता, शत्रुओं का नाश होता है, धन, ऐश्वर्य, कीर्ति, पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है ।
पूजा विधि
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि मोहिनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें। उसके बाद पीले वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु का स्मरण करें और पूजा करें। फिर ‘ऊं नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का जाप जरूर करें। उसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों के साथ करें और रात को दीपदान करें। पीले फूल और फलों को अर्पण करें। श्री हरि विष्णु से किसी प्रकार की गलती के लिए क्षमा मांगे। शाम को पुन: भगवान विष्णु की पूजा करें और रात में भजन कीर्तन करते हुए जमीन पर विश्राम करें। फिर अगले दिन सुबह उठकर स्नान आदि करें। इसके बाद ब्राह्मणों को आमंत्रित करके भोजन कराएं और उन्हें अपने अनुसार भेट दें। इसके बाद व्रत का पारण करें।
भगवान विष्णु ने रखा था मोहिनी रूप
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब समुद्र से अमृत कलश निकला तब राक्षसों और देवताओं के बीच इस बात को लेकर विवाद शुरू हो गया कि अमृत का कलश कौन लेगा। इसके बाद सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से सहायता मांगी। ऐसे में अमृत के कलश से राक्षसों का ध्यान भटकाने के लिए भगवान विष्णु मोहिनी नामक एक सुंदर स्त्री के रूप में प्रकट हुए, जिसके बाद सभी देवताओं ने विष्णु जी की सहायता से अमृत का सेवन किया। इसी दिन वैशाख शुक्ल की एकादशी तिथि थी, इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है।
– डा. अनीष व्यास
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक