Phulera Dooj 2025: वैवाहिक जीवन में नई खुशियां लाता है फुलेरा दूज त्योहार, होगी रिकॉर्ड तोड़ शादियां
फाल्गुन माह की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज के रूप में मनाया जाता है। इस बार फुलेरा दूज 1 मार्च 2025 को मनायी जाएगी। यह दिन होली के आगमन का प्रतीक माना जाता है। इस दिन से होली के पर्व की तैयारियां आरंभ हो जाती हैं। इस दिन से उत्तर भारत के गांवो में जिस स्थान पर होली रखी जाती हैं वहां पर प्रतीकात्मक रूप में उपले या फिर लकड़ी रख दी जाती हैं। कई जगहों पर इस दिन को उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस दिन से लोग होली में चढ़ाने के लिए गोबर की गुलरियां भी बनाई जाती हैं। पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि 01 मार्च को रात्रि 03:16 मिनट से शुरू हो रही है और तिथि का समापन 02 मार्च को रात्रि 12:09 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में उदया तिथि का विशेष महत्व है। इस प्रकार 01 मार्च को फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाएगा। फुलेरा दूज को अबूझ मुहूर्त माना जाता है, जिसका अर्थ है कि इस दिन विवाह के लिए किसी ज्योतिषीय गणना की आवश्यकता नहीं होती। यही कारण है कि इस दिन कई शादियां होती हैं।
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि शाब्दिक अर्थ में फुलेरा का अर्थ है फूल, जो फूलों को दर्शाता है। यह माना जाता है कि भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं और फुलेरा दूज की शुभ पूर्व संध्या पर होली के त्योहार में भाग लेते हैं। यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लाता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में फूलेरा दूज को अबूझ मुहूर्त माना गया है जिसमें इस दिन बिना मुहूर्त देखे सभी तरह के शुभ और मांगलिक कार्य किया जा सकता है। इस दिन भगवान कृष्ण और राधा जी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम की बहार आती है और इस दिन शादी-विवाह करने पर भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद मिलता है।
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फुलेरा दूज का शुभ मुहूर्त
द्वितीया तिथि आरंभ: 01 मार्च को रात्रि 03:16 मिनट से
द्वितीया तिथि समाप्त: 02 मार्च को रात्रि 12:09 मिनट पर
01 मार्च को फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाएगा।
विवाह के लिए सर्वोत्तम मुहूर्त
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फुलेरा दूज को हिंदू शास्त्रों में बड़ा ही महत्वपूर्ण योग बताया है। इसीलिए इस विशेष दिन सर्वाधिक विवाह समारोह भी संपन्न होते हैं। हिंदू पंचांग की मान्यता के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि विवाह बंधन के लिए वर्ष का सर्वोत्तम दिन है। कहते हैं कि इस दिन विवाह करने से दंपति को भगवान कृष्ण का आशीर्वाद हासिल होता है।
रिकॉर्ड तोड़ शादियां
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सर्दी के मौसम के बाद इसे शादियों के सीजन का अंतिम दिन माना जाता है। इस दिन रिकॉर्ड तोड़ शादियां होती हैं। इसका अर्थ है कि विवाह, संपत्ति की खरीद इत्यादि सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने के लिए दिन अत्यधिक पवित्र है।
अबूझ मुहूर्त है फुलेरा दूज
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस त्योहार को सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक माना जाता है। इस दिन किसी भी तरह के हानिकारक प्रभावों और दोषों से प्रभावित नहीं होता है और इसे अबूझ मुहूर्त माना जाता है। सर्दी के मौसम के बाद इसे शादियों के सीजन का अंतिम दिन माना जाता है। इसलिए इस दिन रिकॉर्ड तोड़ शादियां होती हैं। विवाह, संपत्ति की खरीद इत्यादि सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने के लिए दिन अत्यधिक पवित्र है। शुभ मुहूर्त पर विचार करने या किसी विशेष शुभ मुहूर्त को जानने के लिए पंडित से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है। उत्तर भारत के राज्यों में, ज्यादातर शादी समारोह फुलेरा दूज की पूर्व संध्या पर होते हैं। लोग आमतौर पर इस दिन को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए सबसे समृद्ध पाते हैं।
दांपत्य के लिए अतिशुभ घड़ी
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि जिस तिथि में कृष्ण और राधा ने फूलों की होली खेली वह फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि थी। इसीलिए इस तिथि को फुलेरा दूज कहा गया। कृष्ण और राधा के मिलन की तिथि को अति शुभ माना जाता है और इसीलिए इस तिथि को विवाह करने वाले युगलों के बीच अपार स्नेह और दांपत्य का मजबूत रिश्ता बनता है।
पोहा का बनता है भोग
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि फुलेरा दूज के दिन भगवान श्रीकृष्ण के लिए स्पेशल भोग तैयार किया जाता है। जिसमें पोहा और अन्य विशेष व्यजंन शामिल हैं। भोजन पहले देवता को अर्पित किया जाता है और फिर प्रसाद के रूप में सभी भक्तों में वितरित किया जाता है।
धार्मिक मान्यता
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि फूलेरा दूज पर ब्रज की समस्त गोपियों ने राधा-कृष्ण के प्रेम की खुशी में फूल बरसाए थे, इस कारण से इस त्योहार का महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने होली खेलने की परंपरा की शुरूआत की थी। फुलेरा दूज पर घरों को फूलों और रंगोली से सजाया जाता है। फुलेरा दूज का महत्व शादियों को लेकर है। होली से करीब पंद्रह दिन पहले शादियों का शुभ मुहूर्त समाप्त हो जाता है। जबकि फुलेरा दूज के दिन हर पल शुभ होता है। यह तिथि भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित होती है। वहीं फुलेरा दूज का शाब्दिक अर्थ फुलेरा का अर्थ है फूल, जो फूलों को दर्शाता है। यह माना जाता है। भगवान कृष्ण फूलों के साथ खेलते हैं और फुलेरा दूज की शुभ पूर्व संध्या पर होली के त्योहार में भाग लेते हैं। यह त्योहार लोगों के जीवन में खुशियां और उल्लास लाता है। वहीं वैवाहिक जीवन के लिहाज से ये दिन बहुत खास होता है और इस दिन बिना मुहूर्त के ही शादी-ब्याह संपन्न किए जाते हैं।
कैसे मनाते हैं फुलेरा दूज
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन सबसे महत्वपूर्ण अनुष्ठान जो किया जाता है वह भगवान कृष्ण के साथ रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने का होता है। ब्रज क्षेत्र में, इस विशेष दिन पर, देवता के सम्मान में भव्य उत्सव होते हैं। मंदिरों को फूलों और रोशनी से सजाया जाता है और भगवान कृष्ण की मूर्ति को एक सजाये गए और रंगीन मंडप में रखा जाता है। रंगीन कपड़े का एक छोटा टुकड़ा भगवान कृष्ण की मूर्ति की कमर पर लगाया जाता है, जिसका प्रतीक है कि वह होली खेलने के लिए तैयार हैं।
राधा कृष्ण कथा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पौराणिक कथा के अनुसार व्यस्तता के चलते कृष्ण कई दिनों से राधा से मिलने वृंदावन नहीं आ रहे थे। राधा के दुखी होने पर उनके सहेलियां भी कृष्ण से रूठ गई थीं। राधा के उदास रहने के कारण मथुरा के वन सूखने लगे और पुष्प मुरझा गए। वनों की स्थिति देखकर कृष्ण को कारण पता चल गया और वह राधा से मिलने वृंदावन पहुंच गए। श्रीकृष्ण के आने से राधा खुश हो गईं और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई। कृष्ण ने एक खिल रहे पुष्प को तोड़ लिया और राधा को छेड़ने के लिए उनपर फेंक दिया। राधा ने भी ऐसा ही किया। यह देख वहां मौजूद ग्वाले और गोपिकाएं भी एक दूसरे पर फूल बरसाने लगीं। तब से आज भी प्रतिवर्ष मथुरा में फूलों की होली खेली जाती है।
क्या होती हैं गुलरियां
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि गुलरियां गोबर से बनाई जाती हैं। इन्हें बनाने का कार्य फुलेरा दूज से ही शुरू कर दिया जाता है। इसमें महिलाएं गोबर के छोटे-छोटे गोले बनाकर उसमें उंगली से बीच में सुराख बना देती हैं। सूख जाने के बाद इन गुलरियों की पांच सात मालाएं बना ली जाती हैं और होलिका दहन के दिन इन गुलरियों को होली की अग्नि में चढ़ा दिया जाता है।
– डा. अनीष व्यास